Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): Haribhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad

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Page 114
________________ ५. खण्डपानाकथितं स्वानुभूतं कथानकम् । अच्छरसाओ मुत्तुं कह इंदो सेवए मणुस्सीओ । भइ ससो किंण सुआ गोयमपत्ती अहिल्ल ति ॥ इंदेणं परिभुत्ता रुद्वेणं गोयमेण इंदस्स । काऊण भगसहस्सं व (च) द्वाण समपिओ ताहे ॥ ढकढणसरीराणं मयणाणलजालसंपलित्ताणं । बडआण सगासाओ सक्को विद्धंसणं पत्तो ॥ देवेहिं गोअमाओ कह वि पयत्तेण मोहओ इंदो । जं तस्स भगसहस्सं अच्छिसहस्सं तयं जायं ॥ कुंतीए इंद्रेण वि पुत्तो पत्थु त्ति लोअविक्खाओ । जाओ एवं जहसुओ तुज्झ वि इंदेण को दोसो ॥ अह भणइ खंडवाणा तुम्भे जाणह कुलं च गुत्तं च । मज्झं मायावित्तं ?, भणिया तो मूलदेवेणं ॥ पाडलिपुत्ते 'णयरे तं सि सुआ णागसम्मविप्पस्स । सोमसिरीए धूआ गोअमगुत्तम्मि विक्खाया ॥ सा भइ गवि अहं सा तुम्हे' सारिक्ख विम्हिआ मज्झं । सिप्पिअधूआ अहयं राउलरययस्स विक्खाया ॥ बहुधणधन्नसमिद्धं अम्ह घरं रायरिद्धिसमसरिसं । णामेण दडिआ हं णीआ गोएहिं कम्मेहिं ॥ दंड' भडभोइआणं रण्णो अंतेउरस्स सव्वस्स । सिप्पिअसहस्समहिअं जं धोवइ मज्झ वत्थाई ॥ वत्थाण महासयडं भरित्तु अह बहुविहप्पगाराणं । पुरिससहस्सेण समं पत्तासि गईं सलिलपुण्णं ॥ छडछडछडस्स तहिअं हुं हुं सिंटारवं करितेहिं । अण्णुण्णमइसयंतेहिं तेहिं कुंदिंदुधवलाई || घोआई वत्थाई मज्झं पुरिसेहिं चुक्खभूआई । तो आयवदित्ताइं उब्वाइआइँ मुहुत्तेणं ॥ आओ अ महावाओ समंतओ पायवे अ भंजतो । तो तेणं पवणेणं वत्थाई हियाहं सव्वाई ॥ गच्छह तुग्भे चुइयारयं ति कंमारिया मए भणिया । जो दोसो अवराहो व को वि सो होहिई' मज्झं ॥ राउलभएण तोहं गोहारूवं करितु रयणीए । आया णयरुज्जाणं ससलिलघणसण्णिहं रम्मं ॥ 1 A पुतो पयरे । 2 A तुम्हेहिं । 3A दंड । 4 A वत्थाई । + A आदर्श एषा पंक्तिः त्रिकृत्वो लिखिता लभ्यते । 6 B सोहिई । For Private & Personal Use Only Jain Education International २७ ३३ ३४ ३५ ३६ *५* ३७ ॥ ३८ ३९ ४० ४१ ४२ 20 ४३ ४४ ४५ ४६ 15 ४८ 5 B चक्कु भूभाई । 25 ४७ 3 www.jainelibrary.org

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