Book Title: Chaturvinshati Stotra
Author(s): Mahavirkirti
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

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Page 327
________________ = चतुर्विशति स्तोत्र टीका के साथ उसके कर्ता का निर्देश अन. टी. में इस प्रकार किया है - यथाः भगवंत: श्री मत्प्रभेदु देवपादाः रलकरंड टीकायां | पद्मनंदि आचार्य को अन ., टीका में सचेलता दूषण में श्री पद्मनदि पाद के नाम से पद्मनंदि पंचविंशतिका श्लोक उद्धृत किया है | पूर्वोक्त उदाहरणों से मनीषी वर्ग को समझ में आया होगा कि पूर्ववर्ती आचायों को किस प्रकार सेनिर्देश किया है / अतः आचार्य आदि सागर अंकलीकर का विवाद मूलतः असत्य है / उनका आचार्यत्व सत्य स्वरूप है ज्ञानी का ज्ञान पूर्वापर से संबन्धित रहता है / अतः उनका आचार्यत्व सत्य सिद्ध है / वजय प्राचार्य सनतकुमार टीकमगढ़ 237

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