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શ્રી યશોવિજયજી જૈન ગ્રંથમાળા
छाछासाहेब, लावनगर. झेन : ०२७८-२४२५३२२
३००४८४७
2769
5
नं३ष्ट
हिमालय दिग्दर्शन
shovijay jata bilathmer
लेखक –
मुनि प्रियंकरविजय
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बाई समु दलीचन्द जैन प्रन्थमाता नं. ३
हिमालय दिग्दर्शन
लेखक
मुनि प्रियंकरविजय
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प्रकाशक :
मानभाई छगनभाई
सेक्रेटरी बाई समु दलीचंद जैन ग्रंथमाला लांघणज (गुजरात )
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मुदक:शेठ देवचंद दामजी
प्रानंद प्रेस - भावनगर.
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प्रथमावृत्ति
संवत १९९७
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॥२॥
धनिकः कः? कोऽपि नास्ति क्षमो लक्ष्मी, रक्षितुं धन-चञ्चलाम् । शीघं सहय एतस्याः , वृहद्रक्षण-मुच्यते जगत्यां सार्थकं जन्म, पालिताः यैनिराश्रिताः । लब्धा चामर कीर्तिस्तैः, कष्टिनः रक्षिता भृशम् छत्र
वदातपान्नित्यं, मोक्षते यो दुःखात्तथा । टालितं याचनं नैव, आत्मकल्याणहेतवे सम्यक सुपुस्तकानान्तु, विदधाति प्रकाशनम् । आत्मवत् रक्षते यस्तु, रंकानिराश्रितान्तथा गुणिनां तुष्टचित्तानां, न वित्तं निजभुक्तये। वाकाय-मनसा नित्यं, सीदतां
हि
॥४॥
पालनाय
॥५॥
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हिमालय दिग्दर्शन
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आधुनिक युगवर्ती मुनिराज श्री प्रियंकरविजयजी महाराज
आनंद प्रेस-भावनगर.
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कञ्चित्
दुनियावी यात्रा में साधु मुनिराज और गृहस्थोंको किसी प्रकारकी तकलीफ पेश न हो उसी उद्देशसे यह 'हिमालय दिग्दर्शन' नामक छोटो सी पुस्तिका प्रकाशित की जाती है।
हिमालयके स्थित स्थानों को देखनेकी बहुत समय से मेरी इच्छा थी लेकिन वहां जानेसे अनेक प्रकारके कष्ट सहन करने पडते हैं और कई यात्री वहां बीमार होकर मर जाते हैं । कई वहां नहीं मरते हैं तो मकान पर आकर मरते हैं और कई मरते नहीं है तो जरूर दीर्घकाल तक बीमारीसे कष्ट भोगते हैं । इन बातों से कई दफे जानेकी तैयारी करके भी मैं मुलतव रखता था । मगर इस वक्त तो मने संपूर्ण साहस करके जानेकी फक्त दो ही रोजमें तैयारी की और अहमदाबादसे प्रयाण भी कर दिया कि जो बिहार दिग्दर्शन के दूसरे भाग सें मालूम कर सकते हैं । प्रयाणके समय मेरी वृद्धमाता का आशीर्वाद हिमालयके दुर्गम स्थानों में मंत्र समान था। इसके सिवाय मेरे मित्र नबसौराष्ट्र के तंत्री श्रीयुत ककलभाई कोठारी और श्रीयुत हरगोविंददास पंड्या, प्रेमजीभाई मीठाभाई हेड मास्टर, सोमाभाई पटेल, छगनभाई पटेल ( लांघणज ) व रतोलाल पी. शाहकी मार्ग विषयक जानकारी बहुत बहुत जरूरी थी ।
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इस पुस्तककी अावश्यकता सम्बन्धी या इसमें रहो हुई वास्तविकताके सम्बन्धमें मुझे कुच्छ भी लिखनेकी आव. श्यकता इसलिये मालूम नहीं हुई है कि पुस्तिका ही स्वयं आवश्यकता और वास्तविकता बतला दे सकती है।
अन्तमें इस पुस्तकको रचनामें मुझे ब्रह्मचारी चक्रधरजी रचित श्री बदरीनाथ यात्रा और धी महाबीरप्रसाद द्विवेदी चित 'श्री बदरी-केदारकी झांकी' नामकी पुस्तकसे सहायता मिली है एतदर्थ दोनों लेखक महाशयोंका आभार मानता हूं।
--प्रियंकरविजय
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प्रकाशकका निवेदन
हिन्दु संसार में हिमालय को भिन्नभिन्न पुस्तिकायें प्रकाशित हो चुकी हैं मगर मुनिराजश्री प्रियंकरविजयजीकत यह "हिमालय दिग्दर्शन" नामक पुस्तिका हिन्दु संसार में अग्रस्थान लेनेका सौभाग्य प्राप्त कर चुकी है, क्योंकि इनकी रचना ही ऐसी है किसीको असुविधाका कारण नहीं है. प्रियंकरविनयनोने हिंद भरमें स्थल स्थल पर विहार किया है और उसने इस पुस्तिका में अपने अनुभवका अच्छा चितार दिया है। इसीसे उत्साहित होकर हमने इस पुस्तिकाको प्रकाशित किया है। आशा है कि सहृदय पाठकगण इसे अपनाकर हमे अनुगृहित करेगें। ___ श्रीयुत शेठ देवचंदभाई दामजी मेनेजर आनंदप्रेस भावनगरने इस पुस्तकके छोपनेमें तथा अन्य प्रकारसे भी हमें जो सहायता पहुंचाई है इसके लिए हम उनके आभारी है ।
-प्रकाशक
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मुनिराज श्री प्रियंकरविजयजीकृत ग्रंथो
१ विहार दिग्दर्शन भाग १ (हिन्दी) भेट
२ बिहार दिग्दर्शन भाग २
भेट
३ हिमालय दिग्दर्शन
भेट
(गुजराती) भेट
एक झंडा नीचे आवो
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( जैनधर्मना पुनरुद्धारनी विचारणा )
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हरद्वार से
यमुनोत्री
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श्री बद्रीनाथाय नमः
दिन
* हरद्वारसे यमुनोत्री माईल १६५ समय देनोपनं० नाम माईल स्थान सुबह
सत्यनारायण ७ धर्मशाला
ऋषिकेश ८ ३ लक्ष्मणमुला ३ , ४ गरुड़चट्टी २ ,
नाई मोहन ७
बन्दर भेल शाम ७ महादेव ३ " सुबह ८ काण्डी ७ ,
शाम सुबह
Gm, com
*यह स्थान गंगा तटके दाहिने ओर बसा हुआ है। यह हिन्दू धर्मका परम पवित्र तीर्थस्थान है । हिमालय पहाड़के गंगोत्री नामक स्थानसे निकलकर सैकडों मील दुर्गम पहाडों के बीच बहती हुई गंगा मैदानमें सर्व प्रथम यहीं से दिखाई देती है। इसीसे इसे गहाद्वार कहते हैं। वर्तमानमें बह स्पान हरद्वार (हरिद्वार) के नामसे प्रसिद्ध है। प्राचीन माया क्षेत्र भी है। वहां पर धर्मशालाएं अनेक हैं। यहांका जल वायु बहुत ही स्वास्थ्यप्रद है । उत्तरीय भारतके हिमाच्छादित पहाडी प्रदेशका अन्त तवा मैदान का प्रारम्म इसी स्थानपर होता है। बर्फसे ढकी हुई हिमालय
की चोटीका प्रातःकालीन यहाँ दृश्य बड़ा ही मनोमुग्धकारी है। यहां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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हिमालय दिगदर्शन
शाम
" शाम
व्यासघाट ४ धर्मशाला ७ सुबह
देवप्रयाग खाडा १० धर्मशाला बरुड्या १० चट्टी क्यारी ७ , टिहरी ६ धर्मशाला
सिराइ ५॥ चट्टी शाम
भल्डियाना ६ धर्मशाला १३ सुबह
नगूण १० चट्टी
धरासु ५ धर्मशाला १४ सुबह
बरमखाला ९ चट्टी , शाम
सिलक्यारी ५ धर्मशाला १५ सुबह १९ गंगनानी १० , ब्रह्माण्ड (हरकीपैड़ी) कुशावर्त, बिल्वकेदार, नील पर्वत तथा कनखल ये पांच प्रधान तीर्थ हैं।
ब्रह्मकुण्ड (हरकीपड़ी)-इस कुण्ड मे एक तरफसे मझाकी धार आती है और दूसरी तरफ निकल जाती है । कुण्ड में कहीं भी जल कमरसे अधिक गहरा नहीं है । इस कुण्डमें विष्णु चरण पादुका, मनसा देवीका मन्दिर तथा राजा मानसिंहकी छत्री है । हमेशा इस स्थानपर रात-दिन मनुष्यों की भीड़ लगी रहती है । सायंकाल इस स्थानकी आरती पदी सुन्दर मालूम होती है। कुंभ मेले के समय सी बह माधुओंका स्ान होता है।
यहांसे सत्यनारायण जाते समय भीमगोग नामसको गायें सब रेलवे पुलके नीचे स्थान है । यहाँ एक मन्दिर के चुतस्के भामे
कुम है। कुण्डमें पहाड़ी सोतेका पानी आता है। लोगोंका कहना है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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यमुनोत्री
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१६ , २० यमुनाचट्टी ६ ,
हनुमानचट्टी " शाम
जानकीचट्टी १७ सुबह
यमुनोत्री नोंध नं०
(१) सत्यनारायण यह हिन्दुओंका परम पवित्र तीर्थ हैं। मूर्ति भन्य और आह्लाद उपजानेवाली है। पासमें पानीका मरना है । उसको कुण्डरूपमे बना दिया है, जिसमें यात्री स्नानकर अर्चन-पूजन करते है। यहां बाबा कालीकमलीवालेकी धर्मशाला, सदाव्रत और औषधालय है । यहांका स्टेशन रायवाला है। यहाँसे ऋषिकेश जाते हुए बीचमे बेतका जंगल बहुत आता है।
(२) ऋषिकेश-यह हिन्दू धर्मका परम प्राचीन पवित्र गंगा किनारे तीर्थस्थान है। यहां राम-जानकीका मंदिर प्रसिद्ध है। मंदिरके आगे कुब्जाम्रक कुण्ड है, जिसमें यात्री स्नानकर अर्चन-पूजन करते हैं। इस मंदिरके आगे होकर गंगा बहुत प्रबल वेगमें बहती हुई मालूम होती है। यहां आत्मकल्याणके लिये साधु-संन्यासियोंका अधिक निवास रहता है। इनकी व यात्रियोंकी सेवा-शुश्रूषाके लिये राजा-महाकि भीमसेनने यहां तपस्या की थी और उनके गोडा (पैरके घुटने) टेकनेसे यह कुण्ड बन गया था और इसी कारण इसका नाम भीमगोडा पर गया । स्थान अच्छा है । हरद्वार और भीमगोड़ाके स्टेशन है।
पता-पोस्ट मास्टर साहेब
हरद्वार (यू० पी० )
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हिमालय दिग्दर्शन
राजाओं और समाजकी तरफसे बहुतसे क्षेत्र बने हुवे है। निसमें बाबा कालीकमलीवालेका और पंजाब-सिंध क्षेत्र बड़ा हैं। बाबा कालीकमलीवालेके तरफसे साधु-संन्यासिओंकों उनकी इच्छानुसार दाल, भात, रोटी आदि सिद्धान्नका मोजन दिया जाता है । सीधा चाहनेवालोंको भण्डारसे सदाव्रत मिलता है। इस धार्मिक संस्थाकी ओरसे एक अनाथालय और आयुर्वेदिक औषधालय खुला हुआ है । आयुर्वेद विद्यालय और संस्कृत पाठशाला भी स्थापित है। उत्तराखण्डके यात्रियोंको दो प्रकारकी औषधियां बिना मूल्य दी जाती है, उनमें एक जलविकारको दूर करती है और दुसरी अन्नको पचाकर मलावरोध तथा दस्तके विकारको नष्ट करती है । उत्तराखण्डकी यात्रामें कालीकमलीवालेकी ओरसे बहुत सी जगह धर्मशालाएं और औषधालय बने हुए है, इतना ही नहीं सदाव्रत भी खोले हुए है। रास्तेमें प्याऊओंका भी यात्राके टाइम ठीक बन्दोबस्त रहता है । अतः उत्तराखण्डकी यात्रा जो कठिन हो गई थी वह आज बाबा कालीकमलीवालेके शुभ प्रयत्नसे वे कठिनाइयां दूर हो चूकी है । साधु-संन्यासी और यात्रियोंकों चाहिये कि उत्तराखण्डकी यात्राके प्रयाणपूर्व इस क्षेत्रकी मुलाकात लेकर प्रयाण करे । यहां भरत वाचनालय और भरत मंदिर है इस मंदिर की बिना इजाजत यहां कोई किसी भी प्रकार से स्थान नहीं बना सकता है; याने यहां का सर्वे सर्वा मरतमंदिर है। यह मंदिर असलमें जैनों का था मगर किसी जमानेमें इसपर बौद्धोंका साम्राज्य रहा और इस वक्त वैष्णव अधिकारमें है। इस मंदिरके. शिखरका माग बौद्धशैलीमें है, और नीचेका भाग जैनत्यसे परिपूर्ण है।
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यमुनोत्री
: ७:
