Book Title: Himalay Digdarshan
Author(s): Priyankarvijay
Publisher: Samu Dalichand Jain Granthmala

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Page 74
________________ Lasborflay Jalo Gractisit: भी नहि मिलता। परन्तु बद्रीके मंदिरको न मालूम किस कारणसे नष्टभ्रष्ट न करते हुए अपना स्वत्व (अधिकार) नमा कर केवल मात्र प्रतिमाके दो हाथ और बढाकर चतु(जरूप नारायणके नामसे उस प्रतिमाको प्रकट की। यथार्थमें प्रतिमा दो हाथवाली व पद्मासनमें २।फुट ऊंची और परिकरवाली है तथा उपर छत्र बना हुआ है । उत्तरा खण्डमें जितने भी मंदिर है उन सबसे इसकी बनावट भिन्न है अर्थात् यह मंदिर सुचारु रूपसे जैन शैलीमें बना हुआ हैं। जैसे कि, दरवाजा, रंगमंडप, गूढ मंडप, कोरी तथा गभारा जैन शैलीमें हैं व मंदिरके उपरका गुम्बज भी जैन शैलीसे बना हुआ हैं। मंदिरके अंदर जैन तथा सुनार प्रवेश नहीं करने पाते । सुनारके प्रवेश न करने देनेका कारण दर्याफ्त करने पर यह ज्ञात हुआ कि किसी सुनारने पार्श्व प्रतिमाका भाषामें पारस प्रतिमा अपभ्रंश है, इसलिए पारसको पारसमणि समझ कर प्रतिमाकी अंगुली काटनेकी कुचेष्टा (धृष्टता ) की थी, अतः सुनार मात्रका प्रवेश होना बन्द किया गया तथा जैनोंको इसीलिये कि यह चतुर्भुनरूप नारायण नामक प्रतिमा चास्तवमें जैनोंके तेइसवें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथकी होने की वजह से। बद्रीसे दो माईलकी दूरी पर एक मणिभद्रपुर नामक ग्राम है, जो कि इस समय माणा नामसे प्रसिद्ध हैं। वहां पर गन्धर्व जातिके दो सौ ब्राह्मणों के घर है। यह गन्धर्व नाति जैनियों में भोजक तथा गन्धर्वके नामसे प्रसिद्ध है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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