Book Title: Himalay Digdarshan
Author(s): Priyankarvijay
Publisher: Samu Dalichand Jain Granthmala

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Page 43
________________ हिमालय दिगदर्शन सगर-पुत्र ! तो नागराजने उनको कहा कि हमको नुकसान पहुंचाना आपको उचित नहीं है, इस तरह कहकर नागराज अपने स्थानको चला गया । इधर जन्हवने खाई खोदना तो बन्द किया मगर जितनी खाई खोदी गई उसमें पानी भर लेना चाहिए। उस विचार पर अपने दंडरत्नसे गंगाका कांठा तोडकर गंगाको खाई में प्रवाहित किया। खाई भर जानेकी पजहसे गंगाको आगे बढ़ने वास्ते रास्ता मिल गया और वह आगे बढती हुई देशको बहुत नुकसान पहुंचाने लगी। दुसरी खाईमें पानी जानेकी वजहसे नागकुमारोंके राजा नागराजने बाहर प्राकर अपनी प्रचंड ज्वालासे ६० हजार सगर-पुत्रोंको जलाकर भस्मीभूत कर डाला सगर चक्रवर्ती को अपने ६० हजार पुत्रोंकी इस तरहकी मृत्युसे आघात पहुंचा और गंगा द्वारा देशको नुकसान पहुंचानेसे भी अपार दुःख हुआ । तब सगर चक्रवर्तीने भगीरथको प्राज्ञा दी कि तुम कैसेही...गंगाका रोध करो। तब भगीरथ गंगास्थानको आ वहां अष्टम तप कर (तीन रोजका उपवास कर ) बैठ गये। फलतः गंगाका रोध हुआ। तबसे जन्हव गंगाको लाया इससे जाह्नवी नाम पड़ा और भगीरथने गंगा वेगको रोध किया इससे भगी. रबी नाम पडा। प्रतः गंगाको लानेवाले और रोध करनेवाले चैन राजकुमार थे। विहार किया 'संवत् १९९५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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