Book Title: Himalay Digdarshan
Author(s): Priyankarvijay
Publisher: Samu Dalichand Jain Granthmala

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Page 18
________________ यमुनोत्री : ७: चारों तरफ देखने से जैनत्व मालूम हुए बिना नहीं रहता । चारों ओर अनेक देवी-देवता और पशुओंकी बहुत कारीगरी युक्त मूर्तियां बनी हुई है। सामने क पुराना वटवृक्ष है । उसके चारों तरफ ढलती सीढ़ीकी मुवाफिक चौतरा बना हुआ है । उसपर जैन तीर्थंकर श्री पार्श्वप्रभु, आदिनाथप्रभु और महावीर स्वामीप्रभुकी मूर्तियाँ है । इन मूर्तियाँकी बनावट तद्दन भिन्न है । एक चौकोर पत्थर के एक बाजूके हिस्से में बीच में पार्श्व प्रभुकी प्रतिमा मस्तक रूपमें बना दी है याने ये मृर्ति पूरी न बनाते हुए शेष शीर्षका ही भाग बनाके चारों ओर बहुत सूक्ष्म कारीगरी की है। इसी तरह आदिनाथ भगवानकी भी है मगर पार्श्वनाथ से इस प्रतिमामें भव्यता ज्यादा हैं। ये दो प्रतिमायें लाल पत्थर में बनी हुई है । इनका रचनाकाल मथुरा म्युजियम में रही हुई मूर्तियों से कम नहीं मालूम पड़ता। तीसरी महावीरस्वामीकी सफेद पत्थर में है और सादी है याने कारीगरी नहीं है । पासमें लाल पत्थरका बना हुआ सिह भी हैं। ये मूर्तियां इस भरत मंदिरसे हटा दी हो, मालूम होता है । यहांका स्टेशन ऋषिकेश नामक १|| मील दूर है । उत्तराखंडके यात्रियोंको निम्न चीजे साथ रखनी चाहिए । सं० वस्तुओंके नाम संग्रहका परिमाण १ ऊनी कम्बल, ओढने बिछानेके लिये ३ अदद २ ऊनी पायताबा, पांवोंकी रक्षाके लिये २ जोड़ा ३ ऊनी पट्टी, घुटने के नीचे पांवमें लपेटने के लिये १ नोड़ी ४ लम्बी बांसकी लाठी, नीचे लोहेका बल्लुम लगा हो १ सं० ५ जुता रबरका, बाटा कम्पनीका २ जोड़ी ६ छाता, घाम और वर्षासे त्राण पानेके लिये ९ संख्या Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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