Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): Haribhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 140
________________ बालावबोधरूपगूर्जरभाषामय - धूाख्यानकथा ५३ मनुष्य लोक जा' । तिवारि गंगाइ कहिउं जे- 'मुझने गगनथी पडती कोण धरी सकै ?' । ईश्वरें कहिउँ जे – 'हुँ धरूं' पछइ गंगा पडी, ईश्वरइ माथै धरी । जो ईश्वरि माथै दिव्य वर्ष सहस्र लगि गंगा धरी, तो तुं महापुरुष गुणवंत छम्मास लगि जलधारा माथै धरइ, इहां सी वडाई ? । ८ । [१,८९-९३] ॥ कण्डरीकेनोक्तं मूलदेवं प्रति प्रत्युत्तरकथानकाष्टकमिदम् ॥ ॥ इति धूतोख्याने प्रथमाख्यानकम् ॥१॥ हवइ मूलदेव कंडरीकनइ कहिउंजे- 'हविं तई जे दीर्छ, सांभल्यु, अनुभव्यु होइ ते बोलि' । तेवारि कंडरीक बोल्यो- 'हु नान्हपणि महाअविनीत महादुर्दात, माटि मातपिताइ रीसिं घरथी काढ्यौ । भमतो भमतो देशनइ अंति कोईक' गो, महिष, अजा, एलक, खर, करभ समाकुल, पुष्प फल समृद्ध, अनेक वन खंड शोभित, महासमृद्ध गामि गयो । तेहनें मध्यइं मेघनिकुरब समान एक वड 10 वृक्ष दीठो । ते हेठे सप्रभाव एक कमल नामा यक्ष छै । तेहनी जात्रा पूजा करता, स्नान करी निर्मल धौत वस्न पहिरी, फल फूल चंदन धूपादिक पूजोपकरण लेई पूजता, महाजन समूहनइ वांछित वर दीइ छइ । हुं ते यक्षनें प्रणाम करिवा गयो । तिहां गामना लोक रमता दीठा । एहवें अकस्मात् सन्नद्धबद्ध कवचवंत अनेक आयुध नांखता, कलकल शब्द करता, चोरनी धाडि आवी पडी । तेवारें हुं, समस्त गामना लोक, समस्त गो महिषादिक पशु समूह, नासीनै चीमडा मांहिं 15 पैठ । तिहाए ते लोकइ हर्षइ क्रीडा करिवा' मांडि । चोरनी धाडिए' गामनो लोक नामे जाणी पाछी फरी । एहवें तिहां चरती एक बोकडी आवी । तेणी ते चीभडं सहसा गलिउँ । से बोकडी एकइ अलगिरह गली ! ते अजागर एक लिंक पंस्निगी सल्यौ। पछइ ते लिंक पंखिणी उडीने ते वटवृक्ष उपरि चढी बैठी। एहवें ते बटवृक्ष हेठि राजानु कटक आवी ऊतयं । राजानो मातों पट्टहस्ती, वड उपरि बैठी ए लिंक पंखिणीनो एक पग भूमि लंबातो हतो ते साथि, बडवाई जाणीइ । बांधिउ । तेवारें तेणई मोबानो प्रग ऊंचो कस्यौ । ते साथिं चीस नाखतो हाथी ऊंचो तणायो । ते देखी 'कोई एक हाथीजइ ऊपाही यागनि लीइ छई' इम बूंब पाहता महावत राजा पासि गया। तेहनी बूंब सांभली शम लेई सब्दवेधी अनेक सुभट धाया । तेणिं शनि नेहली प्रांत मस्तक छेद्यां" । ते हिक पंख्रिणी भूमि पड़ी । राजाइ तेहनुं पेट चीसव्यं । ते मांहिंथी अजगिर बीसखौ । अजगिर सिमा चीयो, जे माहिथी बोकड़ी नीकली । बेइनु पणि प्रेट कामु, ते मांहिंथी जीभई जीकल्युं । 26 रोइनें चीय, ते मांहिंथी हुं अने गामना लोक रमवा थका, मवाना बांस हानि धरता नीलस्वा । बीजोए" सर्व लोक सर्व पशुसमूह नीकल्यौ । पछइ वे सर्व लोक राजानें प्रणमी पोता पोताने ठामि गया । दुए ऊजेपी नगरीए आव्यौ । ए मइ प्रत्यक्ष प्रणइ अनुभव्युं । जो न मानो तो सर्व धूर्त्तनें भोजन द्यो", नहीतर ग्रंथ साखि" प्रतीति पूजावो [१,१-२५] ॥ इति धूर्ताख्याने कंडरीक्रेजोक्तं कथानकम् ॥ 1P कोएक। 2 P धाड पडी। 3P पेठा। 4 P विहाँ तेणें लोके। 5P करवा। 6P धाडें । 7Pामना लोक ताठा। Pएहविं। 9 गल्यं। 10Pदेंक पंखणी। 11 छेदायां। 12P बीजोई। 13 P पशु पण नीकल्या। 14 Pk पणि। 15 P दिउं। 1GPA साथै । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160