________________
हिमालय दिग्दर्शन
~wwwwww~~~
~
~
कुछ प्रतिमा या अन्य कोई वस्तु है तो किसी अन्य की है, इसलिए इतना आडम्बर किया जाता है। और यह भी मान लिया जाय कि जिस प्रकारके खोखे हैं उसी प्रकारकी भातर प्रतिमा है, यह भी मानने में नहीं आ सकता, क्योंकि जो खोखे हैं यह बिलकुल बैडोल तथा अनगढ़त है और वे ऐसे मालूम होते हैं जैसे खेतोंमें खेडूत (किसान) लोग चिड़ियों आदि जीवोंसे फसलको बचानेके लिए लकड़ीके ढूंठेको मनुष्याकृतिकी वेषभूषा पहिना कर गाड़ देते हैं इसी प्रकारके वे खोखे . हैं । ऐसी गुप्त कार्यवाही करनेमें कुछ न कुछ रहस्य अवश्य है। वह यह कि खोखेकी भीतरकी वस्तुपर किसी अन्यका अधिकार होनेकी आशंका है।
इसीलिये भी जैनियोंका पूर्ण दावा है कि यह मंदिर हमारा है तथा खोखेके पीछे (अन्दर) रखी हुई प्रतिमा हमारे तीर्थकर जिरावला पार्श्वनायकी प्रतिमा है। ऐसा हो मी सकता है कि यह तीर्थ जैनियोंका ही हो, क्योंकि जैन मात्रका आना बंद कर दिया गया है।
हिन्दु धर्मगुरुओंका यह कितना भारी अत्याचार है कि आज हिन्दू संसारमें वास्तविक प्रतिमाका दर्शन कोई नहीं करने पाता और ऊपर मढ़े हुए इन कठपुतली-चंचापुरुषचाडिये सवश खोखेके दर्शन कर सकते हैं। यहांका मंदिर बात विशाल है। मंदिरके शिखरके नोचेपूर्णरतिशास्त्रको प्रतिमाएं बनी हुई हैं कि जो एक समय ठीक समझी जाती होंगी।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com