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हिमालयदिग्दर्शन मन्दिरकी सारी सामग्री और आयात द्रव्यके व्यय होने वाले रसीदोंका व्योरेवार हिसाब रावलजीको रखना पड़ता है । पटबंद होनेपर प्रतिवर्ष अथवा दरबारके माँगनेपर कुल आय-व्ययका लेखा स्वीकृतिके लिये महाराज टेहरीकी सेवामे रावल भेज देते है । सारांश यह है कि मन्दिर और तत्सम्बन्धी जायदादका सारा प्रबन्ध टेहरी दरबारकी अनुमति लेकर ही रावलजी कर सकते है । सन् १८१९ ई० की बनी स्कीमके अनुसार महाराज टेहरी द्वारा नायब रावलके चुनावका कार्य स्वीकार किया जाता है । दुराचार प्रकट होनेपर उक्त नरेश रावल या नायब रावलको पदच्युत करके योग्य व्यक्तियोंको नियुक्त करते है । यह सब प्रबंध होते हुए भी कुछ लोग रावलजीके अपव्यय की शिकायत ही करते है कि अपने वेतनके सिवाय वे बहुत-साधन मनमाने ढंगसे व्यय कर डालते है । यह कहांतक सत्य है, में स्वल्प समयमें इसका पता नहीं लगा सका।
बद्रीनाथकी वास्तविकता
बद्री पहले प्रसिद्ध जैन तीर्थ था, क्योंकि प्रथम तीर्थकर श्रीऋषभदेव प्रभुका निर्वाण हिमालयके उच्चतम शिखर ( कैलास अर्थात अष्टापद) पर हुआ था । उसकी तलहटी बद्री और केदार होनेसे वहां पर जैन मंदिर बने । परन्तु शंकराचार्य के युगमें उसने स्वयं केदारके मन्दिरोंको तो बिल्कुल नष्टभ्रष्ट कर दिया। यहां तक कि आज नामोनिशान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com