Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): Haribhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
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३. एलाषाढकथितं कथानकम् ।
लवणजलाओ अग्गी णीलुप्पलसुरहिकमलगंधहुं । सरमेगं गंतुं जो रेअवि पं समुग्गिलइ ॥ जं भण्णइ कित्तिअ सह उअंति फुडविअडपायडं ताओ । छफिर अच्छरसाओ तं पउमसरं समोइण्णा ॥
ता मजिउमादत्ता तम्मि सरे णयणमणभिरामम्मि । मवंतीणं जोणीस ताण बीअं अणुपविद्धं ॥ पउमसरे मज्जित्ता पुणरवि ता जोइसालयं पत्ता । पइदिवसं चिअ तासिं छह वि परिवहुए उअरं ॥ कालंतरेण केण य समयं चिअ ता तहिं पसूआओ । इकिमुत्तमं बाहूरुसरीररुंडाई ||
ता ता वि विहियमणा दंसंति परुष्परिकमिकस्स । पिच्छसु अच्छेरमिणं लोगम्मि अभूअपुच्वं तु ॥ बाहरू अ सरीरं सीसाणि अ 'णिअय-णिअयठाणेसु । लग्गाई तक्खण चिय महसेणो छम्मूहो जाओ ॥ को मार भयारी णिच्छइ मणसावि जुवइ संजोअं । सव्वजणम्मि पगासो दक्खिणदेसे ठिओ रणे ॥ चउसु अ दिसासु जहिअं धावइ लोगो भवंतरदिसट्टा । सीसेण य छम्मासं धरेह धारंबरट्ठाए ॥ जइ महसेणंगाई 'पहुगन्भविणिग्गयाइं लग्गाई । तो तुज्झ न लग्गिजा ताई किमेगुदरवत्थाई ॥ छिण्णा णासा कण्णो अ लग्गए लोअविइअमेअं पि । * परमाणुपमाणओ पगंपिओं [य] लग्गसि तुमं पि ॥ तो भइ एलसाढो पुरिसो कह छिण्णएण सीसेणं । भुक्खत्तो' ययराई खाएउं सक्कए कह णु ॥ भइ ससो राहू किर सीसच्छिण्णो जयम्मि सुइवाओ । तह विअ गयणे हिंडह आभंसह चंद-सूरे अ ॥ अह भणइ एलसाढो कह गम्मद तं विगिट्टमद्वाणं । कह वावि जोअणसयं कमेहिं अक्कमह भूमीए ॥ पडिभाइ ससो जण्णे बलिस्स विण्ह दिआइवेसेण । तिणि कमे जाइत्ता हरइ ससेलं वसुमई' सो ॥ जइ सव्वा विवसुमई तिरिण ण पुण्णा कमे महुमहस्स । को दोसो जइ तुझं इक्ककमो जोअणसयं तु ॥
1 B बाहूर° । 2 B नियणिअय । 64 मई ।
भू. ३
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3 A पिह । 4B परमाण° । 5 B भुक्तो बोयराई
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