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यमुनोत्री
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चोरी-बटवारीका भय नहीं रहता। कंडी, झप्पान और दांडी ढोनेवाले कूली हरद्वार और ऋषिकेशकी अपेक्षा अधिकांश इसी जगह मिलते हैं। बांसको चीरकर उसके पतले सीकचोंसे मोढेके आकारकी बनी टोकरी जिसके पीछे की ओरका आधा हिस्सा कटा रहता है, इसको केडी कहते है। इसमें यात्रियोंका सामान लादकर अथवा यात्री बाहरको पांव लटकाकर बैटता है, उसको पीठपर लादकर कुली ले जाता है, किन्तु यह सवारी यात्रियों को कष्टदायक होती है । कंडीकी अपेक्षा झप्पान में आराम रहता है, इसकी बनावट छोटे तामजान के सदृश होती है और चार कूली कन्धे पर लेकर चलते हैं। वे अपनी ओर से झप्पान रखते हैं । झप्पान से भी बढ़कर आराम यात्रियोंको दांडीमें मिलता है। परन्तु दांडी कुली लोग नहीं रखते वह यात्रियोंको खरीदना अथवा बनवाना पड़ता है और इसकी बनावट झप्पान से मिलतीजुलती होती हैं। भाडे के टव भी मिलते हैं। यही चारों सवारियां इस रास्तेके लिये प्राप्त होती है। इस स्थानके सिवा आगे पहाड़में भी कहीं कहीं ये सवारियां मिल जाती है।
कुलियोंके भाडेकी दर
कुली, झप्पान तथा दांडीके कुलियोंका भाड़ा प्रायः की कुली एक रुपया रोज के हिसाब से पड़ता है । कभी.
कभी यह दर बढ़ कर सवा रुपया रोअ तक हो जाती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com