चारों तरफ देखने से जैनत्व मालूम हुए बिना नहीं रहता । चारों ओर अनेक देवी-देवता और पशुओंकी बहुत कारीगरी युक्त मूर्तियां बनी हुई है। सामने क पुराना वटवृक्ष है । उसके चारों तरफ ढलती सीढ़ीकी मुवाफिक चौतरा बना हुआ है । उसपर जैन तीर्थंकर श्री पार्श्वप्रभु, आदिनाथप्रभु और महावीर स्वामीप्रभुकी मूर्तियाँ है । इन मूर्तियाँकी बनावट तद्दन भिन्न है । एक चौकोर पत्थर के एक बाजूके हिस्से में बीच में पार्श्व प्रभुकी प्रतिमा मस्तक रूपमें बना दी है याने ये मृर्ति पूरी न बनाते हुए शेष शीर्षका ही भाग बनाके चारों ओर बहुत सूक्ष्म कारीगरी की है। इसी तरह आदिनाथ भगवानकी भी है मगर पार्श्वनाथ से इस प्रतिमामें भव्यता ज्यादा हैं। ये दो प्रतिमायें लाल पत्थर में बनी हुई है । इनका रचनाकाल मथुरा म्युजियम में रही हुई मूर्तियों से कम नहीं मालूम पड़ता। तीसरी महावीरस्वामीकी सफेद पत्थर में है और सादी है याने कारीगरी नहीं है । पासमें लाल पत्थरका बना हुआ सिह भी हैं। ये मूर्तियां इस भरत मंदिरसे हटा दी हो, मालूम होता है । यहांका स्टेशन ऋषिकेश नामक १|| मील दूर है । उत्तराखंडके यात्रियोंको निम्न चीजे साथ रखनी चाहिए ।
सं०
वस्तुओंके नाम
संग्रहका परिमाण १ ऊनी कम्बल, ओढने बिछानेके लिये ३ अदद २ ऊनी पायताबा, पांवोंकी रक्षाके लिये २ जोड़ा ३ ऊनी पट्टी, घुटने के नीचे पांवमें लपेटने के लिये १ नोड़ी ४ लम्बी बांसकी लाठी, नीचे लोहेका बल्लुम लगा हो १ सं० ५ जुता रबरका, बाटा कम्पनीका २ जोड़ी ६ छाता, घाम और वर्षासे त्राण पानेके लिये ९ संख्या
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हिमालय दिगदर्शन
७ मोमी कपड़ा, मार्गमे वनादि वर्षासे बचानेको २ गज ८ लालटेन
१ संख्या ९ मोमबत्ती
६ अदंद १० साबुन, वस्त्रोंकी सफाईके लिये नं० ५०१ ६ टिकिया ११ साबुन, स्नानके लिये हमाम या लक्स ३ टिकिया १२ लोटा
१ संख्या १३ गिलास
१ संख्या १४ कपड़ेकी बाल्टी
१ संख्या १९ अमृतधारा
शीशी १ १६ अमृतांजन
शीशी१ १७ क्लोरोडीन
शीशी १ १८ टिक्चर आफ आयोडीन
शीशी १ १९ स्वादिष्ट चूर्ण
१ छटांक २० कूनाइन
५० गोली २१ हाजमा वटी
५० गोली २२ दस्तावर वटी
२५ गोली २३ डष्टिंग पौडर
आधा छटांक २४ रोल्ड वैण्डेज (पट्टी)
(६ गज २) २५ मरहम
आधा छटांक २६ स्टिचिंग प्लास्टर
६ इञ्च टुकडा २७ रूप
आधा छटांक २८ कैंची २९ चाकु
३० सत्ता ।
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यमुनोत्री
:९: यात्रियों के लिये ध्यान देने योग्य बातें
(१) उत्तरा खण्डकी यात्रा वैशाख महीने से आरम्भ होती है और महीने तक जारी रहती है। यमुनोत्री, गंगोत्री, केदार और बद्रीनाथके यात्री वैशाख शुक्ल तृतीयाको, गंगोत्री, केदार और बद्रीनाथके यात्री ज्येष्ठ वदि तृतीया को, केदार और बद्रीनाथ के यात्री ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को, और बद्री के यात्री आषाढ़ बदि तृतीया को रवाना होते हैं।
(२) यात्रा लाईनमें अन्न बहुत महँगा मिलता है, मगर दुकानदारोंको खराब जिन्स बेचनेका अधिकार नहीं है, फिर भी जिन्स अच्छी न हो तो उसकी रिपोर्ट इलाका सफाई इन्स. पेक्टरके पास कर सकते है। यह बात खास ध्यानमें रक्खें कि व्यापारी लोगअपनी चट्टीमें विना चीज खरीदे ठहरने नहीं देते हैं। सो चार-आठ आनेका माल जरूर खरीदना होता है। माल खरीदनेसे पकाने वास्ते आवश्यक बर्तन बिना मूल्य लिये
(३) यात्रा के समय साधुके चोलेमें बहुधा चोर और जेबकटे यात्रियों के साथ हो जाते है और मौका पाकर चोरी कर लेते हैं। इस लिये यात्रिओं को चाहिये कि बहुधा होशियारीके साथ अपनी सफर करें ।
(४) यात्रियोंको उचित है कि सूर्योदयसे पहिले ही लगभग ४ चार बजे प्रातःकाल अपनी यात्रा प्रारम्भ कर दें और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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हिमालयदिग्दर्शन ९ बजेसे पहिले २ विश्राम कर लें। व इन पुस्तकमे बताये हुए प्रोग्राम के अनुसार अपना सफर जारी रक्खें ।
(५) यात्रियों को उचित है कि कितनी ही प्यास लगने पर भी खुले गधेरों (झरनों) में पानी न पीते हुये केवल वहीं का पानी पीवे कि जहां नल लगा हो। आगे देवप्रयागसे. यमुनोत्री, यमुनोत्रीसे गंगोत्री और गंगोत्रीसे त्रिजुगी नारायण तक पानीके नल लगे हुये नहीं हैं इसलिए स्वच्छ पानीकी नगह देखकर पानी काममें लेना उचित है । सारे उत्तराखण्ड में “गोपेश्वर"के सिवाय कहीं कुआं देखने को न मिलेगा।
(६) देवप्रयाग से यमुनोत्री, गंगोत्री और गंगोत्री से त्रिजुगी नारायण तक कारास्ता टिकरी रियासतमें होकर जाता है। रास्ता इतना अच्छा नहीं हैं कि जैसा ऋषिकेश से देवप्रयाग का है। त्रिजुगी नारायणसे आगेका रास्ता ऋषिकेश से देवप्रयाग तक के रास्ते से अच्छा है।
(७) यात्रियोंको उचित है कि प्रत्येक चट्टीसे आगे चलने से पहिले हवा बादल और उन दिनोंकी मौसमका पूरा ध्यान रखें, क्योंकि बारिस व ओले बेटाइम और असाधारण मिरते हैं।
(८) यात्रियोंको उचित है कि अपने साथीदारको कभीन छोड़े। उसकी तबीयत बहुत खराब हो गई हो तो समीप औषघालय या अस्पतालमें चिकित्सा करने वास्ते रख मागे प्रयाण करें मगर रास्तेमें कभी भी छोड़ आगे न बढ़ें। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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यमुनोत्री
: ११:
(९) यमुनोत्री, गंगोत्री और विजुगी नारायण तक डाक 'घरकी बहुत असुविधाएं है। मगर त्रिजुगी नारायणसे केदार
और बद्रीके रास्ते जगह २ डाकघर है और ऋषिकेशसे सीधे बद्री तक तो डाकघर की साथ टेलीग्राफ ऑफिस भी है।
(१०) ऋषिकेशसे देवप्रयाग तक टिहरी रियासतमें होकर मोटर जाती है। और वहांसे केदार-बदीके रास्ते श्रीनगर तक भी मोटर जाती है मगर पैदल यात्रा करना ही यात्रीको उचित होता है।
(१९) अब हवाई जहाजसे भी यात्राका प्रबन्ध हो गया है । अब तक केवल हरिद्वार, बद्रीनाथके मार्गमें गौचर माइल ११० तथा केदारनाथके मार्गमे अगस्त मुनि माइल १०६-ये तीन स्टेशन ही हवाई जहाजके बने हैं पर आगे नन्दप्रयाग, पीपलकोटी तथा पुरी बदरीनाथमें भी इसके स्टेशन बननेकी तनवीजा है। हरिद्वारसे हवाई जहाजमे बैठकर यात्री एक-एक घण्टे में इन दोनों स्टेशनोंको पहुंच सकता है । जो यात्री हरिबारसे हवाई नहाजमें अगरत मुनि और वहांसे पैदल या डांडीमें केदारनाथ और बद्रीनाथ होकर गौचर लौट आवे उसे केवल २२६ मीलकी यात्रा पैदल करनी पड़ती है जो १५. दिन में पूरी हो सकती है । जो यात्री गौचर तक हवाई जहाज होकर केवल बदरीनाथके ही दर्शन करना चाहे उसे १४० मील के करीब पैदल चलना पड़ता है। जो केवल १० दिनमें
हो सकता है । जहाजका किराया हरद्वारसे गौचर या अगस्त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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: १२ :
हिमालय दिगदर्शन
मुनि तक प्रत्येक स्थानके लिये केवल आने या जानेका एक पूरे सवारका ४५-४५ रुपया है। यदि यात्री आनेजानेके दोनों सफर जहाजमें ही करे तो उसे आने-जानेका 'फी सवारी केबल ७२) ही रुपया देना पड़ता है। जो लोग हरिद्वारसे जहाजमें बैठकर बिना उतरे आस्मान ही से केदार-बदरीका दृश्य देखकर हरिद्वार ही आकर उत्तर जायं, उनके लिये जहाजका भाड़ा १७५) नियत है । गौचर और अगस्त मुनिमें जहाज उतरनेवाले यात्रीर्यों के लिये कुली, डांडी इत्यादिका भी प्रबन्ध रहता है पर इसके लिये हवाई जहाजवालोंको एक सप्ताह पहिले निम्नलिखित पतेसे लिखना पड़ता है।
"दी हिमालय एयरवेज लिमिटेड, नयी दिल्ली"
यहांसे थोडी दूर कैलास-आश्रम नामक स्थान है, इस जगह शंकराचार्यजीकी गद्दी और उनकी मूर्ति है। अमिनय चन्द्रशेखर महादेवका मन्दिर हैं। कुछ ही दूर चलने पर आगे मौनीबाबाकी रेती है। यह स्थान टेहरी-गढ़पाल-राज्यमें है। टेहरी-दरबारकी ओरसे यहां प्रबन्ध है 'कि यात्रियोंका सामान तौलवाकर कुलियोंको सौंपनेके 'पहिले उनका नाम, पता-ठिकाना लिखकर एक चिट्ठी तैयार करके उसपर कुलीकी सही बनवाकर यात्रीको दी जाती है। उसी प्रकार दूसरी चिट्ठी यात्रीकी सही कराकर कुलीको मिलती है। इससे मार्गमे कुली के भागने अवता
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यमुनोत्री
: १३ :
चोरी-बटवारीका भय नहीं रहता। कंडी, झप्पान और दांडी ढोनेवाले कूली हरद्वार और ऋषिकेशकी अपेक्षा अधिकांश इसी जगह मिलते हैं। बांसको चीरकर उसके पतले सीकचोंसे मोढेके आकारकी बनी टोकरी जिसके पीछे की ओरका आधा हिस्सा कटा रहता है, इसको केडी कहते है। इसमें यात्रियोंका सामान लादकर अथवा यात्री बाहरको पांव लटकाकर बैटता है, उसको पीठपर लादकर कुली ले जाता है, किन्तु यह सवारी यात्रियों को कष्टदायक होती है । कंडीकी अपेक्षा झप्पान में आराम रहता है, इसकी बनावट छोटे तामजान के सदृश होती है और चार कूली कन्धे पर लेकर चलते हैं। वे अपनी ओर से झप्पान रखते हैं । झप्पान से भी बढ़कर आराम यात्रियोंको दांडीमें मिलता है। परन्तु दांडी कुली लोग नहीं रखते वह यात्रियोंको खरीदना अथवा बनवाना पड़ता है और इसकी बनावट झप्पान से मिलतीजुलती होती हैं। भाडे के टव भी मिलते हैं। यही चारों सवारियां इस रास्तेके लिये प्राप्त होती है। इस स्थानके सिवा आगे पहाड़में भी कहीं कहीं ये सवारियां मिल जाती है।
कुलियोंके भाडेकी दर
कुली, झप्पान तथा दांडीके कुलियोंका भाड़ा प्रायः की कुली एक रुपया रोज के हिसाब से पड़ता है । कभी.
कभी यह दर बढ़ कर सवा रुपया रोअ तक हो जाती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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हिमालय दिगदर्शन कभी इससे भी कम-ज्यादा हो जाता है। जब कुली कम रहते हैं और उनकी मांग अधिक रहती है तब भाडे की दर तेज हो जाती है और जब कुली अधिक रहते हैं और उनकी मांग कम रहती है तब भाडेकी दर घट जाती है। खाद्य पदार्थोकी तेजी और मंदीसे भी भाडेकी दर पर बहुत असर पड़ता है। कुली लोग प्रायः झप्पान या कंडी में बैठनेवाले सवार को देखकर अथवा तौलकर सारे सफर का ठेका करते हैं। वे मंजिलोंको गिन कर और रुपया रोज या सवा रुपया रोज के हिसाब से ठेका नहीं ठहराते पर उनका ठेका प्रायः ऊपर लिखी शहरके आधार पर कम-ज्यादा होता है। यात्री लोगोंको जिन्हें कंडी अप्पान अथवा दांडीके लिये कुली ठहराने हों उन्हे चाहिये कि इस पुस्तकमें लिखी हुई 'चट्टियोंकी सूची' को देख कर सारे सफर का फासिला मालूम कर लें और उस फासिलेकी मंजिलें औसतन १२ मील फी पड़ावके हिसाब से निकालकर उस पर फी कुली एक रुपया फो पड़ाव लगा कर सारे सफर का औसतन भाडा मालूम कर लें। कंडीवाले एक मन (४० सेर) बोझा ढोते हैं । यदि सवारी स्थूलकाय हुई तो झप्पानवाले कहार कुछ अधिक मजदूरी ठहराते हैं। कुलियोंको नित्य जलपान, प्रधान तीर्थस्थानों में खिचडी और विराम के दिनों में पूरा भोजन ठहराव के अनुसार यात्रीगण मजदूरी के अतिरिक देते हैं। पता-पोस्ट मास्टर साहब
ऋषिकेश (यु. पी.) (३) लक्ष्मण झूला यहां भागीरथी (नेगा) किनारे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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यमुनोत्री
: १५ : .
