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हिमालय दिगदर्शन कभी इससे भी कम-ज्यादा हो जाता है। जब कुली कम रहते हैं और उनकी मांग अधिक रहती है तब भाडे की दर तेज हो जाती है और जब कुली अधिक रहते हैं और उनकी मांग कम रहती है तब भाडेकी दर घट जाती है। खाद्य पदार्थोकी तेजी और मंदीसे भी भाडेकी दर पर बहुत असर पड़ता है। कुली लोग प्रायः झप्पान या कंडी में बैठनेवाले सवार को देखकर अथवा तौलकर सारे सफर का ठेका करते हैं। वे मंजिलोंको गिन कर और रुपया रोज या सवा रुपया रोज के हिसाब से ठेका नहीं ठहराते पर उनका ठेका प्रायः ऊपर लिखी शहरके आधार पर कम-ज्यादा होता है। यात्री लोगोंको जिन्हें कंडी अप्पान अथवा दांडीके लिये कुली ठहराने हों उन्हे चाहिये कि इस पुस्तकमें लिखी हुई 'चट्टियोंकी सूची' को देख कर सारे सफर का फासिला मालूम कर लें और उस फासिलेकी मंजिलें औसतन १२ मील फी पड़ावके हिसाब से निकालकर उस पर फी कुली एक रुपया फो पड़ाव लगा कर सारे सफर का औसतन भाडा मालूम कर लें। कंडीवाले एक मन (४० सेर) बोझा ढोते हैं । यदि सवारी स्थूलकाय हुई तो झप्पानवाले कहार कुछ अधिक मजदूरी ठहराते हैं। कुलियोंको नित्य जलपान, प्रधान तीर्थस्थानों में खिचडी और विराम के दिनों में पूरा भोजन ठहराव के अनुसार यात्रीगण मजदूरी के अतिरिक देते हैं। पता-पोस्ट मास्टर साहब
ऋषिकेश (यु. पी.) (३) लक्ष्मण झूला यहां भागीरथी (नेगा) किनारे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com