Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): Haribhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
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२. कण्डरीककथितं कथानकम् । पत्थेण य तं गहियं अह अइभारेण ण सहई धरणी। भीमस्स तओ हत्थे आरुहिअ तं पयत्तेण ॥ कण्णविदिन्नेण सरेण विधिउं अजुणेण तं राहं । लद्धा दोवइकण्णा वीरपडागं हरंतेण ॥ जइ तं 'महल्लधणुअं णागग्गिगया य अइगया जत्थ । तो कह ण होइ ढिंकी महई जत्थित्तियं मायं ॥ रामायणे वि सुव्वइ सीआहरणे जडाउगिद्ध त्ति । पंखाउहो महप्पा जुज्झेणं रामणस्स ठिओ। तेण वि से रुटेणं चंदाहासेण लूडिआ पंखा । तो लुअपंखो पडिओ मंदरसिहरु व्व महिवढे । सीआए सो भणिओ सीलवाईणं सईण तेएणं । दट्टण रामदूअं होहिंति पुणो वि ते पंखा ॥ कस्स य कालस्स तओ हणुअंतो राहवेण आणत्तो। सीआपउत्तिहे हिंडतो आगओ तहियं ॥ चिंतेइ य हणुअंतो अहो गिरी एस उण्णओऽतीव । इत्थारुहिऊण अहं पुलएमि समंतओ वसुहं ॥ संलत्तो अखगेणं कोऽसि तुमं एरिसेण वेसेण । सो भणइ रामदूओ अहं ति सीआ(?) गवेसामि ॥ भणिओ जडाउणा सो रामवह रामणेण विलवंती। तेलुकडामरेणं लंकापुरपट्टणं णीआ॥ मा भमसु अरण्णाई सीआदेवीइ मग्गणहाए। दहरहसुअस्स सिग्धं गंतूण पिअं णिवेएहि ॥ अहमवि सीअट्टाए जुज्झंतो णिसिअराहिवेणेवं । असिणा दुवे वि पंखे छित्तूण अजंगमो मुको॥ अह भणइ वाउपुत्तो जं सि ठिओ रामणस्स जुज्झेण । जं वा वि अम्ह कहि होहि त्ति तुम पि पिअभागी॥ सोऊण दूअवयणं तो से जाया पुणण्णवा पंखा । आयासेणुप्पइओं गओ अ सग्गं णिरुवसग्गं ॥
भवति चात्र श्लोकःआख्यास्यति खगः खर्गे पितुर्दशरथस्य मे ।
एकस्त्रीपरिपाल्येऽपि न रामः शक्तुमर्हति ॥ मंदरसिहरागारो जइ आसि जडाउ खहयरो गिद्धो।
ता कह ण होइ ढिंकी कंडरिअ ! महप्पमाणाओ॥ *६ *७४ 1B मल्लथ12 A मेहई। 3A एरिसंमि। 4 A होहि वि उमं। 5 Bणुप्पेओ।
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