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२८ : चार तीर्थंकर ]
आदर्श उपस्थित किया है । बहिनों के उपदेश को नम्रता से स्वीकार करके अनेकमुखी भव्यता प्रदर्शित की है । ब्राह्मी और सुन्दरी के पात्र प्रातः स्मरणीय हैं । उनमें भी सुन्दरी ब्राह्मी की अपेक्षा कई तरह से अधिक सात्विकता दिखलाती है । उनका सौन्दर्य वासना के वशीभूत नहीं होने में है ।
1942 A. D. ]
[ अनुवादक - श्री भँवरमल सिंघी M. A. ]
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