Book Title: Jain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Author(s): Hemrekhashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 10
________________ प्रकरण - ५.स्वर्ग-नरक विषयक अन्य धर्मों की मान्यताएँ एवं तुलना पृ. २५५-२९१ वैदिक धर्मानुसार लोक-वर्णन : मर्त्यलोक - नरकलोक - ज्योर्तिलोक-महर्लोक, कर्मभूमि और भोगभूमि, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी काल, वर्षधर पर्वतो पर सरोवर (पृ. २५५२६२) बौद्ध मतानुसार लोक-वर्णन : लोकरचना - नरकलोक, ज्योतिर्लोक, स्वर्गलोक, क्षेत्रमाप, कालमाप, तुलना और समीक्षा (पृ. २६३-३६७) तिर्यंचों विषयक हिन्दु - बौद्ध-जैन मान्यता (पृ. २६७ - २६९) वैदिक स्वर्ग-नरक : असुरादि, देव-देवियाँ, उपनिषदों में स्वर्ग-नरक, पुराणों में स्वर्गनरक, बौद्ध धर्मपरंपरा में स्वर्ग-नरक, जैन सम्मत स्वर्ग-नरक से तुलना (पृ. २६९ २७८) ईसाई धर्म अन्तर्गत स्वर्ग-नरक की मान्यता (पृ. २७८ - २८० ) जरथोस्ती धर्मानुसार स्वर्ग और नरक (पृ. २८० - २८४ ) ईस्लाम धर्म में स्वर्ग और नरक (पृ. २८४-२८७) संदर्भ ग्रंथ सूचि चित्र १ चित्र २ चित्र ३ चित्र ४ चित्र ५ चित्र ६ चित्र ७ चित्र ८ चित्र ९ चित्र १० चित्र ११ : : : : : : : : Jain Education International 2010_03 चित्रसूचि आगमोक्त चौदह राजलोक का चित्र उर्ध्वलोक में देवविमानों का आकार एवं स्थान अधोलोक में सातों नरक का स्वरूप पहली नरक रत्नप्रभा पृथ्वी संपूर्ण चित्र रत्नप्रभा पृथ्वी का दूसरा भाग और तीन प्रस्तरें रत्नप्रभा नरक भूमि के ३ कांड नरक भूमियों में नरकावासों का आधार स्वर्ग और नरक में उत्पात पर्वत होता है । पृ. २९२-२९५ For Private & Personal Use Only पृ.३५ के सामने पृ.५८ के सामने पृ. २१२ के सामने "" प्रत्येक नरक भूमि के पांच नरकावास; माप और आकार १. महा हिंसा का फल नरक में २. अतिशय विषयाशक्ति का फल नरक में १. महा परिग्रह करने का फल नरक में २. महा आरंभ करने का फल नरक में 11 " 17 19 19 पृ. २२८ के सामने 11 www.jainelibrary.org

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