Book Title: Himalay Digdarshan
Author(s): Priyankarvijay
Publisher: Samu Dalichand Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 78
________________ ईस मंदिरके दाहिनी ओर के दरवाजेके पास एक ताकमें डेढ़ फीट ऊंची काउसग मुदामें खड़ी जैन मूर्ति है और उस ताकपर कांचका जंगला लगा हुआ है । इस मंदिरपर जैनत्वको नाश करने वास्ते जितनी हो सकी उतनी कोशिश की गई है, तथापि जैनत्व कुछ अंशमें अब भी झलके बिना नहीं रहता । उपरोक्त सभी बातोंका शौर्य एवम् प्रतिष्ठाके धारणहार स्वामी शंकराचार्य ही है।" मगर यहांपर (बद्रीमें) प्रातःकाल प्रतिमा खुली रखी जाती है व पत्ताल कराई जाती है इसके पश्चात् केशर चंदन तथा पुष्पपूजा होती है । पश्चात् आरती उतारी जाती है। इस समयके खुली प्रतिमाके दर्शनको निर्वाणदर्शन कहते हैं । यह सब होनेके बाद प्रतिमाको वस्त्र प्रलंकारादिसे सुसजित किया जाता है तथा वैष्णव विधि अनुसार भोगादि चढ़ना प्रादि कियाएं प्रारम्भ होती है। यह सब पूजादि करनेका अधिकार केवल रावलको ही है मर्याद कोई भी यात्री पक्षाल करना प्रादि पूजा विधि स्वयं नहीं कर सकता दूरसे ही दर्शन कर सकता है। यदि कोई ऐतिहासिक दृष्टिसे प्रतिमाको प्राचीनका अवलोकन करना चाहे तो ५०) पचास रुपये फीस देकर देख सकता है। परन्तु जैन या सुनारको तो यह अधिकार नहीं है इस बातकी पूर्ण खोज की जाती है। और जब इस बातका पूर्ण निश्चय हो जाता है तब उसको प्रतिमाको छनेका अधिकार मिलता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86