लक्ष्मणजीका प्रसिद्ध मन्दिर है । भागीरथीका पाट कम है मगर गहराई अधिक है । अब सीढ़िये बन जाने से यात्री बहुत सरलतासे नीचे जाकर गंगाजी और ध्रुवकुण्ड में स्नानअर्चनादि करते है । यहां बाबा काली कमलीवालेकी धर्मशाला और सदाव्रत है । गंगाजीके उस पार सीताकुण्ड और सूर्यकुण्ड है । कुछ बस्ती, तपस्त्रीओंके आश्रम, मंदिर, धर्मशालाएं और पाठशाला है । उस पार जानेके लिये कलकत्तेके राय सूरजमलजीके परिश्रमसे बना हुआ पुल है। उसे झूला इस लिये कहते है कि लोहेके रस्सोंपर लटकता हुआ बना है, नीचे खम्भे नहीं हैं । उत्तराखण्डकी यात्रामें ऐसे झूले जगह जगह पर बने हुए है । इस स्थानसे पहाडोंमें सफर करना शुरू होता है। यहांका स्थान रमणीक और चित्ताकर्षक है ।
( ४ ) गरुड़ चट्टी —यहां गरुड़जीका जलमंदिर है । यहांकी धर्मशाला विशाल रूपमें दो मंजिली है। यहां अनार, केला, आम आदिके हरे-भरे वृक्ष - कुंजसे यहांकी शोभा मनको अपूर्व आनन्द पहुंचाती है। यहांसे "महादेव सेण " चट्टी ६|| मील है, वहां पंचायती धर्मशाला और सदाव्रत है । महादेव सैणसे “नाई मोहन " चट्टी ०॥ मील है और वहांसे आगे ० मील धर्मशाला है। गरुड़ चट्टीसे आगे आगे पहाडोंपर खेतोंकी धनुषाकार क्यारियां दृष्टिगोचर होती है ।
(५) नाईमोहन चट्टी - यहां बाबा कालीकमलीवालेकी धर्मशाला है । धर्मशालाके पास फूल नदी है । यहांसे आगे ४ भीलकी फिर बड़ी बीजनीसे आगे १ मील
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. १६ :
हिमालय दिगदर्शन
तककी कड़ी चढाई शुरू होती है । यहांसे दो मील छोटी बीजनी तक पानी का भी कष्ट रहता है। यात्रीको चाहिये कि ये चढाई सुबह जल्दीसे पार करनेपर एक मीलकी साधारण चठाई तय करनी होगी, बादमें ३ भील तक उतार ही उतार होगा।
(६) बन्दरमेल चट्टी-यह चट्टी नीचे भागीरथीके किनारे हैं । यहां गरमी अधिक रहती है । यहांसे आगे कुछ सीधा मार्ग तय करने पर ०॥ मीलकी कड़ी चढाईका अनुभव करना पड़ता है, बादमें कुछ उतारके बाद सीधा रास्ता है । बीचमें प्याऊ रहती है।
(७) महादेव चट्टी- यहां शिव-पार्वतीका मन्दिर है यहाँका स्थान अच्छा है।
. (८) काण्डी चट्टी-यहाँकी बस्ती बड़ी है । यहाँ मोपालजीका मंदिर हैं। उसके सामने जामुन-वृक्षकी छायामें लम्बी तिपाई रक्खी है, उसपर थके-माँदे यात्री बैठकर विश्राम लेते है। यहां अस्पताल है। यहाँसे आगे करीब २॥ मील मानेपर o मील असाधारण उतार आती है, उतारके बाद भूला पार कर व्यासघाट जाया जाता है।
(९) व्यासपाट-यहाँ व्यास गंगा और भागीरथी का संगम है। व्यासजीका मंदिर है। बाजार ठीक है । यहाँ संगमपर स्नान होता है । यहाँ बाबा कालीकमली वालेकी
धर्मशाला और सदाबत है । व्यासजीका असल मंदिर आगे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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नमुनोत्री
रास्तेमें मोलकी दूरी पर है। यहांसे भागे १ माइल पर साखी गोपालका मन्दिर और बगीचा है, स्थान रमणीय है।
(१०) देवप्रयाग-यह पहाइपर बसा हुआ रमणीक कस्बा है। बस्ती अलकनन्दा गंगाके दोनों किनारेपर ब्रिटिश और टिहरीकी हदमें बसी हुई है। यहां का बाजार बड़ा और अच्छा है। यहांपर डाकखाना, तारघर और पुलिस स्टेशन है। यहां बाबा कालीकमलीवालेकी धर्मशाला और सदाव्रत है। यहां पानीकी बहुत मुसीबत रहती है, क्योंकि नल में पानी बहुत कम आता है और नदीका पानी लानेमें नदीकी अधिक गहराई की वजहसे मुश्किल होता है। यहां पण्डोंके करीब ४०० घर है और ये बहुत सफाई से रहेनेवाले होते है-मानो व्यभिचारका प्रथम स्थान । यहां अलकनन्दा और भागीरथी का संगम होनेसे यात्री लोग स्नान करते है। यमुनोत्री, गंगोत्री होकरके केदार और बद्री जानेवाले यात्रियोंके लिये मागीरथी गंगाका पुलको पार करके टिहरी रियासतमें होकर रास्ता जाता हैं। यहांसे खसाडा चट्टी जाते समय मागे कुछ कठिन है, बीचमें ५ मील पर धौलार घाटका मरना और मागे १ मीलपर बिडकोट है, मगर वहां ठहरने योन्य स्थान नहीं है। इसलिये यात्रिओंको चाहिए कि वे इन स्थानों में कुछ मारामकर "खर्साडा" चट्टी पहुच जाय ।
पत्ता-पोस्ट मास्टर साहेब मु० देवप्रयाग (५० पी० उत्तराखण्ड)
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हिमालय दिग्दर्शन
(११) खर्माडा चट्टी - यहां एक छोटी धर्मशाला है। खानेपीनेकी पूरी चीजें यहां मिलती नहीं हैं। स्थान अच्छा है मगर जलका कष्ट है। यहांसे आगे रास्ता ठीक है ।
: १८ :
(१२) बरुड्या चट्टी - यहां ठहरने वास्ते स्थान अच्छा नहीं है । खानेपोनेकी चीजें भी ठीक नहीं मिलती है। यहांसे "क्यारी चट्टी' ७ माइल होती हैं ।
(१३) क्यारी चट्टी - यहां ठहरने वास्ते स्थान अच्छा नहीं | यहांसे आगे ४ मील जानेके बाद टिहरी तक उतार ही उतारका रास्ता है ।
(१४) टिहरी - टिहरी स्टेट है और भागीरथी व भिलन गंगा के संगम पर बसा है। संगमस्थानको गणेश प्रयाग कहते है। लोहे के झूलेसे भिलंगना नदीको पार करके नगर में जाना होता है। यहां राजप्रसाद देखने योग्य है। यहां सिक्खोंकी एक छोटी धर्मशाला है। यहां डाकघर, तारघर और पुलिस स्टेशन है। यहां स्टेट मन्दिर से सदाव्रत भी मिलता है। यहांके वर्तमान नरेश नरेन्द्रशाह बहादुर
पत्ता - पोस्ट मास्टर साहेब
मु० टिहरी (यू० पी० उत्तराखण्ड)
(१५) सिराई -स्थान अच्छा है। यहां आवश्यक खानेपीनेकी चीजें मिलती है। यहांसे आगे ॥ मीलकी कड़ी चढ़के बाद भील्डयाना तक उतार ही उतार मिलेगा ।
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यमुनोत्री
(१६) भील्डयाना यहां बाबा काली कमलीवाले की धर्मशाला और सदावत है। स्थान अच्छा है। यहां डाकघर है। यहांसे धरासू तक मार्ग अच्छा है। यहांसे एक रास्ता मंसूरी गया है।
(१७) धरासू-यह स्थान गंगा किनारे बसा हाहै। यहां बाबाकाली कमलीवालेकी धर्मशाला और सदाव्रत है। यहांसे एक रास्ता गङ्गा किनारे २ सीधा उत्तर काशीको और दूसरा यमुनोत्रीको गया है। यहाँसे यमुनोत्रीके रास्ते पहिले पाव मोलको चढ़ाई और पौन मोल सीधा रास्ता है फिर आधा मीलका सीधा उतार है और बादमें सीधा रास्ता है। मार्गमें "कल्याणो" चट्टी तक पानीका कष्ट है।
(१८) सीलक्यारी चट्टी-यहां बाबा काली कमलीवालेकी धर्मशाला और पंजाब-सिंध क्षेत्रका सहावत है। स्थान अच्छा है। यहांसे ३॥ मीलको राडीकी चढ़ाई बहुत कठिन तय करनी होगी। यात्रियों को चाहिये कि वे प्रात: जल्दी उठकर रास्ता तय करे। चढ़ाई तय करनेपर वहां कोई स्थान नहीं है। यदि आकाश साफ होगा तो हिमालयके बरफवेष्टित पहाड दिखाई देंगे। आगे गङ्गनानो तक उतार ही उतारका रास्ता है, बीच में "डाल गांव" चट्टो और "सिमली" चट्टी पडेगी।
(१९) गंगनानी यह चट्टी यमुना किनारे है । यहां बाबा कालीकमलीपालेको धर्मशाला और सहाब्रत है।
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:२०:
हिमालय दिग्दर्शन
यहांसे १॥ फर्लाग पर एक कुण्ड है जिसमें यात्री स्नान करते है। यमुनोत्रीसे पुनः इसी स्थान होकर गंगोत्री जानेका है, इसलिये चाहिये कि यात्री अपना ज्यादा बोमा हो तो यहां दुकानदारों के वहां रख आगे बढ़े। यहांसे भागे दो मीलका सीधा रास्ता है, बादमें १ माइल की चढ़ाई और फिर आगे सीधा रास्ता चला गया है।
(२०) यमुना चट्टी यहां बाबा काली कमलीपालेकी धर्मशाला और सदाबत है। यहां कुछ शीतका अनुभव होता है। स्थान अच्छा है। यहांसे आगे १ मीलकी चढ़ाई के बाद रास्ता सीधा चला गया है।
(२१) हनुमान चट्टी-यहां बाबा काली कमलीवाले की धर्मशाला और सदावत है। स्थान अच्छा है। आगे मार्ग सुगम है।
___ (२२) जानकी चट्टी (मार्कण्ड तीर्थ) यहां धर्मशाला की बगल में गरम पानीका स्रोत है, जिसमें यात्री स्नान करते है। यहाँसे आगे १ मीलका सीधा रास्ता है और बादमें on मोलकी चढ़ाई है। फिर ०॥ मीलका सीधा रास्ता और १ माइलकी चढ़ाइके अन्तमें यमुनोत्री तक उतार ही उतारका रास्ता है।
मुनोत्री यह हिन्दु धर्मका परम पुनीत तीर्थस्थान है। यहां कई एक धाराएँ मिलकर यमुनाका प्रवाह होता है। कुछ धाराओंका पानी तो इतना गरम है कि
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यमुनोत्री
कपडेमें पोटली बनाकर कोई तरकारी, चापल थोड़ी देरतक डुबो रखने से पक जाता है। प्रायः यात्री ऐसा ही करते है। यमुनोत्री शीतप्रधान स्थान है। यहां अमुनाजीका एक छोटा मन्दिर है। यहां बाबा काली कमलीवालेकी धर्मशाला और सहावत है । यहां एक गुफा है और अग्निकुंड, गौरीकुण्ड, सूर्यकुण्ड तथा दो अन्य कुण्ड हैं । यहां अधिक शीत होने की वजहसे बहुतसे यात्री ठंडा पानीसे स्नान न करते हुए गरम पानोके कुण्डमें स्नान करते हैं। यहां गेहु भादोंमें बोया जाता है और बारहवें महीने श्रावणमे कटता है। यहांपर पहाड़ बरफवेष्टित होनेसे प्राकृतिक दृश्य सुन्दर दिखाई देता है । यह स्थान समुद्रको सतहसे १०,००० फीटकी ऊंचाई पर है। यहांसे गंगोत्री जाने वास्ते पुन: गंगनानी वापिस लौटना चाहिये।
विहार किया संवत् १९९५
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सिद्धान्त वा कर्त्तव्य
सत्तावादका नाश करना ही हमारा परम कर्तव्य है।
मान्यता. भेद और बाह्य क्रियामें धर्म नहीं हो सकता।
-DECEACOCODEO.CODCODococcDDEDODCH
साधु-जीवनकी महत्ता जन-शुद्ध आचारमें ही रही हुई है।
* * * * अपनी कुटेवोंको छोड़ना वही मनुष्यत्व प्राप्त करना है।
* * * * * महान पुरुष वही है जो समानताके पथपर चलता है।
-प्रियंकरविजय
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यमुनोत्री
से गंगोत्री
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गंगोत्री
A
: 60 scenam
::::
चट्टो
शाम
यमुनोत्रीसे गंगोत्री माईल ९९ दिन समय देखो नोंध नं, नाम माईल स्थान
हनुमान चट्टी ८ धर्मशाला यमना चट्टो ८॥ " गंगनानी ६ , सिंगोट ९॥ , उत्तरकाशी ९॥ मनेरी मल्लाचट्टो ७ भटवाड़ी
धर्मशाला गंगनानी
८ सुक्की चट्टो " शाम १
माला चट्टी १० सुबह १० हसिल
धराली ११ , १२ मेरोपाटी , शाम १३ गंगोत्री ६॥
नोंध नं.
