________________ Mh अध्याय पहला आचार्यकल्प पं. टोडरमलजी विरचित सम्यग्ज्ञानचंद्रिका-पीठिका (दोहा) वन्दौं ज्ञानानन्द-कर, नेमिचन्द गुणकंद। माधव-वन्दित विमल पद, पुण्य पयोनिधि नंद / / 1 / / दोष दहन गुन गहन घन, अरि करि हरि अरहत। स्वानुभूति-रमनी-रमन, जग-नायक जयवंत / / 2 / / सिद्ध शुद्ध साधित सहज, स्वरस सुधारस धार | समयसार शिव सर्वगत, नमत होऊ सुखकार ||3|| जैनी बानी विविध विधि, वरनत विश्व प्रमान / स्यात्पद मुद्रित अहितहर, करहु सकल कल्यान ||4|| मैं नमो नगन जैन जन, ज्ञान-ध्यान धन लीन / मैन मान बिन दान धन, एन हीन तन छीन ||5|| इह विधि मंगल करन तैं, सब विधि मंगल होत / होत उदंगल दूरि सब, तम ज्यों भानु उद्योत ||6|| अब मंगलाचरण करके श्रीमद् गोम्मटसार, जिसका अपर नाम पंचसंग्रह ग्रन्थ, उसकी देशभाषामय टीका करने का उद्यम करता हूँ। यह ग्रन्थसमुद्र तो ऐसा है, जिसमें सातिशय बुद्धि-बल युक्त जीवों का भी प्रवेश होना दुर्लभ है और मैं मंदबुद्धि (इस ग्रन्थ का) अर्थ प्रकाशनेरूप इसकी टीका करने का विचार कर रहा हूँ।