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NAVAJAYAMLONI
A संज्ञक
प्राकृत ग्रन्थ प्रतिगत
अन्तिम पत्र प्रतिकृति
A print of last page of
Prakrit
Ms. of
Dhū. 'A'
सिंघी जैन ग्रन्थमाला ]
[ धूर्ताख्यान
मामी श्रदारिक बयाना ४यवसायी हल रसालाग मिजहना ॥ मनाशी दवा ६ मा फलान्यरामायणे महाजवान उमन्स सभी विनिया कारण साऊगालाइ परमकं तदणिश्रमीजदा ि
कमर मिया र समिहंगया है। कारण पविणि श्रासि धुणीश्रविराण पनि श्रादायादि। माइदि विडि हश्रय वाणामुनी किती जिन विना ॥ अपि निपिइ सय मदामतपत्र विद्यालयाणमखिश्रादि मनापाता विधिमा जाग्रा का दिल निम दिलाएं॥६॥ सिरिमाणाकणात सिमा समायडि क्या उपसमज नाम दि पिश धीमानिसमा निश्चियः प्रत्यनिधानकाला वदनिजी नारविना कराणि ॥ वदिंड नाम श्री शमश्रले अवित स्कायाला मिश्रवम्मद रामादा महंगा या मुसुवाधार सुनिल मित्र सदा ॥1057 इस ग कष्टाविति सामार्तिनानि सोकविदितमपि निश्रयाला श्रमितिमा जपणारी मल मुत्रावयवं ध्य॥ खेसा मणिश्रमण जद का वास के डली जाएं। ज द सिरकवाल मात्रा रुक्षिमिणा राम याप्सन सुदिकायाजीवाला निवात्रामा वा तातेक्रम शिक्षासह ताजकिय एकोनाइदनिचनादिए मिमाबाक समय दादा मियान महासययात्रा दरिमण 20 डिडसिरितिय मित्रमुरिश्रम हाइजम्मस सिवधयाना (जिगाम परिसासनी ॥ २२॥ ॥ खंडवालावर कथानक दश ॥ तिरियादेवमाख्यानकं समाई॥ कन्याणम
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A संज्ञक संस्कृत ग्रन्थ प्रतिसत्क
अन्तिम पत्र प्रतिकृति
Last page of Sanskrit Ms.
of Dhū. ‘A’
S/35 (1239) 133121 grzeczną
१.२ पो.३ -খ
मनोरथः । हदादुसमनानेन नमो शिव दंतिना । [१०] पत्रता गत्तो लोकावणिजा नगरिणा । मा रितस्त्रमा ब्राह्मणा ममपा मना ॥ ११॥ नाडी ती विराजदचनः पुनः। नमनि काकपाल मानेनेति विललापस । १२ विहस्तोस छायश्रेष्ठा परिकरावितः विलपनी बन पोतमा कोलाहल १२ खडिका में हार ना मानवाला अशोक ददता तेयाजा विकामयाः॥१४क सिको साखुपादाय निरगादूहा पितापायो दानमाहात्म्यतोड़ डा निर्मा१५ एवं वापि सुदिता स्वतस्यान्तम । प्रो सन्मणिमारी करन
१६ कानामादाय वस्तू निविविधा निसा । यतोजयामास हिज्ञानि ॥१७ तेः सार्वत्रोपसर्गभनरके सत्यवते । डेमावेवजानी मोजा विमंसुनिश्चित ॥ यद्वयाविग्गीि विजित्यति नोदना तोबा देवाः समानजनो जाने ॥ १ए सुि किसान विबुधास्तन्न जानं निजपि चत्रिशकिमाम्रपिवनः प्रददेति यरंगनाः ॥२०॥ धात्या खालि विमृपाघनानिव पुरुषाः स मः । यानि स्त्रियः प्रत्पत्तिधानका ले तिली ला रवि ताराणि २१ चंद्रेश्वायु मारवता धर्मानियो पिच। इखिता निखिला लो को स्मराप साररोगिण॥२२॥ वासराला सूकूलविते दत भगवान् सर्वगो विनितिक तिगीयत। २४ यदि सर्वगतो विभुरितिस २४ से अमाला केमामलान ( जातोपिवासाचे नृपः। प वह बेचा। गीत तिपदंद्वियकरण विसारिताः ॥ २६तो दोला कि वाक् नितरियानं समाप्ते ॥ ॥
बोजवे तदास्मरा रोगोपी किंचितयतिकामिवत् ॥ गणाधिप। २५ इत्येते कि काला पुराणादिसमुद्र समजा था श्वदि। रम्पतचिंत्यमानं नवा ॥ २०२
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