Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): Haribhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad

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Page 119
________________ ॥३ 15 20 25 ३२ हरिभद्रसूरिकृतं धूर्ताख्यानम् । जइ सव्वगओ कण्हो चिंतिज्जइ जत्थ तत्थ सो चेव । चिंतिंतओ 'वि सुचिअ तम्हा सो किं विचिते ॥ अण्णं पि अलिअवयणं सुव्वइ लोयम्मि णिग्गयं इणिमो । जह पवणगणाहिवई सेलसुआवयवउप्पण्णो ॥ बंभाण समुप्पत्ती तिलुत्तमा उब्वसी य दोणस्स । उपपत्ति छम्मुहस्स य णरकुत्र्वर आसि ताणं च ॥ कण्हस् य णिग्गमणं जह कोवा सेअकुंडलीजाओ । जह सिरकवालमज्झे रुहिरम्मि णरो समुन्पण्णो ॥ जइ जायवस्स माया उप्पत्ती हलहरस्स लोगम्मि । जह जाया सेलसुआ विक्खाया जीवलोयस्मि || जह हुंति पव्वयाणं पुत्ता धूआ कुडंबधम्मो वा । तो तं इमम्मि लोए जंबूदीवे ण माइजा ॥ एयाई चष्फलाई भारह - रामायणे णिबद्वाई | संचालणमसहंता जह जुत्तिकयं सुवण्ण व्व ॥ एअं लोइअसत्थं गद्दहलिंड व्व बाहिरे महं । जातं जोइज्जइ तुस - भुस - बुसमीसियं सव्वं ॥ तो ते भणामि सव्वे कुसमयकुस्मुइपहेण मुत्तृण । सव्वण्णदेसि अम्मि अ लग्गह मग्गे पयत्तेणं ॥ अं धुत्तक्खाणं सोऊणं लोइअस्स परमत्थं । तह कुणह णिच्छिअभई जह दंसणसुद्धि होह परा ॥ Jain Education International * चित्तउडदुग्गसिरिसंठिएहिं सम्मत्तरायरत्तेहिं । सुचरिअसमूहसहिआ कहिआ एसा कहा सुवरा ॥ सम्मत्तसुद्धिहेउं चरिअं हरिभद्दसूरिणा रहअं । णिसुतकहंताणं 'भवविरहं' कुणउ भव्वाणं ॥ ま सेअंबरवरसूरी हरिभद्दो कुणउ अम्ह भद्दाई । जस्स ससिसंखधवले जिणागमे एरिसा भत्ती ॥ 1 B व सुश्चि । ॐ ॥ धूर्तैरुक्तं खंडवाणाप्रत्युत्तरकथानकदशकम् ॥ ॥ इति धूर्त्ताख्याने पञ्चमाख्यानकं समाप्तम् ॥ ॥ शुभं भवतु । कल्याणमस्तु ॥ For Private & Personal Use Only ११३ ११४ ११५ ११६ ११७ ११८ ११९ १२० १२१ १२२ १२३ १२४ १२५ www.jainelibrary.org

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