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तर्पण करना, श्राद्ध करना, देवताओं के लिए रात्रि जागरण करना; गंगा जल को पवित्र मानना, तिर्यंचों के रूप को देव मानना; कुंआ, बावडी वापिका, तालाब खुदवाने में धर्म माननाः मृत्युंजय
आदि के जप कराने से अपनी मृत्यु का टल जाना मानना, ग्रहों का दान देने से अपने दुःख दूर होना मानना; यह सब लोक मूढता है। जो योग्य-अयोग्य, सत्य-असत्य, हित-अहित, आराध्य-अनाराध्य, के विचार रहित लौकिक जीवों की प्रवृति देखकर जैसे अज्ञानी अनादि के मिथ्यादृष्टि प्रवर्त्त हैं उसी प्रकार की प्रवृत्ति को सत्य मान कर विचार रहित होकर प्रवर्तन करना वही लोक मूढता है।
देव मूढ़ता देव मूढ़ता - वरोपलिप्सयाशावान रागद्वेषमलीमसाः।
देवता यदुपासीत देवता मूढ मुच्यते।। जो स्वयं को अच्छा लगता है उसे वर कहते हैं। वर की इच्छा करके आशावान होकर जो राग द्वेष से मलिन देवताओं को सेवन करता है-पूजन करता है उसे देवमूढ़ता कहते हैं। ___ संसारी जीव इस लोक में राज्य, सम्पति, स्त्री, पुत्र, आभूषण वस्त्र, वाहन, धन, ऐश्वर्य आदि की इच्छा सहित निरन्तर रहते हैं। इनकी प्राप्ति के लिए रागी, द्वेषी, मोही देवों की सेवा पूजा करना देव मूढ़ता है। राज्य, सुख, सम्पति आदि तो साता वेदनीय कर्म के उदय से प्राप्त होते हैं, वह सातावेदनीय कर्म कोई हमें देने में समर्थ नहीं है। लाभ तो लाभान्तराय कर्म के क्षयोपशम से होता है। भोग-उपभोग सामग्री की प्राप्ति भोग-उपभोग नाम के अन्तराय कर्म के क्षयोपशम से होती है। अपने भावों द्वारा बांधे गये कर्मों को भी देवी-देवता देने व लेने में समर्थ नहीं है। ___ जगत में कई जीव कुल की वृद्धि के लिए कुल देवी को पूजते हैं, किन्तु पूजते-2 भी किसी के कुल का विध्वंस होते देखा जाता है। लक्ष्मी के (रूपये-पैसों के लिए लक्ष्मी देवी को, रूपयों को मोहरों को पूजते हैं, किन्तु इन्हें पूजते-2 भी अनेक दरिद्र होते दिखाई देते हैं। शीतला की पूजा करते-2 भी संतान का मरण होते देखा जाता है। पितरों को मानते हुए भी रोगादि बढते देखे जाते हैं। व्यन्तर-क्षेत्रपालादि को, पद्मावती - धरणेन्द्र को अपनी सहायता करने वाला मानते हैं, यह मिथ्यात्व के उदय का ही प्रभाव है। स्वामी कार्तिकेय कहते हैं कि:
णय को वि देदि लच्छी, ण को वि जीवस्स कुणदि उवयारं।
उवयारं अवयारं, कम्म पि सुहासुहं कुणदि।। इस जीव को कोई व्यन्तर आदि देव लक्ष्मी नहीं देते हैं इस जीव का कोई अन्य उपकार भी नहीं करता है जीव के पूर्व संचित शुभ-अशुभ कर्म ही उपकार तथा अपकार करते हैं।
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