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हिमालय दिगदर्शन
कल्याण के लिये कई साधु-संन्यासी रहते हैं। यहांसे १ माइल दूर केदार गंगा भागीरथीसे मिलती है, जिसका पानी भूरे रंगका है। यहांसे गंगाउत्पत्ति स्थान १० माइल दूर है। वहां जाने वास्ते अधिक बर्फ होने की वजहसे तथा रास्ता दुर्गम होने से प्रत्येक यात्री जाने नहीं पाते है, अतः इसी स्थानमें हो दर्शन-स्नान कर अपने को कृत-कृत समझ वापिस " मल्ला-बट्टो"को केदार व उत्तर काशी जाने को लौट जाते है। केदार, बदरीनाथ, गंगोत्री और यदुनोत्रोके पहाड़ी मार्गमें सौदागर लोग हरिद्वारकी अोरसे पाटा, दाल, चावल इत्यादि झुण्ड-के-झुण्ड खबर, गइहे, बकरे, बकरी और भेड़ोंपर लादकर लाते हैं और चट्टोके दुकानदारोंको बेंचकर लौट जाते है। यहां के गंगाके जलकी अधिक पवित्रता हो गयी है यात्रीगण छोटीसी जलदानी में भरकर पानो अपने स्थानको ले जाते हैं । यहांसे मल्लाचट्टो तक पूर्व कथित मार्गसे वापिस लौटना चाहिवे, माईल ४० ।
गंगोत्रीकी वास्तविकता अवतारी पुरुषों का जिन जगह मोक्ष होता है उस भूमिको मोक्षभूमि, निर्वाणभूमि वा कैजासके नामसे पुकारते है।
जैन तीर्थंकर प्रभु ऋषभदेव स्वामीका जिस जगह मोक्ष हुआ इस भूमिको निर्वागभूमि, मोक्षभूमि या कैलासके नामसे पुकारते है । हिन्दु धम शास्त्रोंमें भी बयान है । जैन शास्त्रोमें
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