Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): Haribhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad
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हरिभद्रसूरिकृतं धूर्ताख्यानम् । तीए वि णत्थि पुत्तो तो सा रिसिआसमम्मि रिसिमिकं । आराहिलं पयत्ता तेण वि सो साहिओ चरुओ॥ भणिआ तेण' य रिसिणा एअंचरुअं तुमं कुडंगम्मि । मुंजाहि पहिहमणा होही ते तत्थ पुत्तसयं ॥ सा तं परिभुत्तुं जे वंसकुडंगम्मि तो गया सगिहं । कस्सह कालस्स तहिं गग्गलिणामो रिसिवरु त्ति ॥ वंसीजालपविट्ठो चरइ तवं णवरि तत्थ पउमसरे । अच्छरसा पहायंती रिसिणा दिट्ठा विगयवस्था । खुहियस्स मुक्कबिंदु पडिअंणाली कीअगो पढमो। णवणायसहस्सबलो संजाओ पढमबिंदुम्मि॥ जह जह णिज्झाइ मुणी अच्छरसं पवररूवलावण्णं । तह तह खिरइ अबीअं जायं तहिं कीअगाण सयं ॥ वंसीणालीऔं रिसी णिक्खिविउ णिययमालयं पत्तो। सु चिय वंसकुडंगो राया रक्खावए णिचं ॥ संजायसव्वगत्ता गहिआ देवीइ तुहमणसाए । तं तीए पुत्तसयं भण्णइ णालीसमुप्पन्नं ॥ जह वंससमुप्पन्नं भायसयं कीअगाण माइ तहिं । तो कह कमंडलुम्मी ण मासि तं वणगयसमग्गो॥ वाससहस्सं गंगा जडासु वामोहिआ जइ हरेणं । छम्मासं कुंडिआए विमोहिओं वणगओ सचं ॥ *४*५२ लग्गो वालग्गंते हत्थी अयं च णिग्गओ कह णु। जं भणसि तं सुणिजसु पुराणसुइआगयं वयणं ॥ विण्हू जगस्स कत्ता सो किर एगण्णवम्मि लोगम्मि । आगासभूमिमारूअतसथावरजलण रहियम्मि ॥ णढणरासुरतिरिए ताराससिसूरविरहिआलोए। तप्पइ तवं अणंतो जलसयणगओ अचिंतप्पा ॥ तस्स किर पंकयत्थो बंभो णाहीइ पउमगम्भाओ। दंडकमंडलुहत्थो विणिग्गओ पंकयं लग्गं । एवं' कमंडलुगीवाइ णिग्गओ जइ तुमं गयसमं पि। हत्थी वालग्गंते लग्गो तो इत्थ किमजुत्तं ॥ जं पि अ भणसि गुणागर कुंडियगीवाइ णिग्गओ किमहं । भारहपसिद्धमित्थ वि वयणं सुण पच्चयणिमित्तं ॥ ५८ दिव्वं वाससहस्सं बंभाणो तप्पई तवं रणे। तो खुहिआ तिअसगणा भणंति कह हुज्ज से विरघं ॥
1Bय तेण। 2A विमोहओ। 3A जण। 4Bायणग्गओ। 5Bएव ।
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