Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): Haribhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
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३. एलाषाढकथित कथानकम । सत्तट्ठदसदुवालस अह] यं' इक्केण सरपहारेणं । जत्तो वलामि तत्तो पेसेभि जमालयं चोरे ॥ तो चोराण सयं मे मुहुत्तमित्तेण घाइयं तहियं । हयसेसा सयराहं पडिआ मज्झोवरि सव्वे ।। तो मं खंडाखंडिं काउं सीसं च छिपिणउं मज्झ । बयरीए ठविऊणं मुसिऊण घरं गया चोरा ॥ सरुहिर-सकुंडलं चिय सीसं मे बयरितरुवरारूढं । वीसत्थमणुश्विग्गं खायइ बोरे कसकसस्स ॥ तं सीसं सूरुदए दिढें लोएण बयरिउवरिम्मि । षयराइं खायंतं एस सजीओ त्ति काऊण ॥
१७10 मज्झं अंगोवंगा जणेण पिंडेवि मेलिआ तुरि। जाओ पुणो वि तोऽहं णिरुवहयसरीरलायण्णो । एयं मे अणुभूअं सयमेव इमम्मि माणुसे लोए। जो पुण ण पत्तिअह मं धुत्ताणं देउ सो भुत्तिं ॥
॥ एलाषाढेनोक्तं कथानकमिदम् ॥ [अथ शशोक्तं एलाषाढकथानकसमाधानम् ।] भणइ ससो सब्भूअं कह सका भाणिज() अलिअमेअं। जं पोराणमईए भारह-रामायणे आयं ॥ जमयग्गी आसि रिसी पत्ती तस्सासि रेणुआ णामं । तीए सीलवईए णमंति कुसुमथिए रुकवा ।। दिट्ठो अणाइ राया अस्सावहिओ मणोअ से खुहिओं। ण णमंति तओ रुक्खा ताहे जमयग्गिणा रामो॥ रुटेण समाणत्तो सीसं छिंदाहि 'दुट्ठसीलाए । तेण वि सीसं छिपणं झड त्ति पिउवयणकारेण ॥ भणइ तओ जमयग्गी वरसु वरं पुत्त ! जो तुहं इहो। सो भणइ मज्झ माया पुणो वि जीवंतिआ होउ ॥ इय होउ त्ति पभणिए जाया सा तक्खणेण सज्जीवा। जइ सन्भूअं एअं तुम पि जीवोसि तं सचं ॥ * १ * २५ राया वि जरासंधो समरपरक्कमपयावविक्खाओ। सो संधिओ जराए रायसहस्साहिवो जाओ॥
*२*२६३० अण्णं च इमं सुव्वई सुंद-णिसुंदा सहोअरा सूरा।
बलवीरिअसंपण्णा सुरलोअभयं जणेमाणा ॥ 1 B अप्पं। 2 B हयसंसा। 3 B तिस्सासि। 4 B दुट्ट० । 5A पिउवयणं कारीणं; B °वयणकारीणं । 6 B भणिए। 7 B°पयाविवक्खाओ। 8 B सव्वइ ।
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