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बद्री
द्वार निकलकर गंगाजीमें जाता है। कुण्ड पन्द्रह-सोलह हाथ लम्बा-चौड़ा पक्का और नाभिपर्यन्त गहरा है। टीनकी चादरसे छाया है। जलका स्पर्श करनेसे वह अधिक गरम जान पड़ता है परन्तु गोता लगाने में बड़ा आनन्द आता है। तप्तकुण्डके समीप नारदशिला है, उसके नीचे नारदकुण्ड है। इसके सिवाय ब्रह्मकुन्ड, गौरीकुम्ड और सूर्यकुन्ड है। नारदशिलाके अतिरिक्त गरुड़शिला, नृसिंहशिला, वराहशिला और मार्कण्डेयशिला है। अलकनन्दा और ऋषिगङ्गाके सङ्गमकी धारा, प्रह्लादधारा और कूर्मधारा है। कूर्मधाराका पानी मीठा, शीतल और अत्यन्त पाचक है। पुरीके लोग इसी धाराका जल पीते हैं। थोड़ी दूर उत्तरकी ओर ब्रह्मशिला है।
ब्रह्मकपालशिलाके पास इन्द्रधारा और वसुधारा है। गंगाजीके उस पार नरपर्वत है, पहले अलकनन्दा पार करनेके लिये यहां रस्सीका झूला था, उसोसे पार होकर नरपर्वतपर जाते थे किन्तु अब कई वर्षसे वह बनाया नहीं जाता, इससे चक्कर खाकर पुलसे अलकनन्दा पार करके जाना होता है। इधर अलकनन्दा और सरस्वतीका संगम है। नरपर्वतपर शेषनेत्र, गणेशप्रयाग और किम्पुरुषखण्ड थोड़ी-थोड़ी दूरपर है। सरस्वती नदीके प्रवाहमें भीमसेनने एक शिला रख दिखा था, वह अबतक वर्तमान है और पार जानेके लिये पुलका काम देती है। माणागांव (मणिभद्रपुरी) में गणेशगुफा और न्यासाश्रम है। यहीं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com