Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): Haribhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
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५. खण्डपानाकथितं स्वानुभूतं कथानकम् ।
अहवा - अवि उडुं चिअ फुट्टंति माणिणो ण वि सहति अवमाणं । अत्थमम्मि विरविणो किरणा उडुं चिअ फुरंति ॥ पवणु चिअ आहारो वंकं चंकंमिअं अपरिभूअं । सव्वजगुव्वेअकरं अहो सुजीअं भुअंगाणं ॥
ईसि हसिऊण तो सा खंडावाणा भणेइ भो सुणह । अक्खाणयं अणलियं जं अणुभूअं मए चेव ॥ आसि अहं तरुणत्ते जुव्वणलायण्णवण्ण' गुणकलिया । रूवेण अणण्णसमा जणमणनयणूसवन्भूआ ॥
वरि अ कयाइ अहयं उण्हाया मंडवे सुहपसुत्ता । उषमुत्ता पवणेणं 'रूवगुणुम्मत्तहिअएणं ॥ जाओ तेण सुओ मे ताहे बिय जायमित्तओ' तो सो । आउच्छिऊण य ममं कत्तो वि गओ अह खणेणं ॥ तो भगह किं ण सचं जइ वाएणं हविज्ज पुत्तु 'त्ति । तो णत्थि का वि रंडा अपुत्तिया जीवलोअम्मि ॥
[ अथ मूलदेवादिधूर्तकृतं खण्डपानाकथानकसमर्थनम् । ]
तं भइ मूलदेवी सुव्वइ लोअस्सुईसु पवणेणं । कुंती भीमसेणो जाओ णीलाइ हणुअंतो ॥ पारासरेण' वासो' मच्छिणिजणिओ पसूअओ' 'वेव । को सरिज्जत्ति अ जणणि भणिऊण अवकंतो' ॥ जाया अक्खयजोणी जोअणगंधा अ रिसिप भावेणं । संतगुणा ती सुओ विचित्तविरिओ त्ति संजणिओ ॥ असुर मयम्मि तम्मी जोअणगंधाइ सुमरिओं वासो । संपत्तो अ खणेणं जणणिसयासे रिसिवरो सो ॥ भणिओ अह माऊए पुत्त ! अपुत्ता ण बुहुए वंसो । ता तह करेहि वच्छय ! जह होइ कुलस्स संताणो ॥ तेणुद्धरिओ वंसो पंडुणरिंदो जयम्मि विक्खाओ । धरो अ णरवई विदुरो य महामई जणिओ ॥ भाउज्जाया तिणि वि भुत्तूणं देइ तिन्ह वी सावं । अकर्यं तु ओहयासो वासो रिसिधम्मपन्भट्ठो ॥
1 B लायण्णरूवगुणकलिया । 2 B गुणम्मत | सुरेण । 6 B मच्छणि। 7 B पसूवडश्चेव । 8 B अवकंठो ।
धू० ४
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3A °मित्तउं । 4B पुत्तति ।
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5 B पारा•
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