Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): Haribhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad

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Page 136
________________ बालावबोधरूपगूर्जर भाषामय धूर्ताख्यान कथा ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ सदुपनिषदनेकग्रन्थसन्दर्भ भाभिः, परस मयतमांसि ध्वंसयित्वाऽपुताद् यः । गगनमित्र दिनेशः शासनं जैनमेतत्, स जयतु हरिभद्रसूरिरुहामधामा ॥ १ ॥ Y इह हि चतुर्दशशतसंख्य प्रकरणप्रणेतृभिः सितपटपटलमुकुटमणिभिर्निःप्रतिभप्रतिभाप्रागल्म्यपराजितामरसूरिभिः श्रीहरिभद्रसूरिभिः मिथ्यादृष्टिभिः प्रणीतानां समयानाम्, अन्तर्वाणिचेतश्वमत्कारकारण (रिणी) भिः स्वोपज्ञ सयुक्त (क्ति) श्रेणीभिः कुसु ( स ) मयतां सम्यग् व्यव. " स्थाप्य, तैरेव प्रतिपादितानां भारत- रामायण- पुराणादीनां कथाग्रन्थानामपि धूर्त्ताख्यानसमानतां दर्शनाय निर्मितस्य धूर्त्ताख्यानाभिधानस्य कथाग्रन्थविशेषस्य लोकभाषायां कथा लिख्यते ॥ F श्रीमालवदेशे' उजेणी नगरी, तेहनै उत्तरदिसिं एक उद्यान छइ । ते उद्यान मांहिं' मायावंत, अकार्य करवा नित्यद्यभवंत, निर्दय, स्त्री बाल वृद्ध विश्वासीना घातक, वंचनापंडित, धूप अंजन चूर्ण योगें अवस्खापनी, स्थंभनी प्रमुखविद्याई, स्वरभेद, वेषभेद, वर्णभेदें करी जगना छेतरणहार, IS अनेक धूर्त्त किहांथी भमता आव्या । ते मांहिं मूलदेव १, कंडरीक २, एलासाढ ३, सस ४, खंडवणा ५ - ए नामी पांच अधिकारी । एकेकाने पांच सय पांच सय धूर्त्तनो परिवार छइ । पांचमी खंडवणा स्त्री अधिकारिणी । तेहने पांचसय धूर्त्ता" स्त्रीनो परिवार छइ । इम सर्व हर धूर्त एकठा थया । ते मांहिं" मूलदेव सर्वलोकविख्यात, सर्व धूर्तशिरोमणि छ । हवै " महावर्षा आव्यौ । तेणै कूप तटाक वापी सर्व जल स्थानक भय । चिक्कण" कह करी दुःसंचार चतुःपथ मार्ग थया । वृष्टिआकुल थयो लोक कोई फरी न सकै । पहचै" वर्षाकाले ते धूर्त भूप तरसी" पीड्या हुंता कहिवा लागा जे- 'लोक कोई चोहटै" नथी आवतो, जेहने छेतरीन द्रव्य आणीनै भोजन करोई । आपणनें भोजन कुंण" दिई' । तिवारे मूलदेवइ कयुं जे- 'जे जे सांभल्यूं होइ, अनुभव्यं होइ ते ते कहौ । जे धूर्त सांभलीनइ ए असत्य किम मिले", एह कहइ ते आ सर्व धूर्त्तमें भोजन दिई । अनै जे भारत रामायण पुराणादिकमै वचनै से बात समर्थह", आ Jain Education International 1 P देशि । 2 P तेह | 3P दिशें । 7P पांचसैं २ । 8P हैं । 9 P तेनें 13 Î चौकर्णे कर्दमें । 14 P एहवें वर्षाकालें । मके । 19 P समर्थि । धू. ७ 20 4P हैं। 5 B उद्याननै घरि । 6 P अकार्यना करनार ! । 10 P स्त्री धूर्तनो । 11 P माहि । 12 Pरहवें । 15 P तरसें । 16 P चउदें । 17 A कोण 19 P For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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