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अच्छा लगता हैं । इधर आलुकी पैदावारी अधिक होती है और खच्चरोंपर लदकर नीचेकी चट्टियों में जाती है। इसीसे पीछेकी चट्टियोंकी अपेक्षा यहां पहाड़ी आलू सस्ता बिकता है । यह स्थान समुद्र तटसे १०४८० फीटकी ऊंचाई पर कहा जाता है।
बदरीश भगवानके मन्दिरकी वार्षिक आय एक लाखसे अधिक है । मन्दिरके अधीन पर्याप्त जायदाद भी है, सबके दूस्टी रावलजी है । सारा प्रबंध उन्हींको सौंपा जाता है और भगवानकी पूजाके अधिकारी एकमात्र रावल ही है।
शङ्कराचार्यजी दक्षिणी नम्बरी ब्राह्मण थे । उन्होंने बदरीनाथकी मूर्ति स्थापन करके किसी निष्ठावान् नम्धी ब्राह्मणको पूजा-सेवाके लिये नियत कर दिया और उन्हें रावलकी पदवी प्रदान की थी; उसी प्रथाके अनुसार अबतक मद्रासकी ओरसे पवित्र आचरणवाले नम्बूरी ब्राह्मण बुलाये जाकर नायब रावल के पदपर प्रतिष्ठित किये जाते है। आगे चलकर वही रावल के पदपर प्रतिष्ठित किये जाते है । नायबकी नियुक्तिके लिए रावल का टेहरी दरपारसे स्वीकृति लेनी पड़ती है । नायब रावलका पद रिक्त होने पर एक वर्षके भीतर यदि रावलकी ओरसे कोई नायब पदपर अधिष्ठित न किया गया तो टेहरीके महाराज स्वयम् नायब रावलकी नियुक्ति करते है । नायबके रखने अथवा बहिष्कृत करनेको सूचना रावल टेहरी-दरबारको तुरन्त देते हैं।
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