Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): Haribhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
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*२*२१
हरिभद्रसूरिकृतं धूर्ताख्यानम् । जह गयमयसलिलेणं हयगयरहवाहिणी गई विउला । सरिआ तया पवत्ता तो तिल्लोदा कह ण होइ ॥ रज्जाउ धाडिएणं सुव्वइ लोअम्मि भीमसेणेणं । गंतूण इक्कचकं घोरो बगरक्खसो वहिओ॥ भत्तं तंदुलकुंभं महिसं तह मजघडसहस्सं च । जं तस्स भत्तपाणं उवणीअं तेण तं भुत्तं ॥ जह बगरक्खसभत्तं भुत्तं भीमेण तो किमेगेणं । भारेण वि तं जिमिओ भारसयं किं' ण भक्खेसि ॥ * ३ * २४ सुव्वइ अ कुंभयण्णो सुत्तविउद्धुडिओ णिअयकालं । सो पिअइ घडसहस्सं खायइ णेगे णरसए अ॥ जइ पिअइ कुंभयण्णो सुत्तविउद्घहिओ घडसहस्सं । दसहिं घडएहिं किं सस ! किं पण्णासं ण पीआ ते ॥ *४*२६ अण्णं च इमं सुबह पुराणसुइणिग्गयं इमं वयणं । असुराण जह वहत्था अगस्थिणा सायरो पीओ॥ *५ * सग्गाओ अवइण्णा गंगा हरजडविणिग्गया संती । जण्हुरिसिआसमपयं मज्झेण उवागया णवरं ॥ पीआ य तेण रिसिणा वाससहस्सं च भामिआ उअरे । तो जण्हुएण मुक्का किर भण्णइ जण्हवी तेणं ॥ जह उअहि अगत्थीणं पीआ गंगा य जण्हुरिसिणा य।। तो जइ दस तिल्लघडा पीआ य तए किमच्छेरं ॥ * ६ * ३० भणइ ससो सो दिइओ सुमहंतो कह मए समुक्खित्तो। अह उक्खित्तो कह पुण णीओ एगागिणा गामं ॥ उच्चप्फलिअंदाउं हसिऊणं खंडवाणई भणइ । Yणं सस ! ण कयाइ वि सुओ तुमे गरुलवित्तंतो॥ कासवरिसिपत्तीओ कडु विणया अहेसि तीअम्मि । दोहिं वि ताहिं सवत्तीहि किं पि किल पणिअयं छिप्पं ॥ जा पणिअयम्मि जिप्पइ तीए दासत्तणं च कायव्वं । जावजीवाइ चिय अहवा दायव्वयं अमयं ॥ विणया जिअ कडुए करेइ दासत्तणं सवत्तीए। कडू वि सावत्तीवेहएण विणयं विमाणेइ ॥ विणया किर गुरुभारा दासत्ते' परमक्खिआ जाया। तत्थेव सा पसूआ तीसे अंडत्तयं जायं ॥
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1A किष्ण। 2 B किरि। 3 A वासत्ते।
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