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यमुनोत्री
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लक्ष्मणजीका प्रसिद्ध मन्दिर है । भागीरथीका पाट कम है मगर गहराई अधिक है । अब सीढ़िये बन जाने से यात्री बहुत सरलतासे नीचे जाकर गंगाजी और ध्रुवकुण्ड में स्नानअर्चनादि करते है । यहां बाबा काली कमलीवालेकी धर्मशाला और सदाव्रत है । गंगाजीके उस पार सीताकुण्ड और सूर्यकुण्ड है । कुछ बस्ती, तपस्त्रीओंके आश्रम, मंदिर, धर्मशालाएं और पाठशाला है । उस पार जानेके लिये कलकत्तेके राय सूरजमलजीके परिश्रमसे बना हुआ पुल है। उसे झूला इस लिये कहते है कि लोहेके रस्सोंपर लटकता हुआ बना है, नीचे खम्भे नहीं हैं । उत्तराखण्डकी यात्रामें ऐसे झूले जगह जगह पर बने हुए है । इस स्थानसे पहाडोंमें सफर करना शुरू होता है। यहांका स्थान रमणीक और चित्ताकर्षक है ।
( ४ ) गरुड़ चट्टी —यहां गरुड़जीका जलमंदिर है । यहांकी धर्मशाला विशाल रूपमें दो मंजिली है। यहां अनार, केला, आम आदिके हरे-भरे वृक्ष - कुंजसे यहांकी शोभा मनको अपूर्व आनन्द पहुंचाती है। यहांसे "महादेव सेण " चट्टी ६|| मील है, वहां पंचायती धर्मशाला और सदाव्रत है । महादेव सैणसे “नाई मोहन " चट्टी ०॥ मील है और वहांसे आगे ० मील धर्मशाला है। गरुड़ चट्टीसे आगे आगे पहाडोंपर खेतोंकी धनुषाकार क्यारियां दृष्टिगोचर होती है ।
(५) नाईमोहन चट्टी - यहां बाबा कालीकमलीवालेकी धर्मशाला है । धर्मशालाके पास फूल नदी है । यहांसे आगे ४ भीलकी फिर बड़ी बीजनीसे आगे १ मील
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