Book Title: Jain Darshansara
Author(s): Narendra Jain, Nilam Jain
Publisher: Digambar Jain Mandir Samiti

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Page 314
________________ असत्य बोलने का परिणाम एक सेठ के यहाँ एक लड़का रहता था। वह बहुत झूठा था। सेठ इससे बहुत परेशान हो गया, विचार करने लगा इसे मैं बाजार में बेच आऊँ। अतः बेचने के लिए सेठ बाजार पहुँच जाता है। लड़के की कीमत रखता है सौ रुपये। अब हर प्राणी यह सोचता है कि इसकी कीमत इतनी कम क्यों है। यह तो मनुष्य है, तब वह सेठ कहता है कि यह लड़का झूठ बोलता है अतः इसकी कीमत कम रखी है। यह सुनकर सब खरीददार पीछे हट जाते हैं। एक दिन राजा ने इसको खरीद लिया। सोचता है झूठ ही तो बोलता है, घर का काम तो ठीक करेगा। रानी से कह देंगे कि यह झूठ बोलता है। राजा उसे घर पर ले जाता है। रानी को सब बातों से अवगत करा देता है। कह देता है कि इसका विश्वास नहीं करना । इस प्रकार दिन कुछ गुजर जाते हैं। एक दिन लड़का विचारने लगा कि मेरा विश्वास तो ये लोग करते नहीं, आज मुझे भी इनको झूठ बोलकर दिखाना है। । लड़का रानी से कहता है कि तुम मेरा विश्वास तो करती नहीं, किन्तु फिर भी तुम्हें एक बात बताता हूँ। वह कहता है कि राजा एक अन्य स्त्री से प्रेम करता है, तुम्हारी कोई महत्ता नहीं है । स्त्रियों को ऐसी बातों पर शीघ्र विश्वास आ जाता है। रानी लड़के से उपाय पूछती हैं कि किस प्रकार राजा मुझ पर पूर्व की भाँति मोहित रह सकता है। लड़का कहता है कि जब राजा भोजन करने आए तब उनकी अच्छी खातिर करना और जब वह सो जाएं तब तलवार से एक तरफ से उनकी मूँछे काटकर, पीसकर उन्हें पिला देना, तब तुम्हारा कार्य सिद्ध हो जायेगा । अब लड़का राजा के पास जाता है, कहता है राजा साहब तुम्हें मेरा विश्वास तो आता नहीं पर आज देखना जब तुम खाना खाकर लौटोगे, रानी आपको तलवार से मारेगी, अतः सावधान रहना। दोनों तरफ लड़के ने झूठ बोल दिया। राजा खाना खाकर लेट जाता है रानी ने मूँछ काटने के लिए जैसे ही तलवार उठायी, राजा तो पहले से ही सावधान था, राजा एकदम रानी का हाथ पकड़ लेता है। रानी के हाथ से तलवार खींचता है और रानी के टुकड़े-टुकड़े कर देता है। रानी अच्छे घर की स्त्री थी । अतः जब रानी के मायके वालों को पता चलता है तो रानी के पिता राजा पर चढ़ाई कर देते हैं। दोनों ओर से महायुद्ध होता है। इस युद्ध में लाखों प्राणी मारे जाते हैं यह सब झूठ बोलने से, इधर की बात उधर लगाने से युद्ध हुआ फलस्वरूप राज घराना नष्ट हो जाता है। इस प्रकार कभी भी झूठ नहीं बोलना चाहिए। (2) हिंसा मिश्रित वचन बोलने के सन्दर्भ में आचार्य अमृतचन्द्र कहते हैं छेदनभेदनमारणकर्षणवाणिज्यचौर्यवचनादि । तत्सावद्यं यस्मात्प्राणिवधाद्याः प्रवर्त्तन्ते ॥ 291 - पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, 97

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