Book Title: Jain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Author(s): Hemrekhashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 12
________________ प्रकरण - १ जैन धर्म एवं साहित्य सामान्य इतिहास : किसी भी धर्म के मूल सिद्धान्तों को समझने के पूर्व उसके उद्भव और विकास की कहानी जो उस धर्म/संस्कृति की परम्परा का बोध कराती हैं, और अनेक प्रकार के ऐतिहासिक सत्य को भी अनावृत्त करती है उसे जानना समझना चाहिए । जैनधर्म का अपना भी इतिहास है, उसके उद्भव और विकास की एक लंबी कथा है, जो उनके प्रवर्तकों/प्रचारकों से सम्बद्ध है । जहाँ तक जैन धर्म के इतिहास की बात है, इस सम्बन्ध में एक लम्बी कालावधि तक भ्रमपूर्ण स्थति रही है । कोई इसे बौद्ध धर्म की शाखा समझते थे, तो कोई इसे वैदिक क्रियाकांडों के विरोध में उत्पन्न हुआ धर्म मानते थे । कोई भगवान महावीर को इसका संस्थापक मानने की भूल में थे, तो कोई इसके उद्भव का सम्बन्ध भगवान् पार्श्वनाथ से जोड़ते थे । भारतीय इतिहास के क्षेत्र में हुए अधुनातन अन्वेषणों ने उक्त मान्यताओं का निराकरण कर जैन धर्म की प्राचीनता को संपुष्ट किया है। जैन मान्यता के अनुसार जैन धर्म अनादि से है, जो समय समय पर उत्पन्न होनेवाले चौबीस तीर्थंकरों द्वारा प्रवर्तित होता रहा है । चौबीस तीर्थंकरों की यह परम्परा अनन्तकालीन है । इस युग में जैन धर्म का प्रवर्तन भगवान् ऋषभदेव ने किया था। इसके प्रमाण स्वरूप पुरातात्त्विक सामग्री, ऐतिहासिक अभिलेख एवं साहित्यिक संदर्भ उपलब्ध हैं। इन्ही के आधार पर अनेक प्राच्य व पाश्चात्य विद्वानों ने अपने गवेषणात्मक निष्कर्षों में यह बात स्थापित की है कि जैन धर्म प्रागैतिहासिक/प्राग्वैदिक धर्म है । इसके आद्य प्रवर्तक ऋषभदेव रहे हैं । जैन इतिहास की संक्षिप्त प्रस्तुति के साथ उसकी प्राचीनता का प्रमाणों के साथ यहाँ उल्लेख किया जा रहा है। शिलालेखीय साक्ष्य : जैन धर्म के इतिहास की दृष्टि से कलिंमाधिपति सम्राट खारवेल द्वारा लिखाया गया उदयगिरि, खंडगिरि के हाथी गुंफा वाला लेख अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। 'नमो Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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