Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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अथ त्रिचूलिका अधिकार ||४||
उहाइजिनवरिंदे असहायपरक्कमे महावीरे । पणमिय सिरसा बोच्छं तिचूलियं सुणुह एयमणो ।। ३९८ ||
वृषभादिजिनवरेंद्रान् असहायपराक्रमान् महावीरान् । प्रणम्य शिरसा वक्ष्यामि त्रिचूळिकां श्रुणुतैकमनसः ॥
असहायपराक्रमरुं महावीररुगळमप्प वृषभादिजिनवरेंद्ररुगळं तळेर्यरकदिवं नमस्करिसि नवप्रश्न | पंचभागहार । दशकरण भेवभिन्नमप्प त्रिचूलिकयं पेव्व केळिमेक चित्तमनुळळरागि एंबित शिष्यरुगळ संबोधिसत्पदृरु ॥
उक्तानुक्तदुरुक्तचिंतनं चूलिक ये बुबक्कुमल्लि प्रथमोद्दिष्ट नवप्रश्नचूलिकेयं पेव्वपर :किं बंधी उदयादो पुव्वं पच्छा समं विणस्सदि सो । सपरोभयोदयो वा निरंतरो सांत उभयो || ३९९ ॥
कि बंध: उदयात्पूव्वं पश्चात्समं विनश्यति सः । स्वपरोभयोदयो वा निरंतरः सांतर
उभयः ॥
उदयव्युच्छित्तिर्थिदं मुन्नं बक्किं युगपदबंधच्युच्छित्ति यावुदु सः आबंधं स्वोदर्याववं परोदर्याददमुभयोदर्याददमाउदु वा मते निरंतरं सांतरमुभयबंधमुमाउदे वितु नव प्रश्नंगळप्पुवल्ल
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असहायपराक्रमान् महावीरगुरून् वृषभादिजिनवरेंद्रांश्व शिरसा प्रणम्य नवप्रश्न- पंचभागहार- १५ दशकरणनामत्रिलिकां वक्ष्यामि शृणुतैकमनसः । उक्तानुक्तदुरुक्तचितनं चूलिका ।। ३९८ ।। तत्र तावन्नवप्रश्नचूलिकामाह
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उदयव्युच्छित्तेः पूर्वं पश्चात् युगपद्द्बन्धव्युच्छित्तिः का । स बंधः स्वोदयेन परोदयेनोभयोदयेन कः ? वा
जिनका ज्ञानादि शक्तिरूप पराक्रम इन्द्रिय आदिकी सहायतासे रहित हैं उन भगवान् महावीर और ऋषभ आदि जिनेन्द्रदेवोंको सिरसे नमस्कार करके नवप्रश्न पंचभागहार २० और दसकरण नामक त्रिचूलिका अधिकारको कहूँगा । तुम एकचित्त होकर सुनो। जो अर्थ कहा गया है, या नहीं कहा गया, या ठीक रीतिसे नहीं कहा गया है उस सबके चिन्तन करने को चूलिका कहते हैं || ३९८ ||
प्रथम नवप्रश्न चूलिका कहते हैं
पूर्व में कही प्रकृतियों में से उदय व्युच्छित्तिके पहले बन्धकी व्युच्छित्ति किन प्रकृतिया २५ की होती है ? उदय व्युच्छित्तिके पीछे बन्धकी व्युच्छित्ति किन प्रकृतियोंकी होती है ? तथा
क-८२
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