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चतुर्विंशति स्तोत्र
हे ईश आपका सिद्धान्त घोषित करता है कि सत् का कभी विनाश और असत् की उत्पत्ति भी नहीं होती । परन्तु तो भी उत्पाद और व्यय के बिना कुछ भी सिद्ध नहीं होता । अतः इस सिद्धानुसार 'सत्' की सत्ता उत्पाद और व्यय से समन्वित रहता है । सत् ही धौव्य है क्योंकि इसके ही आश्रय से उत्पाद और व्यय अपना कार्यकारित्व सिद्ध करते हैं । अतः प्रत्येक पदार्थ एक समय में एक साथ उत्पाद, व्यय और धौच्य अवस्था में विद्यमान रहता हैं ॥। ८ ।।
उदय उत्पाद, व्यय के साथ ही तद्रूप से होता है, पर्यायें सत् से शून्य कदापि नहीं हो सकती हैं। क्योंकि प्रतिक्षण नवीनता को धारण करनेवाली पर्यायें किसी न किसी के आश्रय से ही प्रवर्तन कर सकेंगी । अतः पर्यायों से रहित कभी भी वस्तु तत्त्व सिद्ध नहीं होता । इसी प्रकार सत् रूप ध्रौव्यता के बिना उत्पाद व व्यय भी निराश्रय किस प्रकार रह सकते हैं ? नहीं । अतः तीनों का सद्भाव एक ही आधार में एक साथ ही रहना सिद्ध होता है | यही वस्तु तत्त्व सिद्ध है ।। ९ ।।
क्षण क्षयी होते हुए भी उत्पाद व्यय रूप पर्यायें अपने ध्रुवत्व को एकत्व प्रदान करती हैं स्वयं भिन्न-भिन्न रूप से प्रतिभासित होती हैं । यही कारण है कि अपने ध्रुव रूप सत् के साथ अनन्त कालपर्यन्त रहकर सत के अस्तित्व के साथ प्रतिभासित रहेंगी तथा ध्रौव्य भी इन दोनों (उत्पाद, व्यय) के माध्यम से परिवर्तित होता हुआ अपएकत्व स्वभाव में स्थिर बना रहेगा । हे ईश ! यही आपकी तत्त्व व्यवस्था समीचीन है । यह अनन्तकाल पर्यन्त इसी प्रकार सत्ता को वहन करते होंगे । अर्थात् उत्पाद और व्यय एकरूप होकर सत्तालक्षण निर्धारित करती हैं ॥ १० ॥
यह सत् स्वरूप भी यदि सत् रूप है उसी प्रकार पर्यायें भी सत्स्वरूप हों तो सत्ता का अभाव ही हो जायेगा । तब तो पर्याय मात्र ही सिद्धस्वरूप
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