(१) गंगनानी-यहांसे सिंगोट जानेके लिये प्रातः जल्दीसे उठकर प्रयाण करना चाहिए, क्योंकि शुरूके ४ माईल में छोटी २ मक्खियां काटती है और इसीसे कुछ दिन
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:
::::
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:,२६ :
हिमालय दिग्दर्शन
तक बड़ी तकलीफ रहती है। यहांसे ३॥ मील आगे जानेपर करीब दो मील कड़ी चढ़ाईका अनुभव करना पड़ता है, इस बीच घना जंगल पड़ता है, चढ़ाई के बाद “सिंगोट चट्टी" तक उतार हैं । बीचमें पानीका प्रभाव रहता है।
(२) सिंगोट चट्टी-यहां बाबा काली कमलीवालेकी धर्मशाला और पंजाब-सिंध क्षेत्रका सदाव्रत है। यहांसे २॥ मील नाकोरी चट्टी तक उतार व पथरीला रास्ता है। घरायमें छोड़ी हुई उत्तरकाशीवाली सड़क नाकोरी चट्टीसे आ मिलती है । नाकोरीसे उत्तर काशीका रास्ता एकदम सीधा गंगा किनारे २ चला गया है।
(३) उत्तर काशी-यह गंगा किनारे बसा हुआ है। यहां विश्वनाथजीका मन्दिर पुराना है। जयपुरकी राजमाताका बनवाया हुआ मन्दिर दर्शनीय हैं। यहां धर्मशाशाए अनेक है, उसमें बाबा कालीकमलीवालेकी मुख्य हैं। बाबा काली कमलीवालेका यहां सदावत, क्षेत्र और औषधालय भी है। यहांकी वस्ती बड़ी है, डाकखाना, अस्पताल और पुलिस स्टेशन है। यहां मणिकर्णिका घाट है। यह स्थान तीर्थस्वरूप माना जाता है। यहांसे आगे केदारनायके अतिरिक्त कहीं डाकघर न मिलेगा। यहांसे आगे १॥ मील पर नागाणी चट्टी है, इसके पास असीगंगा और भागीरथीका संगम है।
पत्ता-पोष्ट मास्टर साहेब
मु. उत्तरकाशी ( यू० पी० उत्तराखण्ड) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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गंगोत्रो
: २७
(४) मनेरी चट्टी-यहां बाबा काली कमलीबालेकी धर्मशाला है। यहां सदाव्रतके इच्छुक यात्री दो फर्लोग आगे पंजाब-सिंध क्षेत्रकी धर्मशालामें ठहरेते हैं।
(५) मल्ला चट्टी-गगोत्रीसे वापिस इसी स्थानकों मानेका है। इसी स्थानसे ही केदारनाथ और वापिस उत्तर काशी जानेका रास्ता है। पासमें अधिक सामान हो तो इस चट्टोमें न रखके आगे दो मीलपर भटवाडी (भास्कर ) में रखें।
(६) भटवाडी (भास्करप्रयाग) यहां भास्करेश्वर महादेवका पुराना मंदिर है। यहां बाबा काली कमलीवालेकी धर्मशाला और सदाव्रत है। स्थान अच्छा है किन्तु मक्खियों का उपद्रव अधिक रहता है। गंगोत्रीसे वापिस इसी स्थान होकर मल्ला चट्टी जाकर आगे बढ़नेका है, इसलिये यात्रियों को चाहिये कि वे अपना अधिक सामान इसी स्थान पर मोदियोंकी दुकान पर रख दे। यहांसे आगे गंगनानी जाते समय करीब ८ मील पर कुलानदीका पुल आता है। पुलके इस पार दाहिनी बगल पहाड़ पर एक रास्ता आधा फोगका गया है वहां गरम पानीका स्रोत है जो कि ऋषिकुण्ड कहलाता है। वहां यात्री स्नान करते हैं। मगर परिचित वहां कोई नहीं जाता क्योंकि वहाँको मक्खियां बड़ी परेशानी पहुंचानेवाली है।
(७) गंगनानी-यहां बाबा काली कमलीपालेकी धर्मशाला और सदावत है। यहांसे आगे ४ मीलतका कुछ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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हिमालय दिगदर्शन
मार्ग ठीक है, मगर बादमें सुक्खी चट्टी और इससे आगे १ -मील तक चढ़ाईवाला रास्ता है ।
(८) सुक्खी चट्टी-यहां बाबा काली कमलीवालेकी धर्मशाला और सदावत है । स्थान अच्छा है । यहांसे आगे १ मीलकी चढ़ाई है और आगे दो मीलका उतार व सीधा रास्ता है। यहां एक पक्का कुण्ड है। उसे सूर्यकुण्ड कहते हैं।
(९) झाला चट्टी-यहां बाबा काली कमलीचालेकी 'धर्मशाला और पंजाबसिंध क्षेत्रको सदावत है। यहांसे कुछ आगे जानेपर समभूमिमें श्यामगंगा और भागीरथीका संगम प्राता है, इन संगमस्थानसे गंगोत्रीके बरफवेष्टित पहाड़ दिखाई देते हैं जिनके देखनेसे मन प्रसन्न होता है। और इधरके पहाड़के शिखर भी बर्फवेष्टित होनेसे सुन्दर मालूम
(१०) हसिल (हरिप्रयाग) यहां लक्ष्मीनारायण मंदिर व धर्मशाला है। धर्मशालामें एक भूतिया माई भूने हुए चनेका सदावत देती है। यहां काली चमरी गायें हैं। यहां तिब्बतके लोग नेलंगघाटा होकर भारतके साथ व्यापार करने को रहते हैं। वे लोग ऊनी वस्त्र कौटु, थूल्मा, वन, पश्मीना आदि बेचते हैं। यहांसे धराली और धरालीसे भागे ४ मोड तक सीधा रास्ता चला गया है। यहां टिहरी नरेशका सेवका बगीचा है।
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गंगोत्री
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(११) धराली-यहां बाबा, कालो कमलीगलेकी धर्मशाला और सदाव्रत है। यहां मात्मकल्याणके लिये कई साधु-संन्यासी पहाड़ोंमें रहते है । यहांसे जांगलाचट्टी ४ मील है, वहां तक मार्ग सीधा है, मगर वहाँसे १ फागकी कड़ी चढ़ाई तय करनेके बाद १॥ मीलका सीधा रास्ता पार करके १ मीलकी बहुत कड़ी चढ़ाईका अनुभव होगा। आजके मार्गका प्राकृतिक दृश्य हृदयको आइलाद उपजाये बिना न रहेगा।
(१२) मेरोंघाटी-यहां भेरुंजीका छोटा मन्दिर है। यहां बाबा कालोकमली वालेकी धर्मशाला और सदावत है। यहांसे रास्ता कही चढ़ाव, कहीं उत्तार और कहीं सम गंगाजीके किनारे २ होकर गया है।
___ (१३) गंगोत्री यह हिन्दू-धर्मका परम पवित्र और प्राचीन तीर्थ है । यहां गंगा किनारे गंगानीका मन्दिर है। । मन्दिरमें सुवर्णरचित गंगाजीको चल मूर्ति है । समीपमें यमुना, सरस्वती, भगीरथ और शंकराचार्यकी मूर्तियां है। यात्रीगण मूर्ति स्पर्श नहीं कर सकते हैं, दूरसे ही भाव पूजा करते हैं। यहां छत अछूत सबके साथ एक ही प्रकारका व्यवहार होता है जैसा कि जगन्नाथपुरीमें है। यहां सरदी बहुत अधिक रहती है। यहां भोजपत्रके वृक्ष अधिक होते है। यहां अनेक धर्मशालाएं है जिसमें बाबा काली कमली. चालेकी तरफसे ठंडसे बचनेके लिये उधार कम्बल दी जाती है कि जो जाते समय यापिस करनी होती है। यहां आत्मShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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हिमालय दिगदर्शन
कल्याण के लिये कई साधु-संन्यासी रहते हैं। यहांसे १ माइल दूर केदार गंगा भागीरथीसे मिलती है, जिसका पानी भूरे रंगका है। यहांसे गंगाउत्पत्ति स्थान १० माइल दूर है। वहां जाने वास्ते अधिक बर्फ होने की वजहसे तथा रास्ता दुर्गम होने से प्रत्येक यात्री जाने नहीं पाते है, अतः इसी स्थानमें हो दर्शन-स्नान कर अपने को कृत-कृत समझ वापिस " मल्ला-बट्टो"को केदार व उत्तर काशी जाने को लौट जाते है। केदार, बदरीनाथ, गंगोत्री और यदुनोत्रोके पहाड़ी मार्गमें सौदागर लोग हरिद्वारकी अोरसे पाटा, दाल, चावल इत्यादि झुण्ड-के-झुण्ड खबर, गइहे, बकरे, बकरी और भेड़ोंपर लादकर लाते हैं और चट्टोके दुकानदारोंको बेंचकर लौट जाते है। यहां के गंगाके जलकी अधिक पवित्रता हो गयी है यात्रीगण छोटीसी जलदानी में भरकर पानो अपने स्थानको ले जाते हैं । यहांसे मल्लाचट्टो तक पूर्व कथित मार्गसे वापिस लौटना चाहिवे, माईल ४० ।
गंगोत्रीकी वास्तविकता अवतारी पुरुषों का जिन जगह मोक्ष होता है उस भूमिको मोक्षभूमि, निर्वाणभूमि वा कैजासके नामसे पुकारते है।
जैन तीर्थंकर प्रभु ऋषभदेव स्वामीका जिस जगह मोक्ष हुआ इस भूमिको निर्वागभूमि, मोक्षभूमि या कैलासके नामसे पुकारते है । हिन्दु धम शास्त्रोंमें भी बयान है । जैन शास्त्रोमें
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गंगोत्री
: ३१ :
अष्टापदके नामसे भी जाहिर किया गया है, और अधिक. इसी नामसे प्रसिद्ध है । जिसका इतिहास इस प्रकार है
ऋषभदेव प्रभुके बड़े पुत्र राजा भरत चक्रवर्तीने प्रभु निर्वाणभूमिपर सिंहनिषद्या नामक चैत्य निर्माण किया, उसमें ऋषभदेव प्रभु सहित भावो तेईस तीर्थकरों का शरीरप्रमाण रत्नमयी चौवीस मूर्तियें स्थापित की तथा अपने निन्यानवे भाई जो प्रभुके पास दीक्षित हुये थे उनके चरण व अपनी दादी मा महदेवीके भी चरण स्थापित किये । उस चैत्यके रक्षार्थ चारों ओर किलेबंदी की और प्रभु निर्वाणभूमि तक ( कैलास पर ) सुभीते से चढ़ने उतरने वास्ते चारों ओर आठ आठ सीढीयें बनवाई इससे कैलासका दूसरा नाम अष्टापद प्रसिद्ध हुप्रा ।
इस मन्दिरके निर्माणके बाद भरत चक्रवर्ती के पुत्र सगर चक्रवतींने सोचा कि ऐसे अमूल्य मन्दिरको भविष्य में कोई जरूर नुकसान पहुंचायेगा । अतः इससे बचाने के लिये कैलास अापके चारों ओर खाई बनवा कर पानी भर देना ठीक है । यह बात अपने ६० हजार पुत्रोंको जाहिरकी और वनवाने वास्ते आज्ञा दी । बिनयी पुत्रोंने आज्ञा शिरोधार्य मान प्रस्थान किया और जन्हधने अपने दंडरत्नसे खाई खोदना प्ररम्भ कर दिया । खाई खोदते २ जब वे अधिक गहरे चले गये तो नागकुमारों के मकान नष्ट होने लगे । तब फिर नागकुमारने अपने राजा नागराजके पास जा अपना दुःख प्रकट किया । उस समय नागराज बाहर आया और देखा तो सब
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हिमालय दिगदर्शन
सगर-पुत्र ! तो नागराजने उनको कहा कि हमको नुकसान पहुंचाना आपको उचित नहीं है, इस तरह कहकर नागराज अपने स्थानको चला गया । इधर जन्हवने खाई खोदना तो बन्द किया मगर जितनी खाई खोदी गई उसमें पानी भर लेना चाहिए। उस विचार पर अपने दंडरत्नसे गंगाका कांठा तोडकर गंगाको खाई में प्रवाहित किया। खाई भर जानेकी पजहसे गंगाको आगे बढ़ने वास्ते रास्ता मिल गया और वह आगे बढती हुई देशको बहुत नुकसान पहुंचाने लगी। दुसरी खाईमें पानी जानेकी वजहसे नागकुमारोंके राजा नागराजने बाहर प्राकर अपनी प्रचंड ज्वालासे ६० हजार सगर-पुत्रोंको जलाकर भस्मीभूत कर डाला सगर चक्रवर्ती को अपने ६० हजार पुत्रोंकी इस तरहकी मृत्युसे आघात पहुंचा और गंगा द्वारा देशको नुकसान पहुंचानेसे भी अपार दुःख हुआ । तब सगर चक्रवर्तीने भगीरथको प्राज्ञा दी कि तुम कैसेही...गंगाका रोध करो। तब भगीरथ गंगास्थानको आ वहां अष्टम तप कर (तीन रोजका उपवास कर ) बैठ गये। फलतः गंगाका रोध हुआ। तबसे जन्हव गंगाको लाया इससे जाह्नवी नाम पड़ा और भगीरथने गंगा वेगको रोध किया इससे भगी. रबी नाम पडा। प्रतः गंगाको लानेवाले और रोध करनेवाले चैन राजकुमार थे।
विहार किया 'संवत् १९९५
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गंगोत्री
श्री केदार
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गंगोत्रीसे केदारनाथ माईल १२३
-
-
:
दिन समय देखो नोंध० नाम माईल स्थान सुबह
मेरोंघाटी ६॥ धर्मशाना शाम
धराली ६॥ " सुक्खी ८ " गंगनानी
भटवाड़ी शाम
मल्लाचट्टी
फ्यालू शाम
कूणाचट्टी ३ धर्मशाला
पंगराणा ५ झालाचट्टो ४ ६ बूढाकेदार ५ धर्मशाला ७ भैरवचट्टी ॥ चट्ठी मोटचट्टो
धर्मशाला
:
शाम
6
rar mn For 9VOM
शाम
.:
शाम
पवाली
:
त्रिजुगीनारायण५
8
3
१६
केदारनांचा
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: ३६ :
हिमालय दिग्दर्शन
नोंध नं०
(१) मल्लाचट्टी यहां से भागीरथी और रुद्र गंगाका पुल पारकर मार्ग ३ मील बीच में कहीं २ बढाईबाला सौराकी गाड़ तक चला गया है । सौराकी गाड़से कुछ आगे जानेके बाद ३ मीलकी चढ़ाई आती है ।
-
(२) फ्यालूचट्टी — यहांसे आगे १ मीलकी बढ़ाईके बाद हूणाचट्टी तक मार्ग सीधा चला गया है । बीचमें जंगल अच्छा पड़ता है ।
(३) छूणाचट्टी -यहां पंजाब - सिंध क्षेत्रकी धर्मशाला और सदाव्रत है । यहांसे ४ मीलकी बेलक चट्टी तक कड़ी चढ़ाई है और बाद में पंगराणा तक उतार ही उतार है।
(४) पंगराणा - यहांसे आगे ०||| मीलकी चढ़ाईके बाद आगे कुछ सीधा रास्ता चलकर फिर झाला चट्टी तक तार ही उतार है ।
(५) झालाचट्टी - यह चट्टी अच्छी है। यहां दूध दही अच्छा मिलता है । यहांसे बूढा केदारनाथ तक मार्ग सीधा जैसा है।
