Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): Haribhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
View full book text
________________
हरिभद्रसूरिकृतं धूर्ताख्यानम । वेसाणरेण भणि को धावइ अभिमुहं' मुहत्तं पि। इहरा' वि उमावइणो किं पुण एयारिसे भावे ॥ णरसिरकवालमालाउलस्स खगवरगहत्यस्स । जस्स रई पेअवणे को तस्स जणो समलिअइ॥ जो 'दारुवणे रिसिआसमम्मि विणिअंसणो' पलायंतो। वहिओ उद्धृअलिंगो को नं विबुहो समालवइ । किं बहुणा जणमज्झे जो णबह उद्धिएण लिंगेणं । बलवंतो वजहरो तस्स वि णिस्संसयं भाइ ॥ जह कह वि सूलपाणी कुप्पड हिमगिरिगुहापविट्ठस्स । को जाणइ किं मे होहि त्ति मा संकडे छुहह ।। इत्थंतरे अ भणिओ सप्पणयं बहुअलोअणेणेवं । सव्वसुराणं वयणं हुअवह ! इणमो णिसामेहि ।। मा भाहि उमावइणो हुअवह ! जेणेरिसो उमासत्तो। गयतुरयपुरिसदमणो किं च इमो आगमो " सुओ ।।
हत्थी दम्मइ संवच्छरेण मासेण दम्मइ तुरंगो।
महिला पुण किर पुरिसं दमेइ इक्केण दिवसेणं ।। जं भणइ उमादेवी करेइ तं पसुवई अकजं पि । किं वा देहाणुगयं उमं वहंतो ण दिट्ठो ते ॥ मुंचसु आसंकमिणं रुद्दो रुट्टो वि ते सरीरस्स। ण करेइ किं पि पीडं पवइचित्तावरवाए। इअ होउ त्ति अ जलणो गंतुं हिमवंतगिरिगुहं विउलं । पिच्छइ तिउरंतयरं रइकजसमुग्गयमईणं ॥ अन्भासत्थं दहें महदेवो उहिओ समारूढो । हुं हुं उमाइ भणिओ उद्धयलिंगोऽणलं भणइ ॥ उड्ड णिअंचिअ वयणं पिब रेअंमा करेहि विक्खेवं । रुद्देण हुअवहो घडघडस्स तो पाइओ रेअं॥ उअरगएण य रेएण सो पलित्तग्गिणा व डझंतो। मुअमरणो संभंतो कहकह वि महोअहिं पत्तो॥ दाऊणमंगुलिं हुअवहेण उग्गालिओ जले रेओ। उग्गालिअम्मि रेए ताहे जलणो समासत्थो॥ तप्पभिई चिअ सुम्मइ जणसुइवायागयं इमं वयणं । रेअपभावा किर सागरम्मि रयणाण उप्पत्ती ॥ 1A अभिमुहो। 2 इहुरावि। 3 B दारवणे। 4 B विणिअंसमो। 5 B विबहो समावद । 6 B पलत्त।
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160