Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): Haribhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 109
________________ 6 10 15 20 25 20 २२ हरिभद्रसूरिकृतं धूर्ताख्यानम् । अमरिसभुअंगवसओ जुज्झंति महासरे महाकाया । रत्तिं दिवा य दुणि वि सरसंखोभं करेमाणा ॥ भक्रखेहि ते तुमं गच्छिऊण, मा पुत्त ! भुक्खिओ अच्छ । गंतूण इक्कमिकेण तेण ते दोवि परिभुत्ता ॥ तत्तो अ पडिणिअत्तो पिच्छइ वडपायवं महाविडयं । पलयमहामेहं पिव ससउणकोलाहलं विउलं ॥ चउमुहबीअविणिग्गयाण वालखिल्लाण तस्स हिट्ठम्मि । उग्गं तप्पंति तवं रिसीणमजुङकोडीओ ॥ सो तत्थ समल्लीणो भग्गो वडपायवो कडकडतो । मा होही रिसिवज्झा चंचू वडपायवं गुविलं ॥ तो सहसा उक्खिविउं छाएमाणु व्व णहयलं सव्वं । किण्णर गरुडणरामर विम्हयमउलं जणेमाणो ॥ सागरजलपक्खित्ते बहुविहवणसंड मंडिओद्देसे । दीवम्मि सुवित्थिपणे' मुंचइ वडपायवं गरुडो ॥ वडदुमलंकणिमित्तं लंकादीउ त्ति तो कयं णामं । दससीसस्सावासो आसि जहिं णिसिअरपइस्स || हिमवंते गयकच्छव भक्खेडं सो गओ पिउसयासं । भइ अताय ! ण धाओ भक्खेहि तओ णिसाऍ ति ॥ भक्खेऊण णिसाए अभयपवत्ति' पपुच्छिउं पिअरं । अमयं पुत्त ! कहेमो वोलेउं 'णरयपायाले ॥ धगधगधगंतहु अवहपज्जलिआवेदिअं' समतेणं । रक्खज्जइ सव्वसुरासुरेहिं सययं अमयकुंडं ॥ को पुण तस्स उवाओ अमयत्थी कासवंगओ अहयं । अत्थि उवाओ' जह धिप्पइ ति अइदुक्करो सो उ ॥ सप्पिमहोदहिसलिलाइएण संतप्पिएऽणले धणिअं । गहणं हुज्जग हुज्ज व गहिए वि उवद्दवाऽणेगा ॥ कासवरिसिवयणेणं गंतुं गरुडेण दोवि संपयया । पंखाणि अ महुपाणिएण संतपिओ अग्गी ॥ Jain Education International तित्तेण हुअवहेण य अमयस्यासं पवेसिओ गरुडो । गहिअं च णेण अमयं देवेहिं वि किल समुग्घुट्ट" ॥ अमयं कुंडत्थं चिअ विहगेणेगेण णीअमुक्खि विउं । सोऊणमिणं वयणं खुहियं ससुरासुरं भुवणं ॥ ५३ For Private & Personal Use Only ५४ ५५ ५६ ५७ ५८ ५९ ६० ६१ ६२ ६३ ६४ ६५ ६६ ६८ 1. B रिसीण । 2 B बिजलं । 3 A सुविलं । 4 B सुव्वित्थिये । 5 B पविति । 6 A गएय । 7 B बेट्टि 8B अहियं । 9 B ओवाओ | 10 A समुग्ध । ६७ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160