Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): Haribhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad

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Page 96
________________ ३१॥ २. कण्डरीककथितं कथानकम् । पडिभणइ एलसाढो पुराण-भारह-सुईदिद्वत्थो। किं तुह विण्हुपुराणं कण्णसुइपहं न पत्तं ते ॥ पुटिव आसि जगमिणं पंचमहाभूअवजिअं गहिरं । एगण्णवं जलेणं महप्पमाणं तहिं अंडं ॥ वीईपरंपरेणं घोलंतं अच्छिउँ सुचिरकालं । फुझं दुभागजायं अद्धं भूमीइ संवुत्तं ॥ तत्थ सुरासुरणायरमणुअचउप्पयमयं जयं सव्वं । जइ मायं ता गामो कह णु ण माइज वालुंके ॥ अण्णं च इमं सुव्वई' अरणीपचम्मि' धम्मपुत्तस्स । कहिअं सुअमणुभूअं मकंडेणं च अण्णजए । सो किल जुगंतसमए उदएणेगण्णवीकए लोए । वीईपरंपरेणं घोलिंतो उदयमज्झम्मि ॥ पिच्छह गयतसथावरपणट्ठसुरणरतिरिक्खजोणी। एगण्णवं जगमिणं पंचमहाभूअपन्भटुं॥ एवं विहे जगम्मी पिच्छइ ‘णग्गोहपायवं अह सो। मंदरगिरि व्व तुंगं महासमुदं व वित्थिण्णं ॥ खंधम्मि तस्स सयणं अच्छइ तहिं बालओ मणभिरामो। संपुण्णसरीरुदओ मिउमद्दवकुंचिअसुदेसो॥ हत्थो पसारिओ से रिसिणा एहेहि वच्छ! भणिओ अ। खंधे ममं विलग्गसु मा मरिहिसि उदयवाहीए ॥ तेण य चित्तुं हत्थो ओइलिओ सो रिसी तओ तस्स । पिच्छह उअरम्मि जयं ससेलवणकाणणं सव्वं ॥ दिव्यं वाससहस्सं कुच्छीए सो रिसी परिभमंतो। अंतं न चेव पत्तो विणिग्गओ रिसिवरो तत्तो॥ जइ दारयस्स उअरे ससुरासुरमाणुसं जयं मायं । तो चिन्भडम्मि गामो कहणु ण माइज कंडरिअ!॥ दिकोअरे अयगरो तस्स पसूई अ चिन्भडं उअरे । तस्थ वि य जणसमूहो कहमाओ भणसि सुणसु इमं॥ मुट्ठीगिझसुमझाइ केसवो देवईइ कुच्छिम्मि। वुत्तो तस्स य उअरे ससेलवणकाणणा पुहई ॥ अह भणड कंडरीओ चिन्भडपसुअयगराइमझम्मि । अच्छतो कह ण मओं एवं मे पत्तिआवेह ॥ १-३९ ४० ४२ 1B सम्ब। 2A पुन्यम्मि। 3 B °जोणियं। 4 B जिग्गोह। 5A हेरहि। 68 सयो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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