(६) बूढ़ाकेदार - यह हिन्दु धर्मका तीर्थस्थान है । बूढ़े केदारनाथका मन्दिर है, उसमें बहुत बड़ा बिना गढ़ा शिवलिङ्ग है । लिङ्गके नीचे बूढ़ेकेदार, शिव-पारवती, गणेश, नन्दी लक्ष्मीनारायण, दुर्गा और पांचों पांडवोंको सूतियां बनाकर
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केदार
: ३७
लिगकी अनगढ़ता भङ्ग को गयी है । यहां बाबाका लोकमलोचालेकी धर्मशाला और सदाव्रत है। यहां धर्मगंगा बालगंगाके संगम पर यात्री स्नान करते हैं । यहां डाकघर और तारघर की बड़ी आवश्यकता मालूम होती है। यहांसे भैरवचट्टी तक साधारण कड़ी चढाईका मार्ग हैं । यात्रीको चाहिए कि सुबह जल्दीसे मार्ग तय करे ।
(७) भैरवचट्टी —यहांका स्थान अच्छा है। यहां भैरव च हनुमानजीका छोटा सा मन्दिर है। यहांसे भोटचट्टीका मार्ग सीधा है ।
(८) भोटचट्टी — यहां जलका आराम है। यहांसे कुछ चढाईके बाद मार्ग सीधा करीब ५ मील तक है और बादमें १॥ मीलकी कड़ी उतराईके बाद मार्ग धुचू तक सीधा मिलेगा।
(९) घुतू - यहां बाबा कालीकमलीवालेकी धर्मशाला और सदावत है। यहां भृगुगंगाके किनारे रुगनाथजीका मन्दिर है | यहांसे आगे १॥ मील गोपालचट्टी है, मार्ग साधारण ठीक हैं, इससे आगे १॥ मोलकी चढाई है और बादमें साधारण चढाईबाला ३ मीलका मार्ग तय करने पर दुफन्दा चट्टी मिलती है । इस मार्ग में मक्खियोंका उपद्रव अधिक रहता है। इस मार्ग में जंगल अधिक पड़ता है। बारिश भी अधिक होती हैं, इसलिये चढ़ाई और उतारमें पैर फिसलता हैं ।
(१०) दुफन्दा - यह साधारण बट्टो होनेसे ठहरनेका सुभोता नहीं है इसलिये यात्रियोंको चाहिये कि पवाली पहुंच
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हिमालय दिग्दर्शन
जायं | यहांसे आगे ०॥ मीलकी चढाईके बाद १ मीलका सीधा जैसा रास्ता हैं और बाद में ०॥ मीलकी कड़ी चढ़ाईके अन्त में पवाली तक उतार ही उतार है । मार्ग में रंग-बिरंगे फूलोंके मैदान दिलको प्रसन्न करते हैं ।
: ३८
(११) पवालीचट्टी- यह स्थान समुद्रकी सतह से १०,००० फीट ऊंचा हैं । यहां बाबा कालीकमलीवालेकी धर्मशाला, सदाव्रत और श्रौषधालय हैं। यहां प्रायः दिनमें १२ बजेके बाद बारिश होती हैं, जिसमें ओले गिरते हैं । यह शीत प्रधान स्थान हैं | यहांसे मग्गु आते समय चढाव - उतार दोनों बराबर कठिन हैं । जगह-जगह बरफमें भी चलना पड़ता हैं । यानी यह रास्ता बडा खतरनाक हैं । यहांसे आगे ६ माईल पर उतार में टेहरी रियासतकी हद पूरी होकर ब्रिटिश हद शुरू होती हैं ।
(१२) मग्गुचट्टी - यहां बाबा काली कमलीवालेकी धर्मशाला और सदावत हैं । यहां खाने-पीनेकी सभी चीजें अच्छी मिलती हैं । यह शीतप्रधान स्थान हैं। यहांसे त्रिजुगी नारायण जाते हुए उतार ही उतारवाला रास्ता हैं । बीच में जंगल अधिक पडता हैं, जिसमें अनेक प्रकारकी जड़ी-बूटियां हैं । सर्प की बूटियां ज्यादा नजर आती हैं मगर विशेष फायदा नहीं पहुंचाती | यहांसे ब्रिटिश हद शुरू हुई है ।
(१३) त्रिजुगी नारायण- यह हिन्दु धर्मका परम पवित्र तीर्थस्थान हैं। यहां त्रिजुमी नारायणकी असली मूर्ति के
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दर्शन नहीं होते हैं, न मालूम क्यों छुपी रखते हैं सो मालूम नहीं हुआ। यहां सरस्वती कुण्डमें सर्प रहते हैं वे किसीको काटते नहीं हैं और इनका दर्शन शुभ समझा जाता है। यहां एक हवन कुण्डमें निरन्तर धुंआं निकालते हुए आग रखी जाती है, इस संबंध किंवदन्ती है कि गिरिराज हिमालयने अपनी पुत्री पार्वतीका शंकरके साथ यहां विवाह किया था, इसी समय से आजतक इस हवन कुण्डसे धुश्रां निकलना बंद नहीं हुआ क्योंकि हमेशां लकड़ी डाली जाती है। यहांके पण्डे लोग यात्रियोंको परेशानी पहुंचानेवाले हैं। यहां बाबा काली कमलीपालेकी धर्मशाला और सदाव्रत है । यहांकी वस्ती बड़ी है। यहांसे आगे सोम द्वारा ( सोमप्रयाग तक ) ३ तीन मीलका उतार ही उतारका गस्ता है । मार्ग बीच में शाकम्बरीः देवीके मन्दिरसे बाएं हाथवाला गस्ता केदारको जाता है। सोमद्वारामें एक दुकान है। वहांसे केदारनाथ तक साधारण चढ़ाव ही चढ़ावका रास्ता है।
पता-C/० पोष्ट मास्टर साहेब मु० त्रिजुगी नारायण (यु० पी० उत्तराखंड)
(१४) गौरीकुण्ड–यहां पावतीजीका मन्दिर और गारीकुन्ड है। यहां एक गरम कुण्डमें यात्री स्नान करते है। यहां बाबा काली कमलीवालेकी धर्मशाला और सदावत है। यहां शिलाजीतके व्यापारी अधिक है। यहांकी बस्ती बड़ी है। केदारनाथसे पुनः इसी रास्ते वापिस लौटकर बद्री जानेका
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हिमालय दिग्दर्शन
हैं, इसलिये यात्रियों को चाहिए कि अपना अधिक बोझा यहांके दुकानदारोंके यहां रख दें ।
: ४० :
(१५) रामवाड़ा - यहां बर्फ हमेशा जमी रहती है । यहां बाबा काली कमलीवालेको धर्मशाला और सदावत है । यहांका स्थान अच्छा है ।
(१६) श्री केदारनाथ - केदारनाथ - यह हिन्दु धर्मका तीर्थस्थान है । यहां केदारनाथका मन्दिर है । श्रीकेदारनाथकी मूर्ति नहीं और न लिङ्गका ही स्वरूप है । डेढ़ हाथ चौड़ा, चार हाथ लम्बा और दो हाथ ऊंचा पत्थरका एक टीला है । ऐसी किंवदन्ती सुननेमें आती है कि शिवजी भैंसेका रूप धारण करके इस पर्वतपर विचर रहे थे । भीमसेनने उनको जङ्गली भैंसा अनुमान खदेड़कर गदाप्रहार किया जिससे अगला धड़ पर्वत में घुस गया और पिछला वहीं पत्थर हो गया । अगला धड़ नेपालमें प्रकट होकर पशुपतिनाथके नामसे प्रसिद्ध हुआ और पिछला श्रीकेदारनाथजी है । यात्रीगण खड़े होकर अपने हाथसे केदारनाथ जीको स्नान कराकर पत्र - पुष्प - फूलादि भेट कर वृतका प्रलेप करके अड्डूमालिका करते हैं । मन्दिर में अंधेरा रहनेके कारण सदा घतका अखण्ड दीपक जलता है । ऊपर चांदीका छत्र टंगा है और भारके पंचमुखी केदारका दर्शन होता है ।
सभामण्डपमें पत्थरके नम्दीकी मूर्ति है। दरवाजेपर द्वारपालोंकी प्रतिमाएं है। मन्दिरकी दीवार में हर पांचों पाण्डव
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केदार
: ४१ :
कुन्ती, द्रौपदी, पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती आदि देवी-देवताओंकी प्रतिमाएं हैं । परिक्रमा में अमृतकुण्ड, ईशानकुण्ड, हंसकुण्ड, रेतसकुण्ड और उदककुण्ड हैं । अमृतकुण्ड में अलके भीतर दो शिवलिङ्ग हैं | इस कुण्ड में पारदको खाम होनेकी सम्भावना की जाती हैं, क्योंकि जब कुण्डका जल निकाल कर उसकी सफाई की जाती हैं तब थोडा बहुत इसमें पारा निकलता हैं ।
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यहां मन्दाकिनी गङ्गा और सरस्वतीका संगम हैं, दूधगङ्गा और स्वर्गद्वारीनदीका संगम कुछ उपर हैं। पहले संगम स्नान करके पीछे दर्शनार्थी लोग मन्दिरमें आते हैं । मन्दाकिनो और सरस्वती के सङ्गमपर संगमेश्वर महादेवका मन्दिर हैं, पासमें एक गंगाजी की मूर्ति हैं । कुछ ऊपर जानेसे अन्नपूर्णा और नवदुर्गा की मूर्तियों के दर्शन होते हैं । यहां एक अत्यन्त नीचा मेरवकांप - नामक खोह हैं । पहले लोग कैलासवासकी कामनासे उसमें कूदकर प्राण विसर्जन ( श्रात्महत्या ) करते थे । ब्रिटिश गवर्नमेण्टने सन् १९२६ ई० से इस प्रथाको बन्द कर दिया है, फिर भी लुक-छिपकर कभी-कभी ऐसी घटनाएं हो जाती है। केदारनाथको बस्ती २०० घरोंकी है, अधिकांश मकान दोमंजिले, पक्के प्रौर सुन्दर हैं। बस्तीके चारों भोर लंबा मैदान एवं बर्फ से ढंकी पर्वतमालाएं शोभा दे रही हैं। यहांके बाजारमें पंसारी, बजाज और हलवाई आदिको दूकानें हैं । सब आबsus सामग्रियां मिलती हैं किन्तु महंगी हैं । लकड़ी अधिक
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: ४२ :
हिमालय दिगदर्शन
महंगी मिलती है । रसोई बनानेके मंझटसे बचनेके लिये प्रायः लोग हलबाईकी दूकानसे पूड़ी लेकर काम चलाते है । अत्यन्त शीतके कारण यात्रियोंको विशेष कष्ट होता है, इसीसे अधिकांश दर्शनार्थी दर्शन-पूजन करके उसी दिन रामबाड़ा चट्टी अथवा गौरीकुण्ड लौट जाते है, रात्रिमें निवास नहीं करते, क्योंकि दो प्रहर दिन में शरीर से वस्त्र हटाना कठिन है, रात में बर्फका तूफान साहस ढीला कर देता है ।
I
इस पुन्यधाममें कई एक धर्मात्माओं की छोटी-बड़ी धर्मशालाएं और अन्नसत्र है । बाबा कालीकमलीवाले, होलकर सरकार और सेठ झुनझुनवालेकी धर्मशाला और सदाव्रत है । धर्मार्थ प्रायुर्वेदीय औषधालय भी है । उसमें बिना मूल्य रोगियोंको औषधियां मिलती है। यहां डाकखाना है । कहा जाता है कि यह स्थान समुद्रतटसे १९५८० फीट ऊंचा है। यहां ठीक रास्ते में विराजित एक सिद्धासन में प्रतिमा है । जिसका अब तक निर्णय ये न हो सका कि बौद्ध है या जैन | यहांसे सोमवार तक पुनः वापिस लौटना चाहिए । यहां कैलास-अष्टापदकी तलहटी स्वरूप पहिले जैन मन्दिर था । मगर शंकराचार्यने उसे नष्ट कर दिया ।
पता - पोस्ट मास्टर साहेब
मु० केदारनाथ ( यू० पी० उत्तराखण्ड )
विहार किया संवत् १९९५
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केदारनाथ
श्री बद्री
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----------------HH.:
बद्रीनाथ - स्तुति
१
सरस शुद्ध विशाल केवल भविक गंगा चरण सेवे
२
विश्व सुमरन करत निशदिन
श्री विष्णु ब्रह्मा करत स्तुति
३
निकाय चार करत सेवा
सकल मुनिजन करत जय जय
४
सीता द्रौपदी गणेश शारद अनन्तज्ञान अनन्त वीर्य
५
विष्णु ब्रह्मा चंवर ढोले अनन्त सुख साम्राज्यशाली
६
निरंजन एक देव शोमे भरत पाण्डव करत स्तुति
श्री बद्रीनाथजी नाम सुन्दर कोटि तीर्थ कृतेतु पुण्यं
ज्ञान मन्दिर शोभितम् । श्री बद्रीनाथ महेश्वरम् ॥
ध्यान घरत शिषेश्वरम् । श्री बद्रीनाथ महेश्वरम् ॥
देव देवी सवी मिली ।
श्री बद्रीनाथ महेश्वरम् ॥
नारदादिक सेवितम् । श्री बद्रीनाथ महेश्वरम् ॥
बुद्धादिक देवो मिली । श्री बद्रीनाथ महेश्वरम् ||
कैलास
शिखरोपरि ।
श्री बद्रीनाथ महेश्वरम् ॥
सकल पाप विनाशकम् । सकल मंगलदायकम् ॥
जय बद्रीनाथकी ।
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दिन
शाम
केदारनाथसे बद्रीनाथ माईल १२० समय देखो नोंध नं. नाम माईल स्थान सुबह
सोमद्वारा १० चट्टो रामपुर २॥ धर्मशाला गुप्तकाशी १२ , उखीमठ . . बनियाकुण्ड १९॥ "
तुमनाय शाम
मीमचट्टो ३ चट्टी सुबह
मंडल चो ५ धर्मशाला शाम
मोफेबर ४॥ ,
चमोली ३ ॥ शाम
पीपलचो २
गरुड़गंगा ३ शाम
पातालनम.
634836m 4G
जोगीमठ १ पाब्वे वर. . हनुमानची ८॥
. ,
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:४८:
हिमालय दिगदर्शन
नोंध नं०
द्वारा यहांसे दाहिनी ओरकी त्रिजुगीनारायण और दूसरी रामपुरको गई है ।
सड़क
] रामपुर-यहां बाबा कालीकमलीवालेकी धर्मशाला और सदावत है। यहांसे केदार जानेवाले यात्री यदि चाहें तो शीतसे बचनेके लिये कम्बल उधार ले सकते हैं जो कि उन्हें वापसी में जमा कराने पड़ते हैं। यहांसे आगे ५ मील पर मैखण्डा चट्टी आती है, वहां एक भूला है उसे माईका झूला कहते हैं, झूलेपर झूलकर लोग आगे बढ़ते है। मेखण्डा चट्टीसे आगे ३॥ मील पर नारायण कोटी (भेत्ता चट्टी) है वहाँके प्राचीन मन्दिर वीरभद्रेश्वर, भस्मासुर, महादेव और सत्यनारायण आदि के हैं । नारायण चट्टोसे २ मीलपर नाला चट्टी है, वहां से बायें हाथकी सड़क ऊखीमठको और दूसरी गुप्तकाशीको गई है। माला चट्टीसे गुप्त-काशी ११ माईल है।
सकाची-यहां विश्वनाथजीका मन्दिर है। मन्दिरके सामने कुण्डमें स्नान होता है। यहाँके पण्डे लोग यात्रियों को बड़ी परेशानी पहुंचाते है। यहां बाबा कालीकमलीवालेकी धर्मशाला और सदावत है। यहां एक सड़क रुद्रप्रयागको २५ माईल गई है और दूसरी ऊखीमठ होकर बद्रीनाथजीको। यहांसे ऊखीमठ जानेको २ मील तक उतार ही उतारका रास्ता है और बादमें १ मीलकी कड़ी चढ़ाई है। यहां का स्थान अच्छा है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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Lo
.
