Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): Haribhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
View full book text
________________
३. एलाषाढकथितं कथानकम् ।
इक्का य तस्स हणुया ण य दिट्ठा सुरवरेहिं सव्वेहिं । हणुयाइ एस अण्णो हणुअंतो तो कओं णामं ॥ जह सच्चं पचणसुओ खंडाखंडिकओ वि संमिलिओ । तो कह सक्का वुत्तुं तुज्झ अउब्वं वयणमेअं ॥ दूसरहण कहाए सीआदेवीइ हरणसंबंधे । सेउ' संधावेउं लंकादीवं गए रामे ॥ दसमुह- रामबलाणं दुह वि भडवाययं वहंताणं । संगमम्मि पलग्गे हण हण सद्दाउले घोरे ॥ मंदोअरिदय भटुकडेहिं णेगाई वाणरसयाई । असिपरसु' अद्धचंदष्पहारच्छिण्णंग मंगाई ॥ सत्तीपहरणिरुद्धे महीअलि पडिअम्मि लक्खणकुमारे ! रामे सोगाभिए विलवंते पवणतणएण ॥ गंतुं दोणगिरीओ उवणीचा ओसही जलतीओ । निस्सनु त्ति पभावा झडि त्ति सत्ती कि निस्सरिया || जे णिसिअरकुदुग्धाएहिं समरम्मि अभिहया पवया । संछिण्णभिण्णगत्ता ते वि अ सव्वे समासत्था ॥ विवइण्णसरीरा वि अ जइ सव्वें वानरा समुनीआ । खंडसहस्सो कओ एलसाढ ! तो जीवसि तुमं पि ॥ अण्णं च जणपगासा णिहिआ सुअपुत्थसु बहुए । किं वा तुम्हेहि इमा ण सुआ महसेणउत्पत्ती ॥ हिमसेलगुहगयाई दो वि महामेहुणं णिसेवंति । दिव्वं वाससहस्सं गिरिसुअ ससिभूसणो चेव ॥ तं सोऊण पत्तिं देवा किर तिहुअणम्मि आदण्णा । सव्वायरेण मिलिउं गन्भुवघायं विचिंतंति ॥ सुरं सामत्थेउं तिहुअणउज्जोअकारओ जलणो । महुरक्स्वरवयणपयंपिएहिं भणिओ सुरगणेहिं ॥ इक्स्स वि ता कीरह कज्जं अभत्धिएहिं जिअलोए । किं पुण महाणुभावो जं जंपर सुरसमूह त्ति ॥ जस्स य कण सव्वे देवा चिंतोवहिं समोइण्णा । तस्स य जसेण तुमं हुअवह ! इको समत्थोऽसि ॥ पविसितु 'गुहाविवरे हरपुरओ अप्पयं पयंसेमु । तो तुह कयाह विलिओ मेहुणततिं विभुजिज्जा ॥
1 B से। 2 A र B परस । 3 B सवं । 6 B जीबनोए। 7 B गद्दाविवरे ।
Jain Education International
१५
For Private & Personal Use Only
'४४
*४***
४६
४७
४८
४७
५१
* ५ * ५२
५ ३ 28
५४
५५
५६
५७
IS
4 B जीवसिओ। 5 B गब्यवधायें !
25
५८.
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160