Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): Haribhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad

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Page 138
________________ बालावबोधरूपगूर्जरभाषामय -धूर्ताख्यानकथा ५१ चाल्यो, तोहि जे लिंगनुं मान नाव्यु । ते जो लिंग पार्वतीनइ शरीरे मायुं तो कमंडल माहिं हाथी मायो इहां कोण दोष । २ । [१,३८-४०] तथा भारत मांहिं व्यास ऋपि कहिउँ छइ जे- 'वंशनइ पर्वि कीचक सौ भाई उपना । 'कीचक' शब्दई वंश कहीइं तिहां ऊपना मार्टि कीचक नाम थयुं । तेहनी कथा सांभलि'-वराट राजानी अप्रमहिषीइं पुत्रनइ अर्थे आश्रमें जईनै एक ऋषि आराधिओ । तेणइ ऋषि कृपा करी अभिमंत्रित एक चरू आपीनइ कहिउँ जे- 'वन निकुंज मांहिं जई हर्षइ चरू खाजे, ताहरइ सौ पुत्र थास्यई' । पछइ वराट राजानी अग्रमहिषी वंशजाल मांहिं जई बेसी ते चरू जमीनइ पोतानै घरि गई । एहवे ते वंशजाल मांहिं बहुकालनो तप करतो गांगील नामा एक ऋषि छइ, तेणिं तटाके वस्त्ररहित स्नान करती एक देवांगणा दीठी । तेहनें दर्शनें मुनि क्षोभ पाम्यौ । तेणे करी एक वीर्यबिंदु खरिनै हेठई' वंशनी नालि मांहिं पड्यौ । तेथी नवगज सहस्र प्रमाण बलवंत कीचक नामै पुत्र थयौ । जिम " जिम ऋषि ते देवांगणाने जोवई तिम तिम वीर्यबिंदु वंशनाली मांहिं खरि खरिनै जे पड्या, तेथी निवाणू पुत्र ऊपना । पछइ ते ऋषि ते शतवीर्यबिंदुसहित वंशनालि अलगी मूकीनइ गयो । पछइ ते वंशनाली वराट राजाइ रखावी । तेह मांहिंथी सांगोपांग सहित सौ बेटा नीसया । ते वराट राजानी अग्रमहिषीइ पोतह पुत्र करी लीधा । ते माटि तेहना बेटा वंशनाली समुत्पन्न कहिवाय” छइ । जो एक वंशनाली मांहिं सौ कीचक भाई माया तो कमंडल मांहिं वनगजसहित तूं। स्या माटइ न माइं । ३ । [१,४१-५१] तथा ईश्वर वर्षसहस्र लगि जे जटा मांहिं गंगा भोलवी, ते जो सत्य छइ, तो ते छ मास लगइ कमंडल मांहिं वनगज' भोलव्यो ए असत्य किम होइ । ४ । [१,५२] तथा ते कहिउँ जे- 'कमंडलनी प्रीवाई हु नीसयौ किम, अनइ वालामनइ अंतिहाथी वलगी किम रह्यौ ?, ते उपरि पुराण- एक वचन सांभलि- जगत्कर्ता विष्णु आकाश, भूमि, मारुत, वहि, त्रस, थावर, मनुष्य, देव, तिर्यंच रहित महाप्रलय कालिं जलशय्याई बइसी तप करह छइ । तेहनें करने कमलि रह्यौ ब्रह्मा नाभि थकी कमंडलदंड हाथी धरतो बाहिर नीसयौ । कमल विष्णुनी नाभि वलगुं । जो ब्रह्मा विष्णुनी नाभिं नीकल्यौ अनै कमल वलगी रह्यौ-ए सत्य छै, तो तुं कमंडल प्रीवाई बाहिर नीसखो" अनै हाथी वालापनइ अंति वलगी रह्यो, इहां स्युं अयुक्त छ। ।५। [१,५३-५७] तथा गुणाकर मूलदेव तई पूछिउं जे- 'हुँ कमंडल ग्रीवाइ किम नीकल्यौ ?, ते ऊपरि भारतनुं वचन सांभलि- कोइक समयइ ब्रह्मानइ तप तपतां दिव्य वर्षसहस्र थयु, ते जांणी क्षोभ पाम्या हुंता सर्व देवताइ चिंतव्यु"जे एहनें विघ्न कीजइं। तिवारइं इंद्रइ कयुं जे- 'पूर्वइ महेसीइं अमिकर्म करतां उर्द्धस्थितवत्रा पार्वती दीठी । तेथी क्षोभना थई, ते वेलाइ वीर्य खयु, तेणि खरडायुं वस्त्र खंखेरता, वीर्यना बिंदुआ पासिं कलस हतो ते मांहिं पड्या । तेथी द्रोणाचार्य ऊपनो । इम जो. ईश्वर स्त्रीथी क्षोभ्यो तो बीजो कुंण क्षोभ न पामइ ? । एक वीतराग देवाधिदेव त्रैलोक्यपूजित श्रीमहावीर विना सकल लोक स्त्रीइं वस कसौ । गौतम, वशिष्ठ, पाराशर, जमदग्नि, काश्यप, 1P तोहे। 2 Pकर्ष छ। 3P सउ। 4P सांभल। 5P आराध्यो। 6P नामें। 7 Pहेडं। 8P जूई। 9P नवाण। 10 P कहिवाई। 11 P निकल्यौ। 12 A चीतबुं। 13 P येहनि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |

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