________________
[चार तीर्थंकर : ७१ संक्रमण सरीखे असंभव प्रतीत होने वाले वर्णनों का उल्लेख है, उनमें भी सुमेरुकम्पन का संकेत तक नहीं है। किसी प्राचीन जैनपरम्परा में से पउमचरिय में इस घटना के लिये जाने की बहुत कम संभावना है और ब्राह्मणपुराणों में पर्वत के उठाने का उल्लेख है। तब हमें यह मानने के लिये आधार मिलता है कि कवित्वमय कल्पना और अद्भुत वर्णनों में ब्राह्मण मस्तिष्क का अनुकरण करने वाले जैन मस्तिष्क ने, ब्राह्मणपुराण के गोवर्धन पर्वत के उत्तोलन की कल्पना के सहारे इस कल्पना की सृष्टि कर ली है । ___ पड़ोसी और विरोधी सम्प्रदाय वाला अपने भगवान् का महत्व गाते हुए कहा है कि पुरुषोत्तम कृष्ण ने तो अपनो अँगुलो से गोवर्धन जैसे पहाड़ को उठा लिया; तब साम्प्रदायिक मनोवृत्ति को संतुष्ट करने के अर्थ जैनपुराणकार यदि यह कहें तो सर्वथा उचित जान पड़ता है कि --कृष्ण ने जवानी में सिर्फ एक योजन के गोवर्धन को ही उठाया पर हमारे प्रभु महावीर ने तो, जन्म होते ही, केवल पैर के अंगूठे से, एक लाख योजन के सुमेरुपर्वत को डिगा दिया ! कुछ दिनों बाद यह कल्पना इतनी मजबूत हो गई, इतनी अधिक प्रचलित हो गई कि अन्त में हेमचन्द्र ने भी अपने ग्रंथ में इसे स्थान दिया। अब आजकल की जैन-जनता तो यही मानने लगी है कि महावीर के जीवन में आने वाली मेरुकम्पन की घटना आगमिक और प्राचीन ग्रंथगत है ।
यहाँ उलटा तर्क करके एक प्रश्न किया जा सकता है। वह यह कि प्राचीन जैनग्रंथों में उल्लिखित मेरुकम्पन की घटना की ब्राह्मण पुराणकारों ने गोवर्धन को उठाने के रूप में नकल क्यों न की हो ? परन्तु इस प्रश्न का उत्तर एक स्थल पर पहले ही दे दिया गया है । वह स्पष्ट है। जैन ग्रंथों का मूलस्वरूप काव्यकल्पना का नहीं है और यह कथन इसी प्रकार की काव्यकल्पना का परिणाम है। पौराणिक कवियों का मानस मुख्य रूप से काव्यकल्पना के संस्कार से ही गढ़ा हुआ नजर आता है। अतएव यही मानना उचित प्रतीत होता है कि यह कल्पना पुराण द्वारा ही जैन काव्यों में, रूपांतरित होकर घुस गयी है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org