Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): Haribhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
View full book text
________________
10
15
१८
20
25
हरिभद्रसूरिकृतं धूर्ताख्यानम् ।
पुणरवि एलासाढी भणइ सिला सा मए अइमहल्ला । कह उक्खिता गरुआ एअं मे पत्तिआवेहि ॥ भइ ससो किंण सुअं तुमए रामायणे कहिज्जतं । रामस्स रावणस्स य संगामे वद्यमाणम्मि ॥ लक्खणकुमार पडणे हणुण दोणपव्वओ तुंगो । ओस हिमग्गतेणं समूलडालो समुक्खित्तो || महइसिलासंघाओ सेलो जइ वाणरेण उक्खित्तो । जोअणपमाणमित्तं उक्खिवसि सिलं न संदेहो ॥ लोए वि परइ सुई बहुंती मेहणी महुमहेणं । काउं वराहरूवं ससेलवणकाणणा धरिया ।। जइ तेण समुक्खित्ता ण णज्जई कत्थई ठिएणं ति । उक्खिवस' ता तुमं पि अ धरणिअलत्थो सिला दो वि ॥ एलासाढो जाहे ससेण अइसंधिओ भणइ ताहे जं ते सुअमणुभूअं कहेहि सव्वं अपरिसेसं ॥ ससेनोक्तं एलासाढं प्रति प्रत्युत्तरकथानकदशकम् ।
॥ इति धूर्त्ताख्याने तृतीयमाख्यानकम् ॥
Jain Education International
[ ४. अथ शशोक्तं स्वकीयं कथानकम् । ]
1 A उक्खिबिसि । 2 A पव्वयराउ |
ॐ
अह भणइ ससो अहयं णिअयं छित्तं गओ सरयकाले । गामाओ दूरत्थं तं छित्तं गिरिवरासन्ने |
छित्तम्मि अ अच्छंतो तत्तो पव्वयवराओं' ओयरिडं । उच्छितो मि गएणं पव्वयमित्तेण मत्तेण ॥ थरथरथरंतगत्तो हाहा गहिओ मएण चिंतंतो । विवलाइउमचयंतो परिभ्रममि तहिं तहिं चेव ॥ भीविग्गेण मए दिट्ठो तिलपायवो अहमहल्लो तत्थ विलग्गो भि अहं वणगयभयवेविरसरीरो ॥ पत्तो अ सो वणगओ आरुसिओ तिलदुमं समंतेणं । परिभमह गुलुगुलिंतो कुलालचक्कु व्व आइट्ठो ॥ तेण भमंतेण य सो चालिजंतो तिले दवदवस्स । वासासु जलहरो इव जलणिवहं मुंबई घोरं ॥
3 B चक्क व्य ।
For Private & Personal Use Only
९२
९३
९४
* ९ * ९५
९६
९७
*१०* ९८
२
४
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160