Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): Haribhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad

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Page 149
________________ ६२ बालावबोधरूपगूर्जरभाषामय - धूर्ताख्यानकथा हिवे मूलदेव बोलीओ- 'कुंतीने पवनि भोगवी, भीम नामि पुत्र प्रसव्यो; तथा अंजना पवनि भोगवी हनुमंति नामि पुत्र जण्यो । जे ए पुराणनी वात सत्य छइ, तो तुंए पनि भोगवी पुत्र आव्यो तेह पणि सत्य ज । १-२ । [५,११] ____ तथा तुं पूछिसि जे- 'माहरइ पुत्र आव्यो ते मुझस्युं आलाप संलाप करी, तरत जई किम सकइ, तेह उपरि व्यासनी वात सांभलि-पाराशर ऋषिई योजनगंधा माछिणी भोगवी, व्यास नामि पुत्र जनम्यो। 'माता! अवसरि मुझने संभारजे' - इम जन्मकालि ज कही ततकाल वनि गयो । पछइ ऋषिनइ प्रभावई योजनगंधा अक्षतयोनि थई । शांतनु राजाई भोगवी विचित्रवीर्य नामि वेटो आव्यो; ते अपुत्रिओ मरण पाम्यो । तिवारि योजनगंधाई वंशनो उच्छेद थयो जांणी वेदव्यास संभार्यो हुतो वनथी आव्यो। माई कहिउं- 'पुत्र ! वंश उद्धर' । पछै तेहनें प्रभावि पांडु, धृतराष्ट्र, ॥ विदुर नामि त्रिणि पुत्र आव्या । ते मोटा थया । ते त्रिणिनी स्त्रीओ-भोजाईओ वेदव्यासिं भोगवीओ । पछइ तपलोपर्नु कारण जाणी कोपिं त्रिणिं सराप्यो' । जो वेदव्यास जन्मसमये ज मातानें वीनवी वनि गयो, तो ताहरो पुत्र जन्म समये जे आलाप संलाप करीने तरत अदृष्ट थई किहांए गयो, ए कोण न मानै ? । ३ । [५,१२-१९] ॥ इति खण्डपानां प्रति मूलदेवेनोक्तं प्रत्युत्तरकथानकत्रयम् ॥ १-३ ॥ ॥ वली खंडपाना बोली- 'माहरै उमादेवी सखी हती, तेणीइं सर्व देव दानवनै आकर्षे एहवी आकपणी विद्या आपी । ते विद्याइं मई सूर्यनइ आकर्षी आण्यौ । तेणई हुँ भोगवी । तेथी महाबलवंत पुत्र आव्यौ । जे सूर्य ब्यासी हजार योजन प्रमाण पृथ्वी दहइ, ते साथिं संभोग सुख भोगवती हुँ किम न बली ॥ ॥ इति खण्डपानयोक्तं कथानकम् ॥ ॥ तिवारि कंडरीक बोलिओ- 'जो कुंती सूर्य साथइ भोग करतां न बली, तो तुं किम बलइ १ ॥ [५,२०-२३] ॥ इति खण्डपानां प्रति कण्डरीकेनोक्तं प्रत्युत्तरकथानकम् ॥ ४ ॥ - - वली खंडपाना बोली- 'मई कोइक समइ अग्नि आकर्षिओ, तेणई हुं भोगवी । तेथी महातेजवंत पुत्र भयो । जे अग्नि अंग लागो हुँतो बालै, ते साथइ भोग भोगवतां हुं किम न बली ? ॥ ॥इति खण्डपानयोक्तं कथानकम् ॥ . तिवारि एलाषाढ बोलिओ- 'कोइक समइ यमनी स्त्री धूमोर्णा होम देवा अमिनै घरि गई इती । तिहां अग्नि साथइ क्रीडा करवा लागी । तिवारि अकस्मात् आवतो यमनइ देषी भयभ्रांत थई, धूमोर्णाइ नीरनी परि, संभोग पूरो थया विना ज, अग्मिने पेट माहिं ऊतायो । यमइ पणि शिथिलांभोपांग कटि मेखला इत्यादिक लक्षणइ स्त्रीने सापराध जांणी उदरइ गली, देव सभाइ गयो । तिहां त्रिणे सापीउ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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