Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): Haribhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
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*८९२
२. कण्डरीको क्यानकम् । को मं धरि सको निवडति भणइ पसुबई अहयं । धारेमि तओ पडिया धरिया सीसेण पसुवइणा ॥ दिव्वं वाससहस्सं जइ धरिया जण्हवी उमावइणा। तो कह न धरेसि तुमं छम्मासं सिरेणुदयधारा ॥ उत्तमपुरिसो सि तुमं विण्णाणागमगुणेहिं संपुण्णो। णिग्गयजसो महप्पा विक्खाओ जीवलोअम्मि॥ [ एवं ] कण्डरीकेनोक्तं मूलदेवं प्रति प्रत्युत्तरकथानकाष्टकम् ।
॥ इति धूर्ताख्याने प्रथमाख्यानकम् ॥
[२. अथ कण्डरीककथितं कथानकम् ।] अइसइओ मूलसिरी कंडरि भणइ-'सु(भ)णसु इत्ताहे । जं दिहें जं च सुअं अणुहूयं जं च ते इहई॥ अह भणइ कंडरीओ-'अविणयपुण्णो मि आसि बालत्ते । अम्मापिइदुईतो रोसेण घराउ णिक्खंतो॥ परिहिंडतो अ अहं पत्तो देसंतसंठिअं गामं । गो-महिस-अजा-एलय-खर-करहसमाउलं मुइयं ॥ आरामुजाणवणेहिं सोहियं कुसुमफलसमिद्धेहिं । अयलापुरिसारिच्छं बहुघरसयसंकुलं रम्मं ॥ तस्स बहुमझदेसे पिच्छं वडपायवं मणभिरामं । मेहणिउबभसउणसहस्साण आवासं॥ तस्स य हिट्टे जक्खो कमलदलक्खो गुणेहिं परिकिण्णो । सण्णिहिअपाडिहेरो देइ वरं सो वरत्थीणं ॥ जक्खस्स तस्स जत्ता वदृइ बहुजणसमाउला मुइया । तत्थेइ जणो मुइओ धूवबलीपुप्फहत्थगओ॥ पहायपसाहियजिमिओं सव्वालंकारभूसियसरीरो। णाणाविहवत्थधरो चंदणपरिवण्णणविलित्तो॥ तो हं सकोउहल्लो उवागओ तं महायणसमूहं । जक्खस्स कमे णमिउं रममाणे घोडहे पिच्छं ॥ सण्णबद्धकवया गहिआउहपहरणा य अइबहुला। कलयलरवं करिता पडिया चोरा'णवरि तत्थ ॥ तो सो सबालवुड्डो सइथिओ जणवओ सपसुवग्गो । अह घोडएहिं सहिओ वालुंकं अइगओ सव्वो ॥
1B संपण्णो। 2 B °लोगंमि । 3A कथानकाष्टकमिदम। 4 B मूलसिरिं कंडरीओ। 5A तिमिओ। 6A रविं। 7A चोराणुवरि। 8 Bघोडाएहिं ।
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