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हिमालय दिग्दर्शन
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कहते है कि श्रीबदरीनाथकी मूर्तिको शंकराचार्यजीने नारदकुण्डसे निकालकर उपर मंदिरमें स्थापन किया था। मंदिरके बाहर चारों ओर दीवारका घेरा है । इस घेरेके भीतर परिकमाके निमित्त चौड़ा मैदान है, इसी मैदानसे होकर लोग मन्दिरकी प्रदक्षिणा करते है । एक बारकी क्रमा लगभग पौने फागमें पूरी होती है । मन्दिरके सामने खुले मेदानमें गरुड़की मूर्ति है, उनके पीछे अञ्जनीकुमारकी विशाल मूर्ति है । दक्षिणमे पाकालय है। इसमें भोगके लिये व्यञ्जनादि तैयार होते है । पाकालयके पश्चिम लक्ष्मीजीका मन्दिर है । भगवानके मन्दिरके पीछे धर्मशिला और चरणोदककुण्ड है.। बायीं और घण्टाकर्ण क्षेत्रपाल और अष्टधातुका बड़ा घण्टा टंगा है । फाटकसे बाहर निकलकर नीचे आनेपर बायें तरफ रावलजीकी गद्दी और उनका दफ्तर है । यहां यात्रीगण ( अटका भोगके लिये रुपये) चढ़ाते हैं, उनदो रसीद मिलती है और बदलेमें प्रसाद दिया जाता है ।
श्रीबदरीनाथके मन्दिरके सामने नीचे अलकनन्दा गंगा बहती है । सीढ़ियोंसे उतरकर जलके समीप तीर पर जाना पड़ता है। पहले शंकराचार्यकी मूर्ति और केदारनाथका छोटासा मन्दिर पड़ता है । यहांसे बीमों सीढियाँ नीचे नानेपर तप्तकुण्ड,-मिलता है। जिसमें यात्री स्नान करते हैं। कुण्डमें गरम जलकी दोधाराएं गिरती हैं और एक पतली धारा शीतल जलको वहती है। दूसरी ओरसे बढ़ोल जल नाल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com