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गंगोत्री
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अष्टापदके नामसे भी जाहिर किया गया है, और अधिक. इसी नामसे प्रसिद्ध है । जिसका इतिहास इस प्रकार है
ऋषभदेव प्रभुके बड़े पुत्र राजा भरत चक्रवर्तीने प्रभु निर्वाणभूमिपर सिंहनिषद्या नामक चैत्य निर्माण किया, उसमें ऋषभदेव प्रभु सहित भावो तेईस तीर्थकरों का शरीरप्रमाण रत्नमयी चौवीस मूर्तियें स्थापित की तथा अपने निन्यानवे भाई जो प्रभुके पास दीक्षित हुये थे उनके चरण व अपनी दादी मा महदेवीके भी चरण स्थापित किये । उस चैत्यके रक्षार्थ चारों ओर किलेबंदी की और प्रभु निर्वाणभूमि तक ( कैलास पर ) सुभीते से चढ़ने उतरने वास्ते चारों ओर आठ आठ सीढीयें बनवाई इससे कैलासका दूसरा नाम अष्टापद प्रसिद्ध हुप्रा ।
इस मन्दिरके निर्माणके बाद भरत चक्रवर्ती के पुत्र सगर चक्रवतींने सोचा कि ऐसे अमूल्य मन्दिरको भविष्य में कोई जरूर नुकसान पहुंचायेगा । अतः इससे बचाने के लिये कैलास अापके चारों ओर खाई बनवा कर पानी भर देना ठीक है । यह बात अपने ६० हजार पुत्रोंको जाहिरकी और वनवाने वास्ते आज्ञा दी । बिनयी पुत्रोंने आज्ञा शिरोधार्य मान प्रस्थान किया और जन्हधने अपने दंडरत्नसे खाई खोदना प्ररम्भ कर दिया । खाई खोदते २ जब वे अधिक गहरे चले गये तो नागकुमारों के मकान नष्ट होने लगे । तब फिर नागकुमारने अपने राजा नागराजके पास जा अपना दुःख प्रकट किया । उस समय नागराज बाहर आया और देखा तो सब
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