Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): Haribhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
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५. खण्डपानाकथितं स्वानुभूतं कथानकम् । राया आसी किर सो महाबलपरकमो अहिअतेओ। सको देवाहिवई परजिओ जेण समरम्मि ॥ सो त अहिक्खिवंतो सुरगुरुसत्तो अरण्णमज्झम्मि। जाओ महा अयगरो रजपब्भहा य पंडसुआ ॥ तम्मि अरण्णम्मि ठिआ एगागी णिग्गओ णवरि भीमो। तेणऽयगरेण खद्धो उवलद्धसुई अ धम्मसुओ॥ पत्तो अयगरमूलं सत्तयपुच्छाओ कहयई तस्स । उग्गिलइ अयगरो सो भीमं सावस्स यंतम्मि ॥ जाओ पुणरवि राया जइ सचं तो तुमं पि सन्भूअं। गोहा चूअलया वि अ गंतूण पुणण्णवा जाया ॥ *८*६९॥ तो भणइ खंडवाणा धुत्ते एवं गए वि कजम्मि । मसं कुणह पमाणं जाहे भत्तं पयच्छामि ॥ जह कह वि पराजिजह सव्वे वि अ समुइआ मए तुब्भे। तो तुम्ह णत्थि लोए काणा वि 'कवडिआ मुल्लं॥ तो ते भणंति धुत्ता को सत्तो णिजिणित्तु अम्हेहिं । मायाणिअडिपहाणो हरी वि सकं जइ हविजा । तो सा अवगयतोसा ते धुत्ते खंडवाणई भण। पिच्छह इत्ताहिं चिय सव्वे वि करेमि हयवयणे ॥ तेसिं वत्थाण कए रायाणं पुच्छिउँ परियडामि। गामागरपुरपदणजणवयपरिमंडिअं वसुहं॥ अण्णं च ममं चउरो चेडरूआ जायया चिरपणट्ठा । तेसिं च कएण अहं परिहिंडंती इहं पत्ता॥ ते चेडा तुन्भे हि अ ताणि अ वत्थाणि ते परिहियाणि । जइ वि ण पत्तिअ हेडं तो देह महायणे भत्तं ॥ तो ते लजिय विलया भणंति अइसंधिया तुमे अम्हं । 'मेढीभूआ इहि बुद्धिपयारेण जायासि ॥ एअस्स णरस्स तुमं इक्का जुग्गा जयम्मि विक्खाया। सत्ताह वद्दलम्मी दे भत्तं सव्वधुत्ताणं ॥ सा भणइ विहसमाणा पुव्वि विण्णविया मए तुन्भे। भो गव्वमुव्वहंता ओहसह जणं अबुद्धीआ॥ तो ते भणंति सुंदरि चाओ घट्ठो कओ हवइ जाहे। ताहे सत्तइ जाई एसा पुरिसस्स पयईओ ॥
७४.
७९.
1B पराजिभो। 2B कवलिया। 3 B मीठी। Jain Education International
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