..
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-
M
:
Yashovljay Jain Granihmatele: [४] ऊखीमठ-यहां पंचमुखी केदारका मन्दिर है। विस्तृत और ऊंचा है, शिखरपर स्वर्णपत्रसे मण्डित कलश है। यहां केदारनाथके पुजारी रावलजीकी गद्दी हैं । सामने ओङ्कारेश्वर महादेव हैं। सम्मुख पीतलकी छोटी-सी नन्दीकी मूर्ति है । बगलमें पत्थरकी गणेशकी मूर्ति है, इनके सिवाय और भी अनेक देवी देवताओंकी मूर्तियें है। धर्मशाला दो मंजिली और विशाल है । यहांके पुजारी पण्डोंकी निन्दनीय लीला कहने योग्य नहीं है। यहां बाबा कालीकमलीवालेकी धर्मशाला और सदाव्रत है। यहांको बस्ती बड़ी है । बाजारमे सभी आवश्यक चीजें मिलती है। यहां अस्पताल, डाकघर और पुलिस स्टेशन है। यहांसे २॥ मील चढाई उत्तराईका रास्ता पार करनेपर गणेशचट्टी आती है और आगे दो मीलपर दुर्गाचट्टी और इससे आगे ३ मीलकी चढाई चढकर पोथीवासा चट्टी आती है। स्थान अच्छा है । पोथीवासासे आगे कहीं चढाव कहीं उतार और फिर चढाई के बाद बनियाकुण्ड चट्टी आती है। मार्गमें जंगल अच्छा पड़ता है।
[५] बनियाकुण्ड-यहां बाबा कालीकमलीवालेकी धर्मशाला और सदाबत है। यहां शीत अधिक रहती है। यहांसे आगे चोपता चट्टी ३ मील है। वहांसे एक सड़क मामूली उतारकी साथ ३ मील भीमचट्टीको गई है और दूसरी ३ मील की कड़ी चढाई में तुङ्गनाथको गई है। कितने ही यात्री इन कड़ी चढाईसे डरकर तुङ्गनाथ न जाकर
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:५०:
हिमालय दिगदर्शन
सीधे भीम चट्टीको चले जाते है । तुङ्गनाथसे भीमचट्टी ३ मील हे और रास्ता कड़ी उतारका हैं ।
[६] तुङ्गनाथ-यह हिन्दु धर्मका पवित्र तीर्थस्थान है। इस स्थानकी ऊंचाई समुद्रकी सतहसे १३,००० फीटसे कम नहीं है। इस कारण यहां अधिक शीत रहती है। इस स्थानसे यदि आकाश साफ है तो सारे उत्तराखण्डके तीर्थस्थानोंके दर्शन एक ही समयमें हो जाते है। उत्तराखण्डकी यात्रामें यही एक ऐसा स्थान है कि जो महान् रमणीक और चित्ताकर्षक है। यहां शिवजीके मन्दिरमें अनेक देवी-देवताओंकी मूर्तियां हैं। एक पंच धातुकी छोटी सी बौद्ध प्रतिमा भी हैं। यहां बाबा कालीकमलीवालेकी धर्मशाला और सदाव्रत है। यहां अमृत कुण्डमें यात्री स्नान करते है। यहांसे भीमचट्टी ३ मील हैं और वहां तक कड़ी उतार हैं।
[७] भीमचट्टी-यहांसे मंडल चट्टी तक उतार ही उतारका रास्ता हैं। बीचमे जंगल अधिक पड़ता हैं।
चट्टी-यहां बाबा कालीकमलीवालेकी धर्मशाला और सदाव्रत है। यहांसे आगे ३ माईलका सीधा रास्ता हैं और बादमें साधारण १॥ माईलकी चढाइके अन्तमें महादेव और लक्ष्मीनारायणका मन्दिर आता है, जहां वैतरणीकुंडमें यात्री स्नान करके आगे गोपेश्वर जाते है।
[९] गोपेश्वर-यहां गोपेश्वर महादेवका पुराना मंदिर हैं। यहांकी बस्ती बड़ी है, किन्तु जलकी कमी है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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बद्री
: ५१ :
उत्तराखण्डकी यात्रामें केवल इसी स्थानमें कुआं है । यहांसे आगे चमोली तक उतार ही उतारका रास्ता है । बीचमें दो माईल पर नारायण चट्टी आती है। इस चट्टीसे सामने देव प्रयागसे ही सीधी बद्रीकी सड़क गई है वह दिखलाई देती है । चमोली अलकनंदा के पुलको पार करके जाना होता है । पुलके इस पार एक छोटासा अस्पताल है ।
[१०] चमोली [ लाल साँगा ] यह चट्टी अलकमंदाके किनारे है। यहां बाबा काली कमलीवालेकी धर्मशाला और सदाव्रत है। यहांकी वस्ती बड़ी है । यहां डिप्टी कलक्टर की कचहरी, अस्पताल, डाक खाना, तारघर और पुलिस स्टेशन है । बद्रीनाथसे पुनः इसी रास्ते होकर आगे बढ़नेका है, इसलिये यात्रियोंको चाहिए कि वे अपना अधिक सामान यहां ठेकेदारके यहां रख आगे यात्राके लिये प्रयाण करे। यहांसे हाट चट्टी माईल ६ तक मार्ग सीधा हैं । इस ओरकी चट्टियें पिछली चट्टियोंसे बहुत ठीक है ।
११] हाट चट्टी - यहांसे पीपलचट्टी तक कुछ कड़ी चढ़ाईका अनुभव होता है ।
[१२] पीपल चट्टी - यहां बाबा काली कमलीवाले की धर्मशाला और सदाव्रत है। यहां ऊनी आसन, कम्बल, मृग चर्म, शिलाजीत और चमरी गायके चंवरकी अनेक दुकाने है । पहाड़की जड़ीबूटियां भी बिकती है। खाने
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: ५२ :
हिमालय दिगदर्शन पीनेकी भी सभी आवश्यक चीजें मिलती हैं। यहां डाकखाना है। यहांसे गरुडगंगा तकका मार्ग सीधा गया है।
[१३] गरुड़ गंगा-यहां गरुड गंगा पहाडकी उंचाई से नीचे गिरती हैं। गरुड गंगाके दोनों किनारे बस्ती है। गरुड मन्दिरके पास गरुड गंगामें यात्री स्नान करते हैं
और इनके छोटे र पत्थर यात्री अपने स्थान ले जाते है। कहते है कि जिस घरमें यह पत्थर रहता है वहां सर्पभय नहीं होता और इसको पानीके साथ घिसकर दंश स्थानपर लगाने तथा पिलानेसे सांपका जहर दूर होता हैं, मगर ये बात अनुभवमें गलत साबित हुई हैं। यहां बाबा काली कमलीवालेकी धर्मशाला और सदाव्रत हैं। यहांसे साधारण चढाइके बाद जोशीमठ तक मार्ग सीधा चला गया है। बीचमे पातालगंगाके करीब रास्ता उतारका और अच्छा नहीं हैं।
[१४] पातालगंगा-यह चद्री अच्छी है। यहांसे साधारण चढाइके बाद रास्ता सीधा गुलाबकोटी तक चला गया हैं। गुलाबकोटीसे भी आगे साधारण चढाइके अन्तमें जोशीमठ तक ठीक सीधा रास्ता चला गया है।
[१५] हेलङ्ग [ कुम्हार चट्टी यह चट्टी बड़ी है। यहां बाबा कालीकमलीवालेकी धर्मशाला और सदावत है।
[१६] जोशीमठ यहां नर-नारायणका मन्दिर है । शीतकालमें बद्रीनाथकी चलमूर्ति इसी स्थान लाकर पूजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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बद्री
:५३:
जाती है। इस मन्दिर के पास नृसिंहधारा और दण्डधारामें यात्री स्नान करते है । समीपमें नृसिंह मन्दिर है, उसमें एक ही सिंहासनपर बीच में नृसिंह बायं उग्र नृसिंह और दाहिने श्रीराम-लक्ष्मण जानकोजी और बद्रीनाथकी मूर्तियां हैं । यहां गुलाबके फूल अधिक होते हैं, वह देखने में बडे सुहावने होते हैं। जोशीमठ कस्बा है। बहुतसे-से दो मंजिले पक्के मकान हैं । बाजारमें सब सामान मिलता है । अस्पताल, डाकखाना, तारघर और पुलिस स्टेशन है । बाबा काली कमलीवालेकी धर्मशाला और सदाव्रत है । यहांसे दों मीलकी कड़ी चक्करदार उतराईके बाद विष्णुप्रयाग आता है, वहां अलकनन्दा और विष्णुगंगाका संगम है। संगम पर यात्री स्नान करते है । विष्णुप्रयागसे पाण्डुकेश्वर तकका मार्ग कहों चढ़ाव कहीं उतार और सीधा इस तरह चला गया है।
(१७) पाण्डुकेश्वर-यहां योग बदरी और वासुदेवका मन्दिरहै,मन्दिरके बाहर दीवारमें लगा हुआ ताम्रपत्र पर स्पष्ट अक्षरोंमें एक लम्बा लेख है, परन्तु वे न जाने किस भाषाके अक्षर है, किसीसे पढे नहीं जाते। यहां बाबा कालीकमली. वालेकी धर्मशाला और सदाव्रत है । यहांसे ३ माइलपर लामबगड़ चट्टी आती है, बीचमें | मीलकी चढाईके बाद लामबगड़ तक उतार ही उतार है । लामबगड़में अलकनन्दाके किनारे बाबा काली कमलीवालेकी धर्मशाला और सदाव्रत है। धर्मशालासे आगे हनुमान चट्टी तक उतारका रास्ता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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हिमालय दिग्दर्शन
(१८) हनुमान चट्टी-यहां बाबा काली कमली वालेकी धर्मशाला और सदाव्रत है । यहां आवश्यक चीजें मिलती हैं । यह शीत प्रधान स्थान है । यहांसे आगे १ माईल पर १॥ माईलकी कड़ी चढ़ाई तय करनेके बाद देवदेवणीका स्थान आता है । उस स्थानसे.बद्रीनाथ तक उतार ही उतार है और बद्रीपुरीका दृश्य दिखाई देता है ।
(१९) बद्रीनाथ-यह पुरी मन्दराचल पर्वतपर अलकनन्दाके दाहिने किनारे पर अवस्थित है 1 बस्ती ३०० घरोंकी है। मकान अधिकांश दो मंजिले हैं, दीवार पत्थरके ईटोसे जोड़ी गई है और छाजन पत्थर तथा टीनकी है, कोईकोई घर फूससे भी छया हुआ है । दुकानें भी अनेक हैं। सब आवश्यक सामग्री मिलती हैं परन्तु बहुत महंगी । दहीदूध तो ॥१) सेर बिकता है । अन्नक्षेत्र और धर्मशालाएं कई एक हैं । बाबा कालीकमलीवालेकी धर्मशाला और सदाब्रत है। प्रतिदिन नये-नये धर्मात्मा यात्री क्षुधिनोंको भोजन कराते हैं । इस देव-नगरीमें आठों पहर चहल-पहल और बदरीनाथकी जय-जयकारकी ध्वनि गूंजती रहती है ।
श्री बदरीनाथका मन्दिर बस्तीके उत्तरीय भागमें अवस्थित लगभग ४५ फीट ऊंचा है। उपरका कलश और उसके ढाईतीन हाथ चारों ओर गोलाई स्वर्णपत्रसे विभूषित है। सदर द्वार पूर्व दिशामें है। सात-आठसीढ़ियोंसे चढ़कर ऊपर जाने पर मन्दिरका प्रथम विशाल
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बद्री
