Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): Haribhadrasuri, Jinvijay
Publisher: Saraswati Pustak Bhandar Ahmedabad

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Page 89
________________ हरिभद्रसूरिकृतं धूर्ताख्यानम् । जो पुण पुराण-भारह-रामायण-सुइ-समुत्थ'वयणेहिं । तं वयण समत्थित्ता महायणं पत्तिआविज ॥ सो धुत्ताण अहिवई महामई अत्थि सस्थणिम्माओ। मा देउ किंचि कस्स वि-'अ भणिए मूलदेवेण । ते सव्वे विभणिया-'इअ होउ सुसोहणं तए भणि। किंतु तुमं पढमं चिअ कहेहि जं ते समणुभूअं ॥ [१. अथ मूलदेवकथितं कथानकम् ।] अह भणइ मूलदेवों-जं अणुभूअं मए तरुणभावे । तं णिसुणेह अवहिआ कहिजमाणं सुजुत्तीए॥ तरुणत्तणम्मि अहयं इच्छिअसुहसंपयं अहिलसंतो। धाराधरणहाए सामिगिहं पत्थिओ सुइरं ॥ छत्तकमंडलुहत्थो पंथं वाहेमि गहिअपच्छयणो । मत्तं पव्वयमित्तं पिच्छामि अ गयवरं इंतं ॥ मेहमिव गुलगुलिंतं पभिण्णकरडामुहं महामत्तं । वट्टण वणगइंदं भएण वेवंतगत्तो हं॥ अत्ताणो अ असरणो कत्थ निलुकामि हंति चिंतंतो। तो सहसा य अगओ कमंडलु भरणभयभीओ।। अह सो वि मत्तहत्थी ऊसविअकरो सरोसरत्तच्छो। मझाणुमग्गलग्गो कमंडलु अगओ सिग्धं ॥ तो हं भयसंभंतो समंतओ विहु पलोअंतो। हत्थिं कमंडलुम्मी वामोहेऊण छम्मासं ॥ गीवाइ णिग्गओ हं हत्थी वि ममाणुमग्गओ णिन्तो। लग्गो वालग्गंते कुंडिअगीवाइ छिद्दम्मि ॥ अहमवि अ णवरि पुरओ गंगं पिच्छामि रंगिरतरंगे । फेणणिअरदृहासं वणगयदंतक्खयतडग्गं॥ उम्मीसहस्सपउरं झस-मयर-ग्गाह-कुम्मपरियरियं । जुवइहिअय व्वगाहं उअहि व्व सुदूरपरपारं ॥ पहमन्नं अलहंतो तो हं इसुवेअवाहिणिं सिग्छ । बाहाहिं समुत्तिपणो गोपयमिव भारहिं विउलं॥ तो सामिगिहं गंतुं छुह-तण्हापरिसहेहिं सहमाणो । छम्मासा सीसेणं धरेमि धारा धरहाए॥ 1B °समत्थ । 2 A पभणिया ते ! 3 A मूलदेओ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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