Book Title: Jain Agamo me Swarg Narak ki Vibhavana
Author(s): Hemrekhashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 8
________________ प्रकरण १. जैन धर्म एवं साहित्य पृ. १-३४ सामान्य इतिहास-कालचक्र - वर्तमान तीर्थंकर चतुर्विंशिका - भगवान महावीर एवं उनकी परंपरा (पृ. १ - १०) जैन आगम साहित्य - तीन वाचनाएँ आगमों का परिचय - अनुयोग (पृ. ११ - १९ ) - जैन धर्म में नव तत्त्व - कर्म - पुर्नजन्म - गति : नरक गति, तिर्यंच गति, मनुष्य गति, देव गति (पृ. १९-३१) प्रकरण २. जैन मान्यतानुसार लोक (विश्व) स्वरूप पृ. ३५-५७ सम्रग लोक का संक्षिप्त परिचय - सामान्य लोक स्वरूप, देवलोक, अधोलोक, मध्यलोक, उर्ध्वलोक, सिद्धलोक (पृ. ३५-४८) अनुक्रमणिका मनुष्य एवं तिर्यंचों के निवासस्थान (पृ. ४८-४९) स्वर्ग और नरक का स्थान वर्णन (पृ. ४९-५२) मोक्ष का स्वरूप तथा स्थान (पृ. ५२-५५) प्रकरण जैन आगमों में स्वर्ग ( देवलोक ) स्वर्ग (देवलोक) का अर्थ; देव शब्द व्युत्पत्ति परक अर्थ (पृ. ५८-६० ) देवों का जन्म - शारीरिक वर्णन आयुष्य स्थिति संहनन संस्थान; विभूषा; विकुर्वणा; समुद्घात; काय प्रवीचार (पृ. ६०-७३) सामान्य विशेषताएँ - गति; शरीरावगाहना; परिग्रह; अभिमान (पृ. ७३-७६) अधिक विशेषताएँ - उच्छास; आहार; वेदना; उपपात; अनुभाव; अल्पबहुत्व; दृष्टि; ज्ञान; लेश्या; गुणस्थान; प्रभाव; सुख और द्युति; इन्द्रियविषय; अंतर उद्वर्तना; राज्यव्यवस्था; गति - आगति (पृ. ७६-८७) देवों के प्रकार : (१) भवनपति देव और उनके भेद कुमारनाम की सार्थकता - स्वरूप निरूपण - इन्द्र का स्वरूप निरूपण- सामान्य देवों का स्वरूप निरूपण- इन्द्र का आधिपत्य- चमरेन्द्र की परिषदा का वर्णन - अन्य भवनपति देवेन्द्रों का संक्षिप्त परिचय-निवास स्थान- भवनों का स्वरूप - वर्ण- आहार - श्वास आदि (पृ. ८८ - १०१) - ३. Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only पृ ५८-१९५ www.jainelibrary.org

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