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फाटक मिलता है । भीतर सामने भगवानका मंदिर है। मन्दिरके सभामण्डपमें तीन दरवाजे हैं। प्रधान पूर्वमें, दूसरा दक्षिणमें और तीसरा उत्तरमें है। पूर्वके दुवारसे ५०-६० यात्रियोंकी गोल भीतर जाती है, किर फाटक बंद हो जाता है । जब वे दर्शन करके दक्षिण द्वारमें बाहर निकलते है तब पूर्वके दुवारसे दूसरा गोल प्रवेश करता है। यही क्रम अनवरत जारी रहता है। इन दोनों दरवाजोपर प्रबन्धके लिये रावलके सिपाही हर समय खड़े रहते है । उत्तरका दरवाजा बंद रहता है। वह आवश्यकतानुसार कभी-कभी खुलता है । पण्डे-पुजारियोंकी तरह यात्रियोंसे सिपाही भी पुरस्कार मांगते हैं, उन्हें कुछ दे देनेसे दर्शन करनेमें सुगमता होती है । सभामण्डपके पश्चिम मन्दिरमें श्रीबदरीनाथकी ध्यानपरायण एक हाथ ऊंची काले पत्थरकी मूर्ति है । ललाटपर हीरा चमकता हैं । सुवर्णका छत्र उपर टंगा रहता है । प्रातःकालमें निर्वाणदर्शन होता है । मूर्तिपरसे वखाभूषण हटाकर रावलजी स्नान कराते है। दिनमें आठ-नौ बजेके बीच में प्रथम आरती होती है। दस बजे दाल भातका भोग लगता है। एक बजेतक पट खुला रहता है, फिर चार बजे शृंगारका दर्शन होता है। संध्या-समय सुवर्ण-थालके बीच नौ कटोरियों में भिन्न-भिन्न पकान्न सजाकर भगवानके सामने आता है । रसोई डिमरी जातिके ब्राह्मण बनाते है । पूजा और भोग लगाना एकमात्र रावल ही करते है । यात्री तो पांच हायकी दूरीसे दर्शन पाते हैं, उन्हें मूर्तिका स्पर्श करनेका अधिकार नहीं है। मूर्तिके पास अंधेरा रहता है इसलिये चौवीसों घड़ी घृतके दीपक जलते रहते है ।
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हिमालय दिग्दर्शन
AM
कहते है कि श्रीबदरीनाथकी मूर्तिको शंकराचार्यजीने नारदकुण्डसे निकालकर उपर मंदिरमें स्थापन किया था। मंदिरके बाहर चारों ओर दीवारका घेरा है । इस घेरेके भीतर परिकमाके निमित्त चौड़ा मैदान है, इसी मैदानसे होकर लोग मन्दिरकी प्रदक्षिणा करते है । एक बारकी क्रमा लगभग पौने फागमें पूरी होती है । मन्दिरके सामने खुले मेदानमें गरुड़की मूर्ति है, उनके पीछे अञ्जनीकुमारकी विशाल मूर्ति है । दक्षिणमे पाकालय है। इसमें भोगके लिये व्यञ्जनादि तैयार होते है । पाकालयके पश्चिम लक्ष्मीजीका मन्दिर है । भगवानके मन्दिरके पीछे धर्मशिला और चरणोदककुण्ड है.। बायीं और घण्टाकर्ण क्षेत्रपाल और अष्टधातुका बड़ा घण्टा टंगा है । फाटकसे बाहर निकलकर नीचे आनेपर बायें तरफ रावलजीकी गद्दी और उनका दफ्तर है । यहां यात्रीगण ( अटका भोगके लिये रुपये) चढ़ाते हैं, उनदो रसीद मिलती है और बदलेमें प्रसाद दिया जाता है ।
श्रीबदरीनाथके मन्दिरके सामने नीचे अलकनन्दा गंगा बहती है । सीढ़ियोंसे उतरकर जलके समीप तीर पर जाना पड़ता है। पहले शंकराचार्यकी मूर्ति और केदारनाथका छोटासा मन्दिर पड़ता है । यहांसे बीमों सीढियाँ नीचे नानेपर तप्तकुण्ड,-मिलता है। जिसमें यात्री स्नान करते हैं। कुण्डमें गरम जलकी दोधाराएं गिरती हैं और एक पतली धारा शीतल जलको वहती है। दूसरी ओरसे बढ़ोल जल नाल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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बद्री
द्वार निकलकर गंगाजीमें जाता है। कुण्ड पन्द्रह-सोलह हाथ लम्बा-चौड़ा पक्का और नाभिपर्यन्त गहरा है। टीनकी चादरसे छाया है। जलका स्पर्श करनेसे वह अधिक गरम जान पड़ता है परन्तु गोता लगाने में बड़ा आनन्द आता है। तप्तकुण्डके समीप नारदशिला है, उसके नीचे नारदकुण्ड है। इसके सिवाय ब्रह्मकुन्ड, गौरीकुम्ड और सूर्यकुन्ड है। नारदशिलाके अतिरिक्त गरुड़शिला, नृसिंहशिला, वराहशिला और मार्कण्डेयशिला है। अलकनन्दा और ऋषिगङ्गाके सङ्गमकी धारा, प्रह्लादधारा और कूर्मधारा है। कूर्मधाराका पानी मीठा, शीतल और अत्यन्त पाचक है। पुरीके लोग इसी धाराका जल पीते हैं। थोड़ी दूर उत्तरकी ओर ब्रह्मशिला है।
ब्रह्मकपालशिलाके पास इन्द्रधारा और वसुधारा है। गंगाजीके उस पार नरपर्वत है, पहले अलकनन्दा पार करनेके लिये यहां रस्सीका झूला था, उसोसे पार होकर नरपर्वतपर जाते थे किन्तु अब कई वर्षसे वह बनाया नहीं जाता, इससे चक्कर खाकर पुलसे अलकनन्दा पार करके जाना होता है। इधर अलकनन्दा और सरस्वतीका संगम है। नरपर्वतपर शेषनेत्र, गणेशप्रयाग और किम्पुरुषखण्ड थोड़ी-थोड़ी दूरपर है। सरस्वती नदीके प्रवाहमें भीमसेनने एक शिला रख दिखा था, वह अबतक वर्तमान है और पार जानेके लिये पुलका काम देती है। माणागांव (मणिभद्रपुरी) में गणेशगुफा और न्यासाश्रम है। यहीं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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हिमालय दिगदर्शन व्यासजीने महाभारतका वर्णन किया और गणेशजीने लिया था। अष्टादश पुराणोंका निर्माण भी इसी स्थानमें हुआ था। माणागांवमें गन्धर्वजातिके ब्राह्मण निवास करते हैं। थोड़ी दूरपर राजा मुचुकुन्दकी गुफा है, यहांसे तिब्बत, मानसरोवर और कैलास जानेका मार्ग है। बद्रीनाथके यात्रियोंको जोशीमठसे मानसरोवर और कैलास जानेका रास्ता अधिक सुभीतेका है। इसके आगे दो मील पथरीला मार्ग कड़ी चढ़ाईके अन्तर लोग–'वसुधारा'-के समीप पहुंचते हैं। लगभग सौ गजकी ऊंचाईसे दो धाराएं गिरती है और वायुके झोंकेसे पानी कुहरेके कोंकी भाँति उड़ता रहता है। बर्फकी राशिके कारण ठण्डक शरीरको कंपाती है। वसुधाराके हिमवत् जलमें स्नान करना कठिन है। प्रायः लोग दूरसे छींटा लेते हैं। बसुधारासे तीन मीलपर सहस्रधारा है उससे आगे तीन मील पर-चक्रतीर्थ' है। वसुधारासे अलकापुरीका पहाड़ धुएंके समान दिखाई देता है।
बद्रीनाथकी पुरीके चारों ओर दूरतक मैदान है । बीच में अलकनन्दा गंगाबस्तीको दोभागोंमें विभक्त करती है।कुछ अन्तरपर दोनों और जय-विजय और नारायण नामके अत्यन्त ऊंचे हिमाच्छादित पर्वत है। बस्तीमें आजकल न तो अधिक ठण्डी ही सताती है और न गरमी मालूम होती है। दोप. हरमें खुले शरीर लोग चल-फिर सकते है और धाम
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अच्छा लगता हैं । इधर आलुकी पैदावारी अधिक होती है और खच्चरोंपर लदकर नीचेकी चट्टियों में जाती है। इसीसे पीछेकी चट्टियोंकी अपेक्षा यहां पहाड़ी आलू सस्ता बिकता है । यह स्थान समुद्र तटसे १०४८० फीटकी ऊंचाई पर कहा जाता है।
बदरीश भगवानके मन्दिरकी वार्षिक आय एक लाखसे अधिक है । मन्दिरके अधीन पर्याप्त जायदाद भी है, सबके दूस्टी रावलजी है । सारा प्रबंध उन्हींको सौंपा जाता है और भगवानकी पूजाके अधिकारी एकमात्र रावल ही है।
शङ्कराचार्यजी दक्षिणी नम्बरी ब्राह्मण थे । उन्होंने बदरीनाथकी मूर्ति स्थापन करके किसी निष्ठावान् नम्धी ब्राह्मणको पूजा-सेवाके लिये नियत कर दिया और उन्हें रावलकी पदवी प्रदान की थी; उसी प्रथाके अनुसार अबतक मद्रासकी ओरसे पवित्र आचरणवाले नम्बूरी ब्राह्मण बुलाये जाकर नायब रावल के पदपर प्रतिष्ठित किये जाते है। आगे चलकर वही रावल के पदपर प्रतिष्ठित किये जाते है । नायबकी नियुक्तिके लिए रावल का टेहरी दरपारसे स्वीकृति लेनी पड़ती है । नायब रावलका पद रिक्त होने पर एक वर्षके भीतर यदि रावलकी ओरसे कोई नायब पदपर अधिष्ठित न किया गया तो टेहरीके महाराज स्वयम् नायब रावलकी नियुक्ति करते है । नायबके रखने अथवा बहिष्कृत करनेको सूचना रावल टेहरी-दरबारको तुरन्त देते हैं।
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हिमालयदिग्दर्शन मन्दिरकी सारी सामग्री और आयात द्रव्यके व्यय होने वाले रसीदोंका व्योरेवार हिसाब रावलजीको रखना पड़ता है । पटबंद होनेपर प्रतिवर्ष अथवा दरबारके माँगनेपर कुल आय-व्ययका लेखा स्वीकृतिके लिये महाराज टेहरीकी सेवामे रावल भेज देते है । सारांश यह है कि मन्दिर और तत्सम्बन्धी जायदादका सारा प्रबन्ध टेहरी दरबारकी अनुमति लेकर ही रावलजी कर सकते है । सन् १८१९ ई० की बनी स्कीमके अनुसार महाराज टेहरी द्वारा नायब रावलके चुनावका कार्य स्वीकार किया जाता है । दुराचार प्रकट होनेपर उक्त नरेश रावल या नायब रावलको पदच्युत करके योग्य व्यक्तियोंको नियुक्त करते है । यह सब प्रबंध होते हुए भी कुछ लोग रावलजीके अपव्यय की शिकायत ही करते है कि अपने वेतनके सिवाय वे बहुत-साधन मनमाने ढंगसे व्यय कर डालते है । यह कहांतक सत्य है, में स्वल्प समयमें इसका पता नहीं लगा सका।
बद्रीनाथकी वास्तविकता
बद्री पहले प्रसिद्ध जैन तीर्थ था, क्योंकि प्रथम तीर्थकर श्रीऋषभदेव प्रभुका निर्वाण हिमालयके उच्चतम शिखर ( कैलास अर्थात अष्टापद) पर हुआ था । उसकी तलहटी बद्री और केदार होनेसे वहां पर जैन मंदिर बने । परन्तु शंकराचार्य के युगमें उसने स्वयं केदारके मन्दिरोंको तो बिल्कुल नष्टभ्रष्ट कर दिया। यहां तक कि आज नामोनिशान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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हिमालय दिग्दर्शन
तीर्थ “ श्री बदरीपुरी में वर्तमान नारायणके नामसे पुजाती हुई जैन २३वा तीर्थकर श्री पार्श्वनाथकी प्रतिमा
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आनंद प्रस-भावनगर.
