Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): Haribhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
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हरिभद्रसरिकृतं धूर्ताख्यानम् । विउले णयरुजाणे रुमंतओ हिंडिआ सुवीसत्था। अह पच्छिमम्मि जामे भयचिंता मे समुप्पण्णा ॥ गोहं चम्मणिमित्तं मंसणिमित्तं च जणवओ हणइ । तो को हुन्ज उवाओ जह मरणभयं न हुन्जामि(हुज त्ति १)॥ किं हुज्ज कयं सुकयं कत्थ गया जिव्वुई लहिज ति । परिभममि समतेणं भयपवणसमाहया तहि ॥ बहुआई विचिंतेउं गोहारूवं तयं पयहिऊणं । रत्तासोअसयासे चूअलया हं परावत्ता ।। दुस्सीला इव जुवई तिमिरपडं गुंठिआ गया रयणी। कमलागरतुट्ठिअरो सहसा य समुट्टिओ सूरो॥ दिण्णो अ अम्ह अभओ रण्णा पउरेण चाउवण्णेण । जह उम्भिंडंतु ताई राउलरयगाइँ सव्वाइं॥ तो सो पडहगसद्दो 'णवपाउसघणरवं विसेसंतो। आपूरेइ समंतो सब्भंतर-बाहिरं णयरं ॥ सोउं पडहगसई तो तं मुत्तूण चूअलयभावं । लावण्णगुणाइन्ना पुणरवि इत्थी समुप्पण्णा ॥ तस्स य सगडस्स तहिं णाडवरत्ता य तबणीओ य । रयणीइ कोल्हुएहिं साणेहिं भक्खिया सव्वे ॥ अह णवरि मम पिउणा णाडवरत्ता य मग्गमाणा णं । लद्धा मूसयछिप्पा णाडवरत्ता तहिं वलिआ॥ तो किं इत्थं सचं ?, भणइ ससो-बंभकेसवा अंतं । ण गया जइ लिंगस्स उ तो कह वयणं तुह असचं ॥ रामायणे अ सुव्वइ जह हणुअंतस्स आसि लंगूलं । महईमहप्पमाणं वत्थसहस्सेहिं णेगेहिं । वेढितु रक्खसेहिं सित्तं तिल्लस्स घडसहस्सेहि। लंकापुरी वहत्था पलीविरं मंदपुण्णेहिं ॥ सा देवलोअसरिसा लंकापुरी सव्वलोअविक्खाया। आलीविआ समंता हणुएणं वाउपुत्तेणं ॥ जह सचं लंगूलं' सुमहंतं आसि वाउपुत्तस्स । तो ते मृसिअछिप्पा किण्ण हवइ इद्दहा रजू ॥ अण्णं च इमं सुबइ पोराणसुईसुणिग्गयं वयणं । जह किर' गंधारिवरो रण्णे कुरुवत्तणं पत्तो॥
६४ 1 B कत्थ णिन्धुई। 2 B रइगाई। 3 णवं। 4 B वसंतो। 5 ‘णय' नास्ति AI BA गुणई ता। 7 A गंगूलं। 8 B किरि।
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