Book Title: Hitopadesh
Author(s): Prabhanandsuri, Parmanandsuri, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 464
________________ हितोपदेशः । गाथा-४४५ - व्रतस्य सुदृढपरिपालने चेटकनरेन्द्रकथानकम् ।। ४१९ सो भणइ तुज्झ वयणं अलिअंकाउंतहिं अहं गमिहं । जत्थ न इत्थीवयणं पि पिच्छिहं इय भणेऊण ।।१५०।। गिरिकाणणम्मि एगम्मि संठिओ तवइ सो तवं घोरं । पहियाइसयासाओ कयाइ से पारणं होइ ।।१५१।। गिरिणइकूलं वलियं तवप्पभावेण तस्स वासासु । तप्पभिई सो भित्रइ समणो किल कूलवालु त्ति ।।१५२।। अमुगत्थ अस्थि संपइ इय भणिए पमुइया इमा हियए । काऊण तित्थदंसणकवडं कमसो गया तत्थ ।।१५३।। अह वंदिउँ मुणिं तं तित्थे वंदाविऊण य पसत्थे । अब्भत्थइ भिक्खत्थं सा कवडोवासिया एवं ।।१५४।। भयवं ! संबलसेसं अस्थि मह किंपि फासुएसणियं । तं पसिऊणं गिन्हसु अणुगिन्हसुमं महाभाग ! ।।१५५।। इय तीइ भत्तिबहुमाणपेरिओ सो गओ तयावासं । पडिलाभिओ य सुमणुनमोयगे जोगसंजुत्ते ।।१५६।। अह ताण 'मोयगाणं अप्पडिहयविरियजोगमाहप्पा । जाओ से अइसारो दुव्वारो तक्खणा चेव ।।१५७।। तह तेण खेइओ सो जह न खमो अंगुवंगचलणे वि । अह मागहियाइ इमो भणिओ विणएण आगंतुं ।।१५८।। भयवं ! मज्झ निमित्तेण तुम्ह खेओ इमो समुप्पन्नो । ता सुस्सूसाइ इमं पावं परिहरिउमिच्छामि ।।१५९।। असहेण अणुनाया मुणिणा सा न्हाणमद्दणाईहिं । सव्वंगं संफासं इमस्स अणुवेलमायरइ ।।१६०।। सवियारं च पलोयइ आलवइ हसेइ दंसए पणयं । किं बहुणा हियहियओ विहिओ सो तीए अचिरेण ।।१६१।। सो चत्तलोयजत्तो वि तिव्वतवसुसियसयलगत्तो वि । गुरुवयणमंतहीणो छलिओ वेसापिसाईए ।।१६२।। अह पयडियपइभावो नीओ सो तीइ निवइपयमूले । भणियं च एस पणमइ मज्झ पई कूलवालो भे ।।१६३।। ता सप्पणयं भणिओ सो चंपेसेण भद्द ! तह कुणसु । जह कालखेवरहियं अहं विलुपामि वेसालिं ।।१६४।। सो वि हु तहत्ति पडिवजिऊण काउंतिदंडिणो वेसं । गुंमियजणअक्खलिओ वेसालीए लहु पविट्ठी ।।१६५।। तत्थ य चिंतइ एसो पहीणबलसामिया वि नणु एसा । किं न विलुप्पइ नयरी दप्पिटेण वि परबलेण ।।१६६ ।। अह भमिरेणं दिट्ठो सिरिसुव्वयसामिणो थिरपइट्ठो । गरुयारंभो थूभो सप्पडिमो चुजमप्पडिमो ।।१६७।। मुणइ य इमस्स नूणं सुमुहुत्तपइट्ठियस्स थूभस्स । माहप्पेणं एसा न विलुप्पइ परबलेहिं पुरी ।।१६८।। दिट्ठो य इमो नयरीसंरोहकयत्थिएहिं पोरेहिं । पुट्ठो य भयंत ! कया मुछिस्सइ परबलेहि पुरी ।।१६९।। वजरइ सो अणजो किं इत्तियमित्तिएण निम्विना । इह जाव इमो थूभो अखंडरूवो परिप्फुरइ ।।१७०।। ताव न वाससएण वि मुनिस्सइ रोहओ पुरी एसा । अवणीए उ इमम्मी मुञ्चइ नणु संपयं चेव ।।१७१।। एसो य पश्चओ इह इमस्स सिहरेऽवणिजमाणम्मि । परचक्कमवक्कमिही कमेण गमिही समग्गंपि ।।१७२।। इय धुत्तेणं तेणं पयारिया निवइणा निसिद्धा वि । तब्भंगंमि विलग्गा लोगा होऊण एगग्गा ।।१७३।। इत्तो कयसंकेओ समणेणं कूणिओ अवक्वंतो । जाओ य चमक्कारो जणाण तो तस्स वयणम्मि ।।१७४।। अह जायपशएहिं आकुम्मनिवेसओ तओ तेहिं । उम्मूलिओ स थूभो नयरीए जीवबीयं व ।।१७५ ।। वलिऊण कूणिएणं सालो मुसुमूरिओ पुरीइ तओ । थूभस्स चेव महिमा जं सो भग्गो किर न पुव्वं ।।१७६ ।। ___Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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