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Lasborflay Jalo Gractisit: भी नहि मिलता। परन्तु बद्रीके मंदिरको न मालूम किस कारणसे नष्टभ्रष्ट न करते हुए अपना स्वत्व (अधिकार) नमा कर केवल मात्र प्रतिमाके दो हाथ और बढाकर चतु(जरूप नारायणके नामसे उस प्रतिमाको प्रकट की। यथार्थमें प्रतिमा दो हाथवाली व पद्मासनमें २।फुट ऊंची और परिकरवाली है तथा उपर छत्र बना हुआ है । उत्तरा खण्डमें जितने भी मंदिर है उन सबसे इसकी बनावट भिन्न है अर्थात् यह मंदिर सुचारु रूपसे जैन शैलीमें बना हुआ हैं। जैसे कि, दरवाजा, रंगमंडप, गूढ मंडप, कोरी तथा गभारा जैन शैलीमें हैं व मंदिरके उपरका गुम्बज भी जैन शैलीसे बना हुआ हैं। मंदिरके अंदर जैन तथा सुनार प्रवेश नहीं करने पाते । सुनारके प्रवेश न करने देनेका कारण दर्याफ्त करने पर यह ज्ञात हुआ कि किसी सुनारने पार्श्व प्रतिमाका भाषामें पारस प्रतिमा अपभ्रंश है, इसलिए पारसको पारसमणि समझ कर प्रतिमाकी अंगुली काटनेकी कुचेष्टा (धृष्टता ) की थी, अतः सुनार मात्रका प्रवेश होना बन्द किया गया तथा जैनोंको इसीलिये कि यह चतुर्भुनरूप नारायण नामक प्रतिमा चास्तवमें जैनोंके तेइसवें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथकी होने की वजह से।
बद्रीसे दो माईलकी दूरी पर एक मणिभद्रपुर नामक ग्राम है, जो कि इस समय माणा नामसे प्रसिद्ध हैं। वहां पर गन्धर्व जातिके दो सौ ब्राह्मणों के घर है। यह गन्धर्व नाति जैनियों में भोजक तथा गन्धर्वके नामसे प्रसिद्ध है।
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हिमालय दिगदर्शन
इन लोगोंको जैन समाजकी ओरसे मणिभद्रपुर नामक ग्राम बसाकर इसी लिए रखने में आया था कि बद्रीका रास्ता एकदम पथरीला तथा घने जंगलोंसे घिरा हुआ व भया. वना होनेके कारण यात्रियों को वहां तक पहुंचनेमें तथा वहां रहनेमें एवम् यात्रा करने में किसी प्रकारकी असुविधा न हो तथा मंदिरोंकी रक्षा भली प्रकारसे हो सके। बादमें शंकराचार्यके घोर अत्याचारके कारण इन लोगोंको अपना धर्म भी छोड़ना पड़ा इतना ही नहीं वरन् मंदिरको भी शंकाचार्थके हाथोंमें सौंपना पड़ा।
उपरोक्त कारणसे यह प्रतिमा चतुर्भुज नारायणके नामसे प्रसिद्ध हुई, परन्तु यथार्थमें नारायणकी नही वरन् जैनियोंके तीर्थकर पार्श्वनाथकी है। इसका प्रमाण कि, इसके झूठे-झूठे फोटोओंसे प्रकट हो जाता है, क्योंकि किसी भी प्रचलित फोटोकी आकृति एक सरीखो नहीं है। इतना ही नहीं परन्तु किसी फोटोमें प्रतिमा पद्मासनवाली है तो किसिमें सिद्धासनवाली तथा सिद्धासनमें बायां पैर चढ़ा हुआ है तो किसी में दाहिना । यहां तक कि सभी प्रचलित फोटो काल्पनिक लिए गये हैं। इस प्रतिमाका असली फोटो मुझे वहीं पर एक जगहसे प्राप्त हुआ है । उसकी असली कापी आपको इस पुस्तकमें देखनेको प्राप्त होगी जिससे आप लोगोंको ज्ञात होगा कि यह प्रतिमा चतुर्भुज नारायणकी नहीं वरन् दो हाथवाली परिकर सहित पद्मासन बिराजित जैन तीर्थकर पार्श्वनाथ की है। मंदिर के चौकमें घंटाकर्णकी मूर्ति है जो कि बद्रीपुरीके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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क्षेत्रपालके नामसे विख्यात हैं तथा यह क्षेत्रपाल जैनोमें ही हुए हैं।
यहां पर देखनेसे ज्ञात हुआ कि प्रतिमा पर जितना अत्याचार जगन्नाथपुरीमें हो रहा है उतना यहां पर नहीं, क्योंकि दद्रीके यात्री असली प्रतिमाके दर्शन करते हैं परन्तु जगन्नाथपुरीमें असली प्रतिमाके दर्शन न कर लकड़ीके खोखेके दर्शन करते हैं । इसका कारण यह है कि अन्दरकी नो वास्तविक प्रतिमा है उस पर खोखे मढ़े हुए हैं। किसी भी प्रकारसे यात्री अनेक प्रयत्न करने पर भी खोखेकी अन्दर रखी हुई प्रतिमाका दर्शन नहीं करने पाता, क्योंकि खोखा बारह वर्ष बाद परिवर्तन किया जाता है। तथा उस समय भी मन्दिरको चारों ओरसे बन्द कर दिया जाता.. और भीतर राजा, पुरोहित तथा सुथार यह तीन ही व्यक्ति रहते है। मंदिर बंद करने का कारण यह बतलाया जाता है कि खोखेके पीछे ( अन्दर ) कोई ऐसी शक्ति है कि जिसके अन्य कोई दर्शन या स्पर्श करे तो उसकी मृत्यु हो जाती है। प्रतः कोई भी नहीं दर्शन करने पाता ।
अब यदि इसपर विचार करके देखा जाय तो ज्ञात होगा कि क्या परमात्माकी प्रतिमाका दर्शन या स्पर्श करनेसे मृत्यु हो जाती है ? यह बात कभी भी किसी हासतमें माननेमें नहीं श्रा सकती तो फिर ऐसा क्यों? यदि खोखेके भीतर कुछ भी नहीं तो फिर मंदिर बन्द करनेका क्या कारण ? और यदि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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कुछ प्रतिमा या अन्य कोई वस्तु है तो किसी अन्य की है, इसलिए इतना आडम्बर किया जाता है। और यह भी मान लिया जाय कि जिस प्रकारके खोखे हैं उसी प्रकारकी भातर प्रतिमा है, यह भी मानने में नहीं आ सकता, क्योंकि जो खोखे हैं यह बिलकुल बैडोल तथा अनगढ़त है और वे ऐसे मालूम होते हैं जैसे खेतोंमें खेडूत (किसान) लोग चिड़ियों आदि जीवोंसे फसलको बचानेके लिए लकड़ीके ढूंठेको मनुष्याकृतिकी वेषभूषा पहिना कर गाड़ देते हैं इसी प्रकारके वे खोखे . हैं । ऐसी गुप्त कार्यवाही करनेमें कुछ न कुछ रहस्य अवश्य है। वह यह कि खोखेकी भीतरकी वस्तुपर किसी अन्यका अधिकार होनेकी आशंका है।
इसीलिये भी जैनियोंका पूर्ण दावा है कि यह मंदिर हमारा है तथा खोखेके पीछे (अन्दर) रखी हुई प्रतिमा हमारे तीर्थकर जिरावला पार्श्वनायकी प्रतिमा है। ऐसा हो मी सकता है कि यह तीर्थ जैनियोंका ही हो, क्योंकि जैन मात्रका आना बंद कर दिया गया है।
हिन्दु धर्मगुरुओंका यह कितना भारी अत्याचार है कि आज हिन्दू संसारमें वास्तविक प्रतिमाका दर्शन कोई नहीं करने पाता और ऊपर मढ़े हुए इन कठपुतली-चंचापुरुषचाडिये सवश खोखेके दर्शन कर सकते हैं। यहांका मंदिर बात विशाल है। मंदिरके शिखरके नोचेपूर्णरतिशास्त्रको प्रतिमाएं बनी हुई हैं कि जो एक समय ठीक समझी जाती होंगी।
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ईस मंदिरके दाहिनी ओर के दरवाजेके पास एक ताकमें डेढ़ फीट ऊंची काउसग मुदामें खड़ी जैन मूर्ति है और उस ताकपर कांचका जंगला लगा हुआ है । इस मंदिरपर जैनत्वको नाश करने वास्ते जितनी हो सकी उतनी कोशिश की गई है, तथापि जैनत्व कुछ अंशमें अब भी झलके बिना नहीं रहता । उपरोक्त सभी बातोंका शौर्य एवम् प्रतिष्ठाके धारणहार स्वामी शंकराचार्य ही है।"
मगर यहांपर (बद्रीमें) प्रातःकाल प्रतिमा खुली रखी जाती है व पत्ताल कराई जाती है इसके पश्चात् केशर चंदन तथा पुष्पपूजा होती है । पश्चात् आरती उतारी जाती है। इस समयके खुली प्रतिमाके दर्शनको निर्वाणदर्शन कहते हैं । यह सब होनेके बाद प्रतिमाको वस्त्र प्रलंकारादिसे सुसजित किया जाता है तथा वैष्णव विधि अनुसार भोगादि चढ़ना प्रादि कियाएं प्रारम्भ होती है।
यह सब पूजादि करनेका अधिकार केवल रावलको ही है मर्याद कोई भी यात्री पक्षाल करना प्रादि पूजा विधि स्वयं नहीं कर सकता दूरसे ही दर्शन कर सकता है। यदि कोई ऐतिहासिक दृष्टिसे प्रतिमाको प्राचीनका अवलोकन करना चाहे तो ५०) पचास रुपये फीस देकर देख सकता है। परन्तु जैन या सुनारको तो यह अधिकार नहीं है इस बातकी पूर्ण खोज की जाती है। और जब इस बातका पूर्ण निश्चय हो जाता है तब उसको प्रतिमाको छनेका अधिकार मिलता है।
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इससे साबित होता है कि यह तीर्थ सर्व प्रकारसे जैन होनेका दावा रखता है।
जैन समाजको चाहिये कि यदि वह कुछ नहीं कर सकता है तो एक छोटा सा मंदिर ही बना दे, क्योंकि उस मंदिरके द्वारा जैन धर्मका प्रचार होगा, और उसके द्वारा धीरे २ सर्वत्र जैन धर्मकी ध्वजा फहरा सकती है। क्या जैन समाज अष्टापद की तलहटी स्वरूप तीर्थको ओर नजर नहीं डालेगा?
विहार किया संवत् १९९५
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: ens
1709
बद्रीसे हरिद्वार माईल १८५ दिन समय देखो नोंध नं० नाम माईल स्थान १ सुवह
पाण्डुकेश्वर १०॥ धर्मशाला जोशीमठ ॥ हेलंगचट्टो
गरुड़ गंगा ॥ , शाम
पीपलचट्टी चमोली नंदप्रयाग ७ , सोनलाचट्टी । चट्टो कर्णप्रयाग ९॥ धर्मशाला गोवर
चट्टी शिवानंदी ॥ "
रुद्रप्रयाग ७ धर्मशाला सुबह ७ भट्टीसेरा १०॥ ,
श्रीनगर ७॥ ,
९ रानीबाग १२ चट्टो , शाम १० देवप्रयाग ६॥ धर्मशाला
ध्यासघाट ९ ॥ शाम
काण्डीचट्टी ४ चट्टी १३ सुबह
बन्दरमेल १० ॥
:
: :
शाम
:
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हरिद्वार
१४ १५
, "
नाई मोहन धर्मशाला
लक्ष्मण झूला ११ .. शाम
ऋषिकेश
, १६ सुबह
सत्यनारायण
हरिद्वार नोध नं०
(१) चमोली (लालसांगा) बद्रीनायसे पुनः इसी रास्ते वापिस लौटना होता है। यहांसे नंदप्रयाग तक रास्ता सोधा है।
चमोलीसे केदार माईल ६२
, बद्रो , ४८
, हरिद्वार .. १३७ सड़क हैं। (२) नंदप्रयाग-यह अलकनंदा और मन्दाकिनी के संगमपर बसा हुआ है। संगमस्थानपर यात्री स्नान करते हैं। यहां नन्द और गोपालजी का मन्दिर है। यहां की बस्ती बड़ी है। यहां बाबा कालो कमलीवालेका सदाव्रत है। यहां डाकखाना और टेलीफोन है। यहांसे आगे रास्ता घुमाव
और चढ़ाव-उतारका है। यहांसे १२१ माईल पर कर्णप्रयागके करी। कर्णगंगा या पिण्डर गंगा और अलकनन्दाका संगम बस्ती और अलकनन्दाके पुलसे दो फलोग पहले पड़ता है इसलिये यात्रीगण प्रायः संगम पर स्नान कर बस्तीमें जाते हैं। संगमपर उमा देवीका एक छोटा-सा मन्दिर है। पिण्डर नदीको लोहेके झूलेसे पार करके थोड़ी चढ़ाईका रास्ता चढ़ने के बाद चट्टीमें जाना होता है।
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हिमालय दिग्दर्शन
(३) कर्णप्रयाग-यहां पिण्डरगंगा और अलकनंदा के संगमपर स्नान होता है। बाबा काली कमलीवालेकी धर्मशाला और सदाव्रत है। यहांकी बस्ती बड़ी है। यहां अस्पताल, डाकखाना, तारघर और पुलिस स्टेशन है। उत्तराखण्डकी यात्रा यहीपर समाप्त होती है। यहांसे बहुधा यात्री हरिद्वार न जाते हुए मैलचौरी-गणाई होकर रामनगर या काठगोदाम जाकर ट्रेन पकड़ लेते हैं। मगर हरिद्वारसे ट्रेन पकड़ने में एक तो रास्ता अच्छा और दूसरी ये बात है कि अहांसे यात्रा प्रारम्भ की वहां जाकर समाप्त करनेसे यात्रा पूर्ण कही जाती है वो बात रहती है। अतः इससे यात्रियोंको हरिद्वार जाना चाहिये। कर्णप्रयागसे गणाई माईल ३९ और पहांसे रानीखेत ३८ माईल व रामनगर ५४ माईल है।
(४) गोचर-यह स्थान हरिद्वारसे बद्री हवाई जहाज में जानेवाले यात्रियोंके वास्ते हवाई जहाजका स्टेशन है। यहां का स्थान सुरम्य है।
(५) शिवानन्दी-यहां लक्ष्मीनारायणका मंदिर है। स्थान अच्छा है। शिवानन्दीसे रुद्रप्रयागके करीब अलकनन्दा मोर मन्दाकिनीके संगमपर स्नान करके केदारके रास्ते बाबा काली कमलीवालेकी धर्मशाला पहुंचते हैं। धर्मशालासे हरद्वारके यात्रीको संगमस्थान पर पुनः वापिस आना होता है और बायें हायके रास्तेसे हरद्वारको जाना होता है।
(६) रुद्रप्रयाग यहां बाबा कालीकमलीपालेकी धर्मशाजा और सवात केदार जानेवाली सड़कपर है। यहां
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हरिद्वार
: ७१ :
अलकनन्दा और मन्दाकिनीके संगम पर यात्री स्नान करते है। यहांसे गुप्त काशी माईल २५ पर है और वहांसे केदार माइल २४। यहांका बाजार अच्छा है, डाकखाना और तारघर है। यहाँसे आगे १॥ माईल जानेके बाद १॥ माईल कड़ी चढ़ाईका अनुभव करनेके बाद पंचभाइयोंकी खाल नामक चट्टी पाती है। उस चट्टोपर बद्री और हरिद्वारका मार्ग आधो अाध होता है । पंचभाइयोंकी खालसे भट्टीसेरा तक उतार ही उतार का रास्ता है।
पता-पोस्ट माष्टर साहेब
रुद्रप्रयाग (यू० पी० उत्तराखण्ड ) (७) भट्टी सेरा-चट्टीसे बाबा कालीकमलीवालेकी धर्मशाला और सदाव्रत दो फलोग दूर है। यहांसे देवप्रयाग तक मार्ग अच्छा और सीधा चला गया है।
(८) श्रीनगर-ये हिमालयका श्रीनगर है, इसका बाजार जयपुरसे मिलता-जुलता है । यह गढ़वालका सबसे बड़ा और प्राचीन नगर अलकनंदाके किनारे पर बसा हुमा है। यहां कमलेश्वर महादेवका मंदिर हैं और अलकनंदा तथा खाण्डव नदीका संगमसे थोड़ी ही दरपर है। यहां सभी आवश्यक चीजें मिलती है। यहां बाबा कालीकमलीवालेकी धर्मशाला और सदावत है। यहां अस्पताल, डाकखाना, तारधर, पुलिस स्टेशन और हाईस्कूल है। यहाँसे एक सड़क कोटद्वार रेलवे स्टेशन तक गई है। यहाँसे ऋषिकेश तक मोटर जाती है।
पता-पोस्ट मास्टर साहेब श्रीनगर (पू० पी० उत्तराखण्ड गढ़वाल)
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: ७२ :
हिमालय दिग्दर्शन
(९) रानी बाग-स्थान अच्छा है ।
(१०) देवप्रयाग-यहांसे हरिद्वार तकके मार्गकी नोंध हरिद्वारसे यमुनोत्रीके मार्ग वर्णनमें हरिद्वारसे :देवप्रयाग की नोंध लिखी गई है इसमें देखिये पेज नं० ४५ । यहांसे ऋषिकेश ओर ऋषिकेश से हरिद्वारको मोटर जाती है। बहुतसे यात्री ऋषिकेशसे सवार न होकर हरिद्वारसे सघार होकर अपने २ स्थानको रवाना होते है। हरिद्वारसे देवप्रयाग होकर यमुनोत्री माईल १६५, यमुनोत्रीसे गंगोत्री माईल ९९, गंगोत्रीसे केदार नाथ माईल १२३, केदारनाथ से बद्रीनाथ माईल ११०, और बद्रीनायसे देवप्रयाग होकर ऋषिकेश माईल १७० और वहांसे हरिद्वार माईल १५ होता है । हरिद्वारसे हरिद्वार उत्तराखण्डकी कुल मुसाफिरी ६८५माईलकी होती है।
विहार किया संवत् १९९५
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________________ शवि मूर्तिपूजा आत्म कल्य मानना बहुत आवः निर्माण भी हुआ है मूर्तिपूजा मोक्षका स ElcPbI HIRTE से सज्जित कर उनके वीतरागत्व को नष्ट कर रहे हैं / उचित तो यह होता कि हम ऐसी मूर्तिपूजा करे जो हमारे दिल में वीतरागत्व का उदय करे और दुनिया के लिये आदर्श हो। -प्रियंकरविजय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat આનદ સભાવનગર. www.umaragyanbhandar.com