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चतुर्विशति स्तोत्र
टीका की का परिचय आपका जन्म वैशाख शुक्ला १२ (द्वादशी) वि. स. १९८५ मई १ सन् १९२८ को कांमा जिला भरतपुर (राजस्थान) में हुआ । नाम सरस्वती बाई था। शर्वती के नाम से प्रसिद्ध थी । गर्भ काल में मां को सम्मेद शिखर जी की बन्दना का दोहला हुआ । और ११ माह गर्भावस्था में उन्होंने पैदल शिखर जी की यात्रा की । पिता सन्तोषी लाल, माता चिरौजां बाई बड़ जात्या
१५ वर्ष की आयु में इनका लश्कर निवाशी भगवान दास चांद वाड़ के साथ विवाह हुआ । परन्तु २० दिन के वैवाहिक जीवन के पश्चात् वैधव्यता प्राप्त हुयी । आचार्य सुधर्म सागर की आज्ञा हुयी कि उससे ही पूछे, जैसा वह कहे वैसा ही करें आप से विचार करने पर चन्दाबाई जैन वाला विश्राम आरा, (विहार) में शिक्षा के लिये रखा गया । कक्षा ५ में प्रवेश हो गया । अनुशासित रह कर बी.ए. बी.एड. की परिक्षा उत्तीर्ण की ।
आचार्य महावीर कीर्ति १९५६-५७ में आरा पधारे । उस समय आप के मन में आर्यिका दीक्षा के भाव आये । लेकिन उत्तर मिला की तुम्हारी आर्यिका दीक्षा मुझसे नहीं होगी तथापि यह सत्य है कि तुम मेरे पास अवश्य रहोगी । तब उनसे शूद्र जल त्याग का व्रत लिया, और मुनियों को आहार देने लगी । कुछ समय बाद आचार्य शिव सागर से व्यावर में दूसरी प्रतिमा के व्रत धारण किये । पश्चात् १९६२ में भगवान महावीर के निर्वाण दिवस पर आचार्य विमल सागर से सातवीं प्रतिभा का व्रत लिया | केवल चार माह के पश्चात् आचार्य विमल सागर से आगरा में चैत कृष्णा तीज वि.स.२०१९ को आर्यिका दीक्षा ली।