Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): Haribhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
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हरिभद्रसूरिकृतं धूर्ताख्यानम् ।
अमरिसभुअंगवसओ जुज्झंति महासरे महाकाया । रत्तिं दिवा य दुणि वि सरसंखोभं करेमाणा ॥ भक्रखेहि ते तुमं गच्छिऊण, मा पुत्त ! भुक्खिओ अच्छ । गंतूण इक्कमिकेण तेण ते दोवि परिभुत्ता ॥
तत्तो अ पडिणिअत्तो पिच्छइ वडपायवं महाविडयं । पलयमहामेहं पिव ससउणकोलाहलं विउलं ॥ चउमुहबीअविणिग्गयाण वालखिल्लाण तस्स हिट्ठम्मि । उग्गं तप्पंति तवं रिसीणमजुङकोडीओ ॥ सो तत्थ समल्लीणो भग्गो वडपायवो कडकडतो । मा होही रिसिवज्झा चंचू वडपायवं गुविलं ॥ तो सहसा उक्खिविउं छाएमाणु व्व णहयलं सव्वं । किण्णर गरुडणरामर विम्हयमउलं जणेमाणो ॥ सागरजलपक्खित्ते बहुविहवणसंड मंडिओद्देसे । दीवम्मि सुवित्थिपणे' मुंचइ वडपायवं गरुडो ॥ वडदुमलंकणिमित्तं लंकादीउ त्ति तो कयं णामं । दससीसस्सावासो आसि जहिं णिसिअरपइस्स || हिमवंते गयकच्छव भक्खेडं सो गओ पिउसयासं । भइ अताय ! ण धाओ भक्खेहि तओ णिसाऍ ति ॥ भक्खेऊण णिसाए अभयपवत्ति' पपुच्छिउं पिअरं । अमयं पुत्त ! कहेमो वोलेउं 'णरयपायाले ॥ धगधगधगंतहु अवहपज्जलिआवेदिअं' समतेणं । रक्खज्जइ सव्वसुरासुरेहिं सययं अमयकुंडं ॥ को पुण तस्स उवाओ अमयत्थी कासवंगओ अहयं । अत्थि उवाओ' जह धिप्पइ ति अइदुक्करो सो उ ॥ सप्पिमहोदहिसलिलाइएण संतप्पिएऽणले धणिअं । गहणं हुज्जग हुज्ज व गहिए वि उवद्दवाऽणेगा ॥ कासवरिसिवयणेणं गंतुं गरुडेण दोवि संपयया । पंखाणि अ महुपाणिएण संतपिओ अग्गी ॥
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तित्तेण हुअवहेण य अमयस्यासं पवेसिओ गरुडो । गहिअं च णेण अमयं देवेहिं वि किल समुग्घुट्ट" ॥ अमयं कुंडत्थं चिअ विहगेणेगेण णीअमुक्खि विउं । सोऊणमिणं वयणं खुहियं ससुरासुरं भुवणं ॥
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1. B रिसीण । 2 B बिजलं । 3 A सुविलं । 4 B सुव्वित्थिये । 5 B पविति । 6 A गएय । 7 B बेट्टि 8B अहियं । 9 B ओवाओ | 10 A समुग